ईरान में इन दिनों अफगानी प्रवासियों पर संकट बरना हुआ है। पिछले दिनों उन्हें उस देश से जबरन निकालने के फरमान क्या जारी हुए, वहां बसे लाखों अफगान लोगों पर तलवार लटकी हुई है। ताजा आंकड़ों के अनुसार, इनमें से तीन लाख से ज्यादा अफगानियों को तो पिछले दो महीने के अंदर बाहर किया जा चुका है।
उधर अफगानिस्तान के तालिबान शासकों की ईरान ही नहीं, पाकिस्तान में भी चल रही ऐसी कार्रवाई से त्योरियां चढ़ी हुई हैं। तालिबान ‘सरकार’ में शरणार्थी एवं प्रत्यावर्तन उपमंत्री अब्दुल रहमान रशीद का कहना है कि गत 23 सितंबर से 8 दिसंबर के बीच करीब 3 लाख 45 हजार अफगानियों को स्वदेश लौटाया गया है। रशीद के हिसाब से लौटकर आए हर परिवार को अफगानिस्तान की हुकूमत ने मदद के लिए 10000 अफगानी अफ़्स नकद दिए हैं।
ईरान ने कुछ समय पहले तय किया था कि अब बहुत हुआ, अब बिना कागजात के वहां रह रहे अफगानी लोगों से छुटकारा पाना है। उसके बाद सरकारी आदेश जारी किया गया। उस पर अमल करते हुए, अधिकारियों ने गत दो माह में करीब साढ़े तीन लाख अफगानियों को जबरन देश से बाहर कर दिया है।
अफगानिस्तान में वर्तमान हालात देखते हुए, वहां किसी तरह के रोजगार की उम्मीद करना बेमानी है। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने तालिबान से कन्नी काटी हुई है और विकास योजनाएं भी ठप पड़ी हैं। विदेशों के दूतावास बंद हैं। चीन को छोड़कर कोई देश तालिबान हुकूमत को मान्यता देने को तैयार नहीं है। तालिबान की तरफ से किसी तरह के उद्योग—धंधे की शुरुआत किए जाने की तो कोई दूर दूर तक सोच भी नहीं सकता है।
ऐसे अनेक अफगानी परिवार हैं जो ईरान से निकाले जाने को लेकर आहत हैं। अफगानिस्तान के मुश्किल हालातों से बचकर गुजर—बसर के लिए ईरान गए मोहम्मद यूसुफ वापस अफगानिस्तान भेजे जाने को लेकर दुखी हैं। उन्हें शिकायत यह भी है कि ईरान में उन्हें पुलिसिया दमन भी सहना पड़ा।
अपने देश अफगानिस्तान में काम—धंधा न मिलने पर ईरान गए यूसुफ का कहना है कि वे किसी तरह छुप—छुपाकर ईरान गए गए थे। लेकिन वहां की पुलिस ने उन्हें हिरासत में लेकर खूब पीटा। उन्हें अफगानिस्तान लौट जाने को मजबूर किया गया। ईरान से पलटाए गए ज्यादातर अफगानियों ने अफगानिस्तान को छोड़ा ही इसलिए था कि वहां उनके लिए कोई काम—काज या कमाई का जरिया नहीं था। लौटे अफगानियों को चिंता है कि यहां काम क्या करेंगे, इसलिए उन्होंने तालिबान हुकूमत से गुहार की है कि कैसे भी नौकरी—धंधे की कोई व्यवस्था की जाए।
ऐसा ही कुछ कहना है ईरान से लौटाए गए शिरीन आगा का। वे कहते हैं, अफगान की तालिबान सरकार ऐसे रास्ते तलाशे कि उन्हें काम मिले और वे अपना परिवार चला सकें। ऐसा होगा तो वे देश से बाहर जाने के बारे में सोचना छोड़ देंगे।
लेकिन अफगानिस्तान में वर्तमान हालात देखते हुए, वहां किसी तरह के रोजगार की उम्मीद करना बेमानी है। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने तालिबान से कन्नी काटी हुई है और विकास योजनाएं भी ठप पड़ी हैं। विदेशों के दूतावास बंद हैं। चीन को छोड़कर कोई देश तालिबान हुकूमत को मान्यता देने को तैयार नहीं है। तालिबान की तरफ से किसी तरह के उद्योग—धंधे की शुरुआत किए जाने की तो कोई दूर दूर तक सोच भी नहीं सकता है। इस्लामी शरिया कानून के अनुसार राज करने वाले मजहबी कट्टरपंथी तालिबान वैसे भी विकास जैसी किसी चीज को जानते भी कहां हैं।
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