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चार वर्ष में 39 किशोरियों को “बालिकावधू” बनने से बचाया, नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट

कन्या सुमंगला जैसी योजनाओं की मदद से शिक्षित होकर बेटियां अब खुद भी बाल विवाह के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही हैं।

by संवाद सूत्र
Dec 29, 2022, 09:16 pm IST
in उत्तर प्रदेश
प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

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समाज में बाल विवाह रोकने के लिए जागरूकता समेत कई प्रयास किये जा रहे हैं।  वाराणसी जिले में चार सालों के अंदर 39 किशोरियों के जीवन को बचाया गया है। नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार जागरुकता व त्वरित कार्रवाई से बाल विवाह रोकने में मिली सफलता मिली है। जिला प्रोबेशन अधिकारी सुधाकर शरण पाण्डेय की मानें तो इस बदलाव का श्रेय प्रदेश सरकार की महिला कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ मिशन शक्ति जैसे अभियानों को जाता है। सरकार की मंशा के अनुरूप इन अभियानों की देन है कि बाल विवाह जैसी कुरीति पर कई तरफ से प्रहार हो रहा है। एक ओर इस दिशा में समाज को तो जागरूक किया जा रहा है वहीं कन्या सुमंगला जैसी योजनाओं की मदद से शिक्षित होकर बेटियां अब खुद भी बाल विवाह के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही हैं।

उदाहरण स्वरूप चोलापुर के दानगंज में 15 वर्षीय किशोरी के व्याह रचाने की तैयारी पूरी हो चुकी थी। मंदिर में बनाये गये लग्न मण्डप में किशोरी को बस सात फेरे लेने शेष रह गये थे तभी बाल संरक्षण इकाई व चाइल्ड लाइन की टीम पुलिस के साथ वहां पहुंच गयी। टीम को मंदिर की ओर आता देख दूल्हा और बाराती वहां से भाग निकले। एक गुमनाम सूचना पर हुई इस फौरी कार्रवाई का नतीजा रहा कि वह किशोरी ‘बालिकावधू’ बनने से बाल-बाल बच गयी।

नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) -5 की रिपोर्ट के अनुसार जिले में बाल विवाह पर काफी तेजी से अंकुश लगा है। वर्ष 2015-16 में आई नेशनल फेमली हेल्थ सर्वे-4 की रिपोर्ट में  18 वर्ष से कम उम्र की किशोरियों की शादी का ग्राफ जहां 19.9 था वहीं 2020-21 में आयी नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट में यह आंकड़ा घटकर 10.4 हो गया। इससे साफ है कि जिले में बाल विवाह पर काफी हद तक लगाम लग चुकी है।

जिला बाल संरक्षण इकाई की संरक्षण अधिकारी निरुपमा सिंह बताती हैं कि जिला बाल संरक्षण इकाई, बाल कल्याण समिति, विशेष किशोर पुलिस इकाई, चाइल्ड लाइन, संबंधित थाने की पुलिस तथा स्वयं सेवी संस्थाओं के संयुक्त प्रयास का नतीजा है कि बीते चार वर्ष में बाल विवाह रोकने के 39 मामलों में सफलता मिली है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2019-20 में 12, 2020-21 में 10, 2021-22 में 11 व वर्ष 2022-23 में अब तक बाल विवाह की छह कोशिशों को नाकाम किया गया है। बाल विवाह रोकने के बाद उनके अभिभावकों ने बाल कल्याण समिति के समक्ष शपथ पत्र दाखिल किया है कि वह अपने बच्चों की शादी तभी करेंगे जब उनके बच्चे बालिग हो जाएंगे। वह बताती हैं कि बाल विवाह रोकने भर से हमारा काम खत्म नहीं होता है। कार्रवाई के बाद हम फालोअप भी करते रहते हैं।

संरक्षण अधिकारी निरूपमा सिंह बताती है कि  यदि कोई भी व्यक्ति  निर्धारित उम्र से कम उम्र में शादी करता है तो उसे बाल विवाह करार दिया जायेगा। भले ही वह सहमति से ही क्यों न किया गया हो। बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम -2006 के अंतर्गत बाल विवाह होने पर दो वर्ष की सजा अथवा एक लाख का जुर्माना अथवा दोनों का प्राविधान है।

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