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अशोक वाटिका, राम-रावण युद्ध भूमि, रावण की गुफा और ऐसे 35 रामायणकालीन स्थलों की जानकारी मिली थी-आलोक गोस्वामीश्रीलंका में रामायणकालीन स्थलों की खोज के संबंध में पिछले दिनों कुछ प्रमुख टेलीविजन चैनलों पर अनेक समाचार दिखाये गये थे। “मिल गये राम” और “लंका में रामायण” जैसे शीर्षकों से जी टीवी, इंडिया टीवी, आईबीएन-7 आदि अनेक चैनलों ने कैमरे के विभिन्न कोणों के जरिए श्रीलंका के पहाड़ों और विस्तृत मैदानों की तस्वीरें दिखाईं थीं और रिपोर्टरों ने बहुत गर्मजोशी से उस स्थानों पर खड़े होकर खबरें प्रसारित की थीं- “वो रही गुफा जहां, कहते हैं, रावण का शव रखा है”, “यही वो स्थान है जहां रावण अपने विमान खड़े किया करता था”, “लगभग इसी बीच श्रीलंका सरकार की तरफ से उस देश के पूर्व क्रिकेट खिलाड़ियों अर्जुन राणातुंगा और अरविंद डि सिल्वा ने श्रीलंका के पर्यटन विभाग द्वारा तैयार की गयी सीडी जारी करते हुए श्रीलंका में रामायणकालीन स्थलों की सैर का आमंत्रण दिया था। ये दोनों खिलाड़ी पर्यटन विभाग के एम्बेसेडर हैं। श्रीलंका सरकार को इस बात की पूरी उम्मीद है कि रामायणकालीन स्थलों की “खोज” के प्रति आकर्षित होकर बड़ी संख्या में पर्यटक, विशेषकर भारत के यात्री, वहां पहुँचेंगे और उसे भारी मुनाफा होगा। अभी तक मिली जानकारी के अनुसार, “श्रीलंकाज रामायण ट्रेल” नामक “स्प्रिच्युअल टूरिज्म” की इस योजना को लेकर श्रीलंका सरकार के पास काफी पत्र और ज्यादा जानकारी मांगने के लिए पहुंच रहे हैं। पिछले दिनों भारत से एक संत 400 शिष्यों के साथ इस “ट्रेल” के लिए पहुंचे। तीन सप्ताह में इस “ट्रेल” में 25 स्थान घुमाए जाते हैं।मगर क्या ये बात सच है कि टेलीविजन चैनलों ने अथवा श्रीलंका सरकार ने ‚ंचे पर्वत पर स्थित था। मगर समय के साथ दो तिहाई लंका सागर में समा चुकी है। आज भी दक्षिण एशिया की ओर जाने वाले जहाज सागर में कुछ हिस्सों में जाने से बचते हैं, क्योंकि पानी के नीचे मौजूद पहाड़ के हिस्सों से टकराने का खतरा होता है। मैंने वह स्थान भी खोजा था जहां हनुमान जी ने अपनी पूंछ की आग बुझायी थी।” अपने विस्तृत अध्ययन के बाद डा. विद्यासागर ने सर्चलाइट नामक अखबार में अपनी खोज का विवरण चार कड़ियों में प्रकाशित कराया था। बाद में उसपर अंग्रेजी में किताब भी लिखी- रामायणाज लंका। फिर उन्होंने ही इसका हिन्दी में रामायण की लंका नाम से अनुवाद किया जिसे श्री बालेश्वर अग्रवाल ने 1980 में प्रकाशित कराया। बालेश्वर जी उस समय भारत भारती संस्था के सचिव थे। पुस्तक में डा. विद्यासागर ने रामायण के वे अंश दिये हैं जिनमें लंका स्थित अनेक स्थानों का जिक्र आता है और उन स्थानों पर डा. विद्यासागर ने जो देखा उसका वर्णन भी किया है। मगर अपने इतिहास और संस्कृति को झुठलाने वाले लोगों ने इस पुस्तक पर न खास ध्यान दिया, न ही इसका उतना प्रसार होने दिया। हां, यह जरूर है कि अब जब टेलीविजन चैनलों ने रामायणकालीन स्थलों की चर्चा छेड़ी थी तो डा. विद्यासागर का भी इंटरव्यू लिया गया था। आज डा. विद्यासागर की उम्र 82 वर्ष है मगर श्रीलंका में बिताये अपने उन दिनों की स्मृतियां उनके मानस पटल पर बिल्कुल ताजा हैं। उनकी 31 पृष्ठ की पुस्तक रामायण की लंका में अनेक अंश हैं जिनमें वाल्मीकि रामायण के वर्णन के अनुसार विभिन्न स्थानों की भौतिक स्थितियों और स्थानीय मान्यताओं का स्पष्ट उल्लेख है। यहां हम उस पुस्तक से कुछ अंश पुस्तक की भाषा में विशेष बदलाव किये बिना प्रकाशित कर रहे हैं-शासकीय अभिलेखों सेश्रीलंका में रामायण से सम्बन्धित प्रसंग शासकीय इतिहास व अभिलेखों में थोड़े ही मिलते हैं। लेकिन ये सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रसंग इस द्वीप को “रामायण की लंका” संबंधी प्रचलित मान्यताओं की ओर इंगित करते हैं।