काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एक बार फिर विवादों में घिरा है। फैकल्टी ऑफ आर्ट में चल रहे सेमेस्टर परीक्षा में बीफ के क्लासिफिकेशन को लेकर सवाल पूछा गया था। इसको लेकर छात्रों द्वारा लगातार विरोध किया जा रहा है। गोपाष्टमी के दिन गौशाला में जाकर छात्रों ने गो पूजन कर विरोध जताया। शोध छात्र पतंजलि पांडेय ने कहा कि बीफ को लेकर छात्रों को पढ़ाना कहीं से भी उचित नहीं है। गो-माता हम सभी की आस्था से जुड़ी हैं। सनातन काल से ही हम सभी उनकी पूजा करते आ रहे हैं।
पतंजलि पांडेय का कहना है कि ‘भारत में गोरक्षा आंदोलन के प्रणेता महामना मालवीय जी की बगिया में कुलपति के नेतृत्व में बीफ के वर्गीकरण को पढ़ा जा रहा है और परीक्षा में प्रश्न पूछा जा रहा है। महामना जीवन भर गो सेवा और गो रक्षा के लिए समर्पित रहे। आज उन्हीं के विश्वविद्यालय में गोमांस का वर्गीकरण पढ़ाया जा रहा है। यह विश्वविद्यालय के मूल्यों के खिलाफ है।’
प्रोफेसर राकेश उपाध्याय ने भी कुछ दिनों पहले फेसबुक पर प्रश्नपत्र को पोस्ट करते हुए इसका विरोध किया था। प्रो उपाध्याय ने पोस्ट में लिखा कि ‘काशी हिंदू विश्वविद्यालय में यदि बीफ के प्रकार को समझने और समझाने में कुछ इंस्ट्रक्टर को ज्यादा ज्ञान जग गया है, तो कम से कम ऐसे प्रश्न पत्र सेट करने वालों के बारे में जानकारी तो सार्वजनिक की जानी चाहिए। यह कौन हैं? विश्वविद्यालय के हैं या कोई बाहरी एक्सपर्ट ने प्रश्न पत्र बनाए हैं। प्रश्नपत्र में ऐसे प्रश्न पूछने के पीछे मंशा क्या है?’
आगे उन्होंने लिखा है कि ‘ध्यान रहे कि भारत रत्न, महामना ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में देशी गोवंश की स्थापना भी की थी। ताकि विद्यार्थियों और स्टाफ को शुद्ध दूध मिल सके। मगर, छात्रों के जरिए गोमांस की रेसिपी जानने में कुछ लोगों को दिलचस्पी जगी है, एक जिज्ञासा है कि प्रश्न पूछने वाले और पाठ्यक्रम में रखने वाले कौन लोग हैं? उत्तर प्रदेश में गोहत्या और बीफ बिक्री पर निषेध कानून लागू है, तो बीफ पकाने का शिक्षण दिया जाना भी जुर्म है। मामला सीधे तौर पर जनभावनाओं को भड़काने का है। मैं कुलपति, मुख्यमंत्री से विनम्र प्रार्थना करता हूं कि मामले में सच्चाई है, तो तत्काक जांच होनी चाहिए।’
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