न भूलने वाला पल
विभाजन की पीड़ा को याद करता हूं तो सोचने भर से ही रूह कांपने लगती है। बहुत दुख होता है उस समय की स्थितियों को याद करके।
कुंदन लाल राजपाल
मरदान, पाकिस्तान
हमारा घर मरदान जिले के टोपी कस्बे में था। पिताजी की चारबाग में गुड़ की मंडी थी। मेरी प्राथमिक शिक्षा टोपी के मदरसे में हुई। उन दिनों मेरी उम्र यही कोई सात साल की थी। मुझे याद है कि पाकिस्तान में धीरे-धीरे हालात खराब होने लगे थे। आए दिन मुसलमानों ने लूटपाट एवं मारकाट करनी शुरू कर दी थी। अचानक एक दिन हमारे मोहल्ले में भी अराजक तत्व आ धमके। आसपास के इलाकों में तो मारकाट चल ही रही थी। इससे सब डरे हुए थे। ऐसा देख हम लोग सब कुछ छोड़ कर अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भागने लगे।
हरेक व्यक्ति को अपने परिवार और जान की फिक्र थी। वहां अब कोई भी हिन्दू परिवार सुरक्षित नजर नहीं आ रहा था। एक तरीके से कहें तो जो लोग अपने थे, वे कब दुश्मन जैसा बर्ताव करने लगे, पता नहीं चला। किसी तरह मैं परिवार के लोगों के साथ बड़ी कठिन स्थितियों में जम्मू आए। फिर यहां से हरिद्वार आ पहुंचे।
इस दौरान पाकिस्तान से आए हिन्दू दर-दर की ठोकरे खा रहे थे। हालत बड़ी खराब थी। आज भी जब विभाजन की पीड़ा को याद करता हूं तो सोचने भर से ही रूह कांपने लगती है। बहुत दुख होता है उस समय की स्थितियों को सोचकर। खैर, किसी तरीके से हम सभी परिवार के साथ हरिद्वार तो आ गए लेकिन यहां की स्थितियां ठीक नहीं थीं। जो भी लोग पाकिस्तान से आ रहे थे वह वहां का हाल बता रहे थे।
चारबाग में अच्छी खासी मंडी थी। पिताजी बताते थे कि हमारी मंडी में काफी दूर दूर से गुड़ लेने लोग आते थे। बहुत अच्छा व्यवसाय था। लेकिन सब कुछ बर्बाद कर दिया मजहबी उन्मादियों ने। आज अपना घर, खेत, मंडी, व्यवसाय और अपने लोगों को याद करता हूं तो पीड़ा होती है।
रातदिन गोलियां चल रही थीं। बड़ी मुश्किल से, गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच अपनी जान हथेली पर लेकर सब कुछ छोड़कर भाग रहे थे। सेना मदद में जुटी थी। उनकी मदद से ही लोग सकुशल वापस आ पा रहे थे। हमारी जो संपत्ति वहां पर रह गयी थी, उसके बारे में पिताजी ने जानने की बहुत कोशिश की परंतु कुछ भी पता नहीं चल सका।
जब बाकी रिश्तेदार किसी तरह हरिद्वार पहुंचे तो उन्होंने बताया कि रास्ते में हर जगह मुसलमानों ने अराजकता मचा रखी थी। इसे देखकर महसूस हो रहा था कि पता नहीं जिंदा भी रह पायेंगे या नहीं! ट्रेनों को जगह जगह रोककर हिन्दुओं को मारा-काटा जा रहा था। काफी लोगों को मुसलमानों ने मौत के घाट उतार दिया था।
वहां पर हम लोगों की बहुत जमीन और बहुत बड़ा मकान था। चारबाग में अच्छी खासी मंडी थी। पिताजी बताते थे कि हमारी मंडी में काफी दूर दूर से गुड़ लेने लोग आते थे। बहुत अच्छा व्यवसाय था। लेकिन सब कुछ बर्बाद कर दिया मजहबी उन्मादियों ने। आज अपना घर, खेत, मंडी, व्यवसाय और अपने लोगों को याद करता हूं तो पीड़ा होती है। लेकिन अब भी मन करता है कि उस जगह को एक बार देखूं जरूर, जहां मेरा बचपन बीता।
टिप्पणियाँ