आँगन की तुलसी
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प्राचीन समय में पृथ्वी पर दुर्गम नाम का परम बलशाली दैत्य रहता था। अभिमान में अंधा होकर उसने मनुष्यों व देवताओं पर घोर अत्याचार शुरू कर दिए। आतंक के बल पर यज्ञ व समस्त धार्मिक कार्य बन्द करवा दिए। पूरी पृथ्वी पर उसका आतंक व्याप्त हो गया। पृथ्वी पर अन्न व जल का अभाव हो गया। भूख-प्यास से लोग मरने लगे। समस्त पृथ्वी त्राहि-त्राहि कर उठी।
मनुष्य व देवता मिलकर दुर्गम दैत्य के कष्ट से मुक्ति पाने के उद्देश्य से हिमालय पर ब्राहृस्वरूपिणी गणेश-जननी माता जगदम्बा की शरण में गये। बोले-व्माता जगदम्बा दुर्गमासुर से हमें बचाइए।अकाल से प्राणियों की रक्षा कीजिए।व् सभी का दु:ख सुनकर जगदम्बा द्रवित हो उठीं। उनके नेत्रों से जल-धारा प्रवाहित होने लगी। इससे पृथ्वी पर पर्याप्त मात्रा में जल उत्पन्न हो गया। जगदम्बा के वरदान से ही शाक-सब्जी व अन्न का अभाव दूर हो गया। उन्होंने देवताओं व सत्पुरुषों को अपने हाथों से फल वितरित कर आशीर्वाद दिया- व्लौट जाओ, शीघ्र ही दुर्गमासुर का नाश होगा।व्
माता जगदम्बा ने दुर्गमासुर के सामने पहुंचकर उसको युद्ध के लिए ललकारा। दैत्यों ने देवी पर आक्रमण कर दिया। देवी के शरीर से दिव्य शक्तियां प्रकट हुर्इं। अन्त में माता जगदम्बा ने त्रिशूल से अत्याचारी दुर्गम दैत्य का वध कर डाला। समस्त देवतागण व मनुष्य माता जगदम्बा की जय-जयकार करने लगे। पृथ्वी पर पुन: यज्ञादि धर्म-कार्य शुरू हो गये। सुख-शान्ति लौट आई। उसी दिन से दुर्गम नामक दैत्य का संहार करने के कारण माता जगदम्बा व्दुर्गाव् नाम से प्रसिद्ध हो गयीं।
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