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समाज में फूट, कांग्रेस की वोट-लूट

राजस्थान में कांग्रेस जाति को हवा देकर कई सीटों पर चुनावी माहौल को प्रभावित करने में बहुत हद तक सफल रही। संभवत: इस कारण भाजपा इस प्रदेश में 2014 और 2019 जैसा प्रदर्शन नहीं कर सकी

by डॉ. ईश्वर बैरागी
Jun 14, 2024, 09:17 am IST
in विश्लेषण, राजस्थान
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राजस्थान में लोकसभा चुनाव के परिणाम चौंकाने वाले रहे। एक दशक से राजस्थान भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित राज्य माना जाता रहा था। भाजपा छह माह पहले हुए विधानसभा चुनाव जीतकर प्रदेश में सत्तासीन हुई। फिर क्या कारण रहे कि भाजपा 25 सीटों से 14 पर आ गई? भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान पूर्वी राजस्थान और शेखावाटी अंचल में हुआ है। भाजपा ने 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीटें जीती थीं। इस बार कांग्रेस ने जनता को जातियों के गणित में उलझा दिया।

कांग्रेस ने पूर्वी राजस्थान की पांच सीटों में से चार- भरतपुर, दौसा, टोंक-सवाई माधोपुर और करौली-धौलपुर अपने कब्जे में कर लीं। केवल एक अलवर सीट भाजपा के खाते में गई। वहीं शेखावाटी की तीनों सीटें- सीकर, झुंझनूं और चूरु कांग्रेस ने जीतीं। 2019 के मुकाबले इस बार भाजपा को 9.83 प्रतिशत मत कम मिले, वहीं कांग्रेस को 3.67 प्रतिशत ज्यादा। इस मामूली मत अंतर से ही कांग्रेस की सीटें शून्य से 8 पर पहुंच गईं। इंडी गठबंधन को राज्य में कुल 11 सीटें मिली हैं।

इंडी गठबंधन ने आरक्षण समाप्त करने और संविधान में बदलाव करने का शिगूफा छोड़कर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद किया। नतीजा यह रहा कि अनुसूचित जाति की आरक्षित 4 में 3 और अनुसूचित जनजाति की 3 में 2 सीटें इंडी गठबंधन के खाते में चली गईं। कांग्रेस ने साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाते हुए माकपा, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारतीय आदिवासी पार्टी से गठबंधन किया और इनके लिए सीकर, नागौर व बांसवाड़ा सीट छोड़ी। इन सीटों पर कांग्रेस के सभी सहयोगी दल जीतने में सफल रहे। भाजपा को महज 14, कांग्रेस को 8, बीएपी, आरएलपी व माकपा को 1-1 सीट पर जीत मिली।

रोचक आंकड़ा
2019 में भाजपा को 59.07 प्रतिशत, कांग्रेस को 34.24 प्रतिशत मत मिले थे। इस बार भाजपा को 49.24 प्रतिशत यानी 9.83 फीसदी कम मत मिले, इससे 10 सीटों का घाटा हुआ। कांग्रेस का मत प्रतिशत 3.67 प्रतिशत से बढ़कर 37.91 प्रतिशत हो गया।

वैसे, राजस्थान में भाजपा सरकार बनने के बाद उसके कार्यकर्ता उत्साहित थे। वे मानकर चल रहे थे कि इस बार भाजपा 400 पार कर जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक दिनेश गोरसिया कहते हैं, ‘‘कांग्रेस ने योजनाबद्ध तरीके से चुनाव को जातिवाद का रंग दिया और इसका नुकसान भाजपा को हुआ।’’

कांग्रेस ने जातिगत ध्रुवीकरण का सीधा और भरपूर फायदा उठाया। दौसा, चूरू, बाड़मेर, सीकर, भरतपुर, दौसा-सवाई माधोपुर जैसी सीटों पर मतदाता जातियों में बंट गए। कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों को भी हवा देते हुए चुनाव को जातिवाद के रंग में रंग दिया। भाजपा ने एक मार्च को लोकसभा की पहली सूची जारी की थी। इसके साथ ही राजस्थान में राजपूत-जाट विवाद शुरू हो गया था। इसके बाद अलग-अलग इलाकों में पूरा चुनाव जाति केंद्रित हो गया।

कांग्रेस ने हिंदू समाज को बांटने के लिए वह सब किया, जो वह वर्षों से करती रही है। इस कारण लोग उसके प्रभाव में आ गए और यह भी भूल गए कि उदयपुर में कन्हैयालाल का गला काटने वालों को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने किस तरह बचाने का प्रयास किया था। कांग्रेसी दुष्प्रचार ने जाति में बंटे हिंदुओं को इस तरह भ्रमित किया कि वे कांग्रेस के सभी पापों को भुलाकर भाजपा के विरुद्ध मतदान कर बैठे। यह भारत और भारतीयता के लिए ठीक संकेत नहीं है।

Topics: भारतीय आदिवासी पार्टीआरक्षण समाप्तसंविधान में बदलावRashtriya Loktantra PartyIndian Tribal PartyIndy Allianceहिंदू समाजend of reservationHindu Samajchange in constitutionइंडी गठबंधनपाञ्चजन्य विशेषराष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी
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