बेल्जियम के राजा फिलिप और प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर डी क्रू ने पोप के दौरे के आरम्भ में ही चर्च के अंदर हो रहे यौन शोषण शोषण जैसे दुष्कृत्यों का उल्लेख किया, लेकिन साथ ही कहा कि जाने क्यों इस तरह के कृत्यों पर माफी मांगने की बजाय उन्हें छुपाने की कोशिश की जाती है। यह गलत है। इसके लिए चर्च को माफी मांगनी चाहिए, प्रायश्चित करना चाहिए।
रोमन कैथोलिक चर्च और यौन शोषण, ये दोनों शब्द पिछले कुछ साल से बार—बार सुर्खियों में आते रहे हैं। सवाल उठते रहे हैं कि चर्च के पदाधिकारी, पादरी, बिशप आदि बाल यौन शोषण करते रहे हैं और चर्च उनकी अनदेखी करता रहा है। वेटिकन भी कभी खुद को ऐसे सवालों से बचाता नजर आया तो कभी कुछ मामलों में माफी मांगने जैसी भाषा का प्रयोग करता नजर आया है। पोप फ्रांसिस के साथ विडम्बना रही है कि वे जिस महाद्वीप या देश की यात्रा पर जाते हैं वहीं उन्हें यौन अपराधों में लिप्त पादरियों के कच्चे चिट्ठे देखने में आते हैं, फिर वे शर्मिंदगी सी झलकाते हैं। इस सबके बावजूद चर्च के ऐसे कृत्य खत्म होने की बजाय बढ़ते ही दिखे हैं। कल खत्म हुए बेल्जियम के अपने दौरे में पोप ने बिशपों को खबरदार किया है कि यौन अपराध में आरोपी पादरियों को अनदेखा करने की बजाय उनके पीड़ितों को न्याय दिलाएं।
बेल्जियम के राजा फिलिप और प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर डी क्रू ने पोप के दौरे के आरम्भ में ही चर्च के अंदर हो रहे यौन शोषण शोषण जैसे दुष्कृत्यों का उल्लेख किया, लेकिन साथ ही कहा कि जाने क्यों इस तरह के कृत्यों पर माफी मांगने की बजाय उन्हें छुपाने की कोशिश की जाती है। यह गलत है। इसके लिए चर्च को माफी मांगनी चाहिए, प्रायश्चित करना चाहिए।
यह सुनकर भी अगर पोप बेल्जियम में अपने भाषण में यौन अपराधों का जिक्र करके पादरियों को न कोसते तो शिकायतों के निशाने पर आते। लिहाजा उन्होंने यौन शोषण करने वाले पादरियों पर बस बोला ही नहीं, बल्कि कड़े शब्दों में बोला कि जो दोषी हैं उन्हें उनके किए की सजा मिलनी चाहिए, जो पीड़िताएं हैं उन्हें न्याय मिलना चाहिए। साथ ही पोप यह भी कह गए कि जिन पादरियों के काम ऐसे दुराचारी रहे हों, उनके दोषों को बिशपों को दबाना—ढकना नहीं चाहिए।
87 साल के हो चुके पोप यौन उत्पीड़न के शिकार हुए लोगों से मिले, उनके दुख पर दुख जताया। उन्हें जिस मानसिक वेदना से गुजरना पड़ रहा है, उसे लेकर चर्च की ओर से कोई मदद न मिलने पर भी चिंता व्यक्त की। जैसा पहले बताया, बेल्जियम के प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर खुद रोमन कैथोलिक चर्च में बढ़ते जा रहे यौन शोषण जैसे दुष्कृत्यों पर आक्रोशित थे। उन्हें इस बात का ज्यादा दुख था कि ऐसे कृत्यों को चर्च के बिशप छुपाने की कोशिश करते हैं, जिससे अपराधी भावना वाले पादरी बचे रहते हैं। अलेक्जेंडर की मांग है कि आगे ऐसा न हो, इसके लिए कुछ तो सख्त कदम उठाए जाएं।
बेल्जियम में रोमन चर्च में इस प्रकार के कांडों की संख्या घटने की बजाय बढ़ती ही गई है। एक से एक दर्दनाक और भयानक कांड हुए बेल्जियम में चर्च के अंदर। 2010 में हुए यौन अपराध में तो खुद वहां के सबसे वरिष्ठ बिशप ही लिप्त पाए गए थे। उनका नाम था बिशप ब्रुगेस वांगेलुवे। लेकिन हैरानी की बात है अपने ही भतीजे का वे तेरह वर्ष तक यौन शोषण करते रहे और किसी को कानोंकान खबर न हुई, अगर हुई भी तो उनको चर्च ने चुपचाप इस्तीफा देने को कहा जो उन्होंने दे भी दिया। लेकिन इतने घिनौने कांड के बावजूद बिशप को किसी प्रकार का दंड चर्च ने नहीं दिया था।
वेटिकन जानता है कि रोमन कैथोलिक चर्च के अंदर हो रहे इस प्रकार कांड ईसाई समुदाय को आक्रोशित कर रहे हैं और अनुयायियों में चर्च के प्रति अरुचि भी पैदा कर रहे हैं। भारत में भी सिस्टर अभया, नैंसी और लूसी जैसी नन बिशपों के दुराचार की शिकार हुईं लेकिन चर्च उन दुराचारियों को बचाने में जुटा रहा। क्या बेल्जियम के दौरे से मिले सबक से वेटिकन कुछ सीखेगा?
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