सम्पादकीय
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सम्पादकीय
धर्म राजाओं का राजा है। यह लोगों का शासक है और शासकों का भी शासक है।
–डा.एस. राधाकृष्णन (26 जनवरी,1949 को संविधान सभा में दिए गए भाषण का अंश)
अग्नि-5 अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल का सफल प्रक्षेपण कर भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा को एक मजबूत रणनीतिक कवच पहना दिया है। करीब आधी दुनिया को अपने प्रक्षेपण दायरे में समेट लेने वाले और 5000 किमी.से ज्यादा दूरी तक मार करने की क्षमता वाले लम्बी दूरी के इस प्रक्षेपास्त्र ने भारत के विरुद्ध चीन की रणनीतिक सामरिक तैयारियों का करारा जवाब तैयार कर लिया है। इस सबके अतिरिक्त इसकी 80 प्रतिशत तकनीक स्वदेशी होना अपने आपमें एक बड़ी उपलब्धि है। 'मिसाइल मैन' के लोक नाम से विभूषित डा.एपीजे अब्दुल कलाम ने भारत की जिन महत्वाकांक्षी प्रक्षेपास्त्र परियोजनाओं की नींव डाली, अग्नि-5 का सफल प्रक्षेपण उनमें मील का एक और पत्थर है। डा.कलाम की संकल्पशक्ति को इसी से समझा जा सकता है कि अपने सहयोगियों के साथ मिलकर उन्होंने केवल 6 वर्षों में पृथ्वी, अग्नि, नाग, त्रिशूल और आकाश नामक 5 प्रक्षेपास्त्र प्रणालियों का विकास किया, जिनमें से शुरू की तीन की तो सैन्य तैनाती हो चुकी है, जिन्होंने भारत की रक्षा तैयारियों को समुचित विस्तार दिया है, जबकि अंतिम दो अभी परीक्षण के दौर में हैं। अग्नि-5 की एक विशेषता यह भी है कि इस परियोजना का नेतृत्व एक महिला वैज्ञानिक डा. टेसी थॉमस के हाथों में था। 'अग्नि पुत्री' के नाम से जानी जाने वालीं थॉमस इस सफलता के बाद भारत में किसी प्रक्षेपास्त्र परियोजना का सफल संचालन करने वाली पहली महिला वैज्ञानिक बन गई हैं। उन्होंने डा.कलाम की टीम में रहकर अपने शुरुआती दिनों में जो दीक्षा प्राप्त की उसे पूरी निष्ठा, समर्पण और कर्मठता के साथ सफल परिणिति तक पहुंचाकर भारत का गौरव बढ़ाया है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के प्रमुख श्री वी.के. सारस्वत ठीक ही कहते हैं कि अग्नि-5 का प्रक्षेपण एक सपना साकार होने जैसा है। वास्तव में अग्नि–परीक्षा में यह भारत की एक और बड़ी सफलता है। इसकी अचूक क्षमता ने नई प्रोद्योगिकी उपयोग के कई दरवाजे खोल दिए हैं। इस एक ही मिसाइल से कई लक्ष्यों का संधान संभव हो गया है। 1.5 टन तक के परमाणु बम का प्रक्षेपण करने की क्षमता की सतह से सतह पर मार करने वाली यह मिसाइल दुश्मन को पता चलने से पहले ही अधिकतम 20 मिनट के अंदर अपने लक्ष्य को वेध देगी। इस सफलता ने भारत को अमरीका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस व रूस की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है।
भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और एकात्मता को पाकिस्तान और चीन जैसे धोखेबाज पड़ोसियों से लगातार जो खतरा बढ़ रहा है, उसे देखते हुए भारत की रक्षा तैयारियों को तेज और मजबूत किए जाने की अत्यधिक आवश्यकता है। पिछले दिनों गोला-बारूद की कमी को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ, वह दुर्भाग्यपूर्ण व चिंताजनक है। इसलिए हथियारों की आपूर्ति में आत्मनिर्भरता व स्वदेशी तकनीक का अधिकाधिक विकास ही हमारी रणनीतिक जरूरतों के लिहाज से अपनी प्राथमिकता में रहना चाहिए। लेकिन यह खेदजनक है कि भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा परंपरागत हथियार आयातक देश है और अपनी आवश्यकता के करीब 70 प्रतिशत परंपरागत हथियार आयात करता है और इस खरीद में कमीशनखोरी का घुन किस तरह हमारी रक्षा तैयारियों को कमजोर कर रहा है, बोफर्स से लेकर टाट्रा ट्रक सौदों ने यह साबित कर दिया है। उधर, जरूरत के मुकाबले परंपरागत हथियारों के विकास और अनुसंधान की धीमी गति कितनी नुकसानदेह है, यह इसी से समझा जा सकता है कि स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान के निर्माण पर चार दशकों से काम चल रहा है, इसमें देरी के कारण ही वायुसेना को 126 मीडियम मल्टी रोल लड़ाकू विमानों की खरीद करनी पड़ रही है। रक्षा वैज्ञानिकों को इस ओर तत्पर किए जाने व राजनीतिक, सैन्य व अफसरशाही के द्वंद्व से परे इन्हें जरूरी साधन व सुविधाएं मुहैया कराए जाने की आवश्यकता है। देश के राजनीतिक नेतृत्व को सेना के साथ टकराव व विवादों को तूल न देकर सेना की गरिमा बनाए रखते हुए रक्षा तैयारियों और विकास व अनुसंधान परियोजनाओं पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। अग्नि-5 की सफलता से अपनी रक्षा तैयारियों की बिसात उलटती देख चीन का बौखलाना स्वाभाविक है। हालांकि उसने बड़ी संयत कूटनीतिक प्रतिक्रिया दी है, लेकिन चीन के सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' में यह बौखलाहट साफ झलकती है। सफल प्रक्षेपण के बाद अग्नि-5 को अब शीघ्रातिशीघ्र सेना में शामिल किए जाने से ही इसकी सफलता का लाभ देश को मिल सकेगा।
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