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प्रत्येक हिन्दू नर–नारी के रक्त में समाहित हैं सीता
–स्वामी विवेकानन्द
'सीता का प्रवेश हमारी जाति की अस्थि-मज्जा में हो चुका है: प्रत्येक हिन्दू नर-नारी के रक्त में सीता समाहित हैं, हम सभी सीता की संतान हैं। हमारी नारियों को आधुनिक भावों में रंगने की जो चेष्टायें हो रही हैं, यदि उन सब प्रयत्नों में उनको सीता-चरित्र के आदर्श से भ्रष्ट करने की चेष्टा होगी, तो वे सब असफल होंगे, जैसा कि हम प्रतिदिन देखते हैं। भारतीय नारियों से सीता के चरण-चिन्हों का अनुसरण कराकर अपनी उन्नति की चेष्टा करनी होगी, यही एकमात्र पथ है।
चाहे सब पुराण नष्ट हो जायें, यहां तक कि हमारे वेद भी लुप्त हो जायें, हमारी संस्कृत-भाषा सदा के लिए कालस्रोत में विलुप्त हो जाए, किन्तु मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनो, जब तक भारत में अतिशय ग्राम्य भाषा बोलने वाले पांच भी हिन्दू रहेंगे, तब तक सीता की कथा विद्यमान रहेगी।'
जानें मैतेई महिलाओं को
डा. तारादत्त 'निर्विरोध'
सौन्दर्य की भारतीय अवधारणा का आवश्यक अंग हैं- मैतेई महिलाएं। मंगोलियाई नखशिख के अलग आकर्षण के साथ मैतेई महिलाओं की कमर के नीचे तक लटकी काली नागिन-सी चोटी, स्वच्छ-सुदंर मणिपुरी वेश लुंगी 'पुंगोड़' और कंधे पर पड़ा शाल दृष्टि बांधता है। बनी-ठनी ठिगनी कद-काठी की वे महिलाएं अपनी सुकुमारता के लिए पहचानी जाती हैं। उनके मस्तक पर वैष्णव सम्प्रदाय का तिलक (ऊपर से नाक तक चंदन की रेखा-सा बना) ध्यान आकृष्ट करता है और उनकी जीवनशैली में त्याग, स्वाभिमान तथा प्रशंसा के गुण छिपाए नहीं छिपते।
मणिपुर की मैतेई महिलाएं चाहे खैरमबंद बाजार की दुकानदारी में व्यस्त हों, चाहे पारिवारिक-घरेलू कार्यों में जुटी हों या फूलों और चंदन से दुल्हन-सी सजी हों, जीवन-उत्साह से भरी होती हैं। वे अपने में पूर्णतया आत्मनिर्भर, विश्वसनीय और पुरुष की परम सहयोगी हैं। साथ ही आदर्श नारी, कुशल गृहिणी, श्रमजीवी, नारीवाद की प्रतीक और कमोवेश सुसंस्कृत समाज की सृष्टा भी हैं।
भारत का पूर्वोत्तर राज्य है मणिपुर, जिसकी पूर्वी सीमा बर्मा से, उत्तरी नागालैण्ड से और पश्चिमी सीमा असम से मिलती है। सांस्कृतिक उपनिवेश मणिपुर मध्य घाटी का कला एवं संस्कृति स्थल है जो हर ओर से पहाड़ी श्रृंखलाओं से घिरा हुआ है। इसका दक्षिणी भाग लंबी लोक टाक झील तक ढलान में सुविस्तृत है। मणिपुर की राजधानी इम्फाल है। इस प्रेरणाप्रद धरोहर, पारंपरिक कलात्मक उत्कृष्टता और अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य के मध्य नारी सौंदर्य का अपना ही सुख-संसार है।
यूं तो मैतेई जाति वीरता एवं साहस के लिए प्रसिद्ध है, उसका युद्धकालीन इतिहास लंबा और प्रेरणादायी रहा है। पुरुष युद्ध मोर्चों में व्यस्त रहे हैं तो महिलाएं गृह मोर्चा संभाले हुए। खैरमबंद बाजार, जिसका रूप सुपर मार्केट से कम नहीं, को महिलाएं चलाती हैं। वहां कोई पुरुष विक्रेता नहीं होता। मैतेई महिलाएं व्यापार में निपुण, सूझबूझ की धनी और चतुर मानी जाती हैं।
वहां धर्म का सर्वोच्च स्थान है और दो धाराएं निरंतर प्रवाहित हैं-मंगोलियन और दूसरी भारतीय मूल की। वहां का बहुसंख्यक समाज हिन्दू है जिसे मैतेई कहा जाता है। वे वैष्णव सम्प्रदाय को मानते हैं। n
जीवन अमूल्य है। दुर्गुण और कुसंस्कार या गलत आदतें जीवन में ऐसी दुर्गंध उत्पन्न कर देती हैं कि हर कोई उस व्यक्ति से बचना चाहता है। जीवन को लगातार गुणों और संस्कारों से संवारना पड़ता है, तभी वह सबका प्रिय और प्रेरक बनता है। यहां हम इस स्तंभ में शिष्टाचार की कुछ छोटी–छोटी बातें बताएंगे जो आपके दैनिक जीवन में सुगंध बिखेर सकती हैं–
जीवनशाला
+ अपनी तरफ से हर व्यक्ति का अभिवादन करें और हरेक के प्रति विनम्र और शालीन व्यवहार बनाए रखें।
+ अपनी वाणी में विनम्रता और शालीनता बनाए रखें। मौका पड़ने पर भी कभी किसी के प्रति कठोर व दिल दुखाने वाले शब्दों का इस्तेमाल न करें। कभी भी किसी का मजाक न तो उसके सामने और न ही उसकी पीठ पीछे उड़ाएं।
+ ध्यान रखें कि दूसरों के प्रति आपका हर व्यवहार सम्मानजनक हो।
+ बेवजह बड़े और असरदार नामों का उल्लेख करने से बचें।
+ दूसरों के सामने अपनी बड़ाई या प्रशंसा करने से बचें। साथ ही, अपने कामों, उपलब्धियों या खूबियों का ढोल खुद ही न पीटें।
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