गत अप्रैल को नई दिल्ली स्थित प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय के सभागार में ‘द हिंदू मेनिफेस्टो’ नामक पुस्तक का लोकार्पण हुआ। लोकार्पणकर्ता थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत। उन्होंने कहा कि भौतिकतावादी विकास की पश्चिमी अवधारणा विफल रही है और उसने असंतोष व पर्यावरणीय संकट को जन्म दिया है।
उन्होंने आगे कहा कि विश्व को मार्गदर्शन देने से पहले हिंदुओं को स्वयं ‘द हिंदू मेनिफेस्टो’ में उल्लेखित सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारना होगा। सरसंघचालक जी ने स्मरण कराया कि प्राचीन काल में भारत का प्रभाव बिना आक्रामकता के फैला था, लेकिन बाद में आत्मसंतोष और संकीर्णता ने धर्म के मूल्यों की उपेक्षा करवाई।
उन्होंने कहा कि यह पुस्तक धर्म के वास्तविक स्वरूप, जो सार्वभौमिक वास्तविकता और आध्यात्मिक चेतना पर आधारित है, को पुनः जाग्रत करने का प्रयास करती है। धर्म केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि जीवन के सार्वभौमिक सत्य और आध्यात्मिक चेतना का सजीव रूप है। समारोह के विशिष्ट अतिथि और वाल्मीकि मंदिर, नई दिल्ली के महंत स्वामी कृष्णशाह विद्यार्थी ने कहा कि यह पुस्तक हमारे धार्मिक चिंतन का सार समेटे हुए है।
पुस्तक के लेखक स्वामी विज्ञानानंद ने कहा कि यह पुस्तक प्राचीन भारतीय ज्ञान को समकालीन समय के अनुसार पुनर्परिभाषित करती है। हिंदू चिंतन परंपरा सदा से समयानुकूल समाधान प्रस्तुत करती रही है, जबकि उसकी जड़ें सनातन सिद्धांतों में स्थापित हैं जिन्हें हमारे ऋषियों ने सूत्रों के माध्यम से व्यक्त किया है।
इस पुस्तक के आठ मूल सूत्र हैं–सभी के लिए समृद्धि, राष्ट्रीय सुरक्षा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, उत्तरदायी लोकतंत्र, महिलाओं का सम्मान, सामाजिक समरसता, प्रकृति की पावनता, मातृभूमि और विरासत के प्रति श्रद्धा। दिल्ली वि.वि. के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि सच्ची शिक्षा ज्ञान और बुद्धिमत्ता का संतुलन है। एक सशक्त राष्ट्र के लिए मजबूत कोष और रक्षा तंत्र आवश्यक है। इस अवसर पर अनेक गणमान्यजन उपस्थित थे।
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