महावंसा- सिंहल इतिहास एवं संस्कृति की दृष्टि से श्रीलंका के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ महावंसा में मातले के पास लंकापुरा का नाम आता है। रावण के शासनकाल में यह नगर बहुत महत्वपूर्ण था।4 फरवरी 1969 को कैंडी, जहां अंतिम सिंहल राजा का राज था, में श्रीलंका की स्वतंत्रता कीप्रथम विदेशी यात्रीश्रीलंका संसद में 29 सितम्बर 1969 को हुई एक बहस के दौरान यह प्रश्न उठाया गया था कि श्रीलंका में पहला विदेशी यात्री कौन था? श्री लीलारत्ने विजयसिंघे का विचार था कि द्वीप में पहला विदेशी यात्री होने का श्रेय पुर्तगाली व्यक्ति को मिलना चाहिए। सरकारी प्रवक्ता, श्री जस्टिन रिचर्ड जयवर्धने, जो उस समय शासन में एक प्रमुख मंत्री थे, ने कहा कि “इसका श्रेय सीता को मिलना चाहिए।”]रावणैला गुफा16 मई 1970 को वैलाव्या और ऐला के बीच सत्रह मील लम्बे मार्ग का उद्घाटन करते हुए तत्कालीन राज्यमंत्री ने कहा था, “… उस मार्ग पर एक बहुत सुन्दर स्थान, जिसने उनका ध्यान खींचा है, रावणैला गुफा है। रावण ने सीता से भेंट करने के लिए उस गुफा में प्रवेश करने का प्रयत्न किया था, परन्तु वह न तो गुफा के अन्दर जा सका और न सीता के ही दर्शन कर सका।”डांडू मोनरयादेश के शिक्षा प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित सिंहल रीडर- भाग 3, में रावण पर दो पाठ दिये गये हैं। पाठ पांच का शीर्षक है “डांडू मोनरया” (अर्थात मयूर रूपी विमान) और पाठ छह का शीर्षक “राम-रावण युद्ध” है।लोरानी सेनारत्ने, जो लम्बे समय तक श्रीलंका के इतिहास और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से संबंधित रही हैं और श्रीलंका की इटली में राजदूत भी रह चुकी हैं, ने अपनी पुस्तक “हेअरस टू हिस्ट्री” में पहले दो भाग रावण पर ही लिखे हैं। उनके अनुसार रावण 4,000 वर्ष ईसा पूर्व हुआ था। रावण चमकते हुए दरवाजे वाले 900 कमरों के महल में निवास करता था। देश के अन्य भागों में उसके पच्चीस महल या आरामगाहें थीं।अगस्त, 1971 में एक बौद्ध भिक्षु ने दावा किया था कि एक पर्वत शिखर पर बने सुदृढ़ किले में रावण का शव अपनी पूर्व अवस्था में अब भी सुरक्षित रखा हुआ है।लंका का आकारईसा पूर्व 2,387 में रावण की मृत्यु के तुरन्त बाद लंका का कुछ अंश जलमग्न हो गया था। इस घटना के पूर्व लंका की परिधि 5,120 मील थी और बाद में इसकी परिधि केवल 2992 मील रह गई। महावंसा के द्वितीय शासक पांडुवा (जिन्होंने ईसा पूर्व 504 से 474 तक शासन किया) के काल में दुबारा श्रीलंका का कुछ क्षेत्र जलमग्न हो गया। इसके बाद श्रीलंका पर एक गंभीर विपत्ति देवानाम पिया तिस्सा और उसके सामन्त केलनिया तिस्सा (ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी) के काल में आई। इसके फलस्वरूप लंका का आकार केवल 928 मील रह गया।प्रसिद्ध यात्री मार्कोपोलो, जिन्होंने सन 1293 ई. में श्रीलंका की यात्रा की थी, ने इस देश के बारे में लिखा है- “यह देश परिधि में 2,400 मील है परन्तु प्राचीन काल में यह और बड़ा था, उस समय इसकी परिधि 3600 मील थी।”सीता ऐलियासीता ऐलिया में रावण की भतीजी त्रिजटा, जो सीता की देखभाल के लिए रखी गई थी, के साथ सीता को रखा गया था। यह स्थान न्यूराऐलिया से उदा घाटी तक जाने वाली एक मुख्य सड़क पर पांच मील की दूरी पर स्थित है।इसी सड़क पर हक्गला उद्यान के पास एक छोटा मन्दिर बना है। यह “सीता अम्मन कोविले” कहलाता है। यह 50-60 वर्ष पूर्व ही बना है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि यह स्थान “अशोकवन” जहां सीता ने अपने बंदी जीवन के अन्तिम दिन बिताये थे, का भाग रहा है।15
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