इस्लाम भले ही अपने तर्क और तथ्य लोगों के सामने पेश कर रहा हो, लेकिन दुनिया भर में बड़ी संख्या में मुसलमानों की नई पीढ़ी इस्लाम छोड़ रही है। इंटरनेट युग में खुल कर युवा सामने आ रहे हैं। इसे लेकर इस्लाम के मरकजों में अंदरखाने बेचैनी हैै
इस्लाम में एक नया चलन शुरू हुआ है- इस्लाम को नए सिरे से पेश करने का, इस्लाम के बारे में नए तर्क और नए तथ्य पेश करने का। एक स्पष्ट बेचैनी है, लेकिन किस कारण है? इसी हड़बड़ी में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के 34वें अधिवेशन में अरशद मदनी ने भारत को इस्लाम का जन्म स्थान और इस्लाम को भारत का सबसे पुराना मजहब बता दिया। प्रश्न है कि उलेमा इस्लाम के बारे में नई-नई बातें करने के लिए हड़बड़ी में क्यों हैं? क्या यह दबाव इस्लामी बिरादरी के भीतर चल रही हलचल के कारण है?
लगभग एक दशक पहले इस्लाम छोड़ चुके, सुन्नी मसलक से संबंधित रहे असलम कहते हैं, ‘‘इस्लाम वो मजहब है, जिसमें मजहब पर सवाल उठाने की आजादी नहीं है। इसके अलावा इस मजहब में आप बाहर से किसी को शामिल कर सकते हैं, लेकिन इस मजहब को छोड़ने की अनुमति किसी को नहीं है। मजहब छोड़ने पर सख्त सजा का प्रावधान है।’’ आठ मुस्लिम देशों में तो फांसी की सजा का प्रावधान है। कई अन्य देशों में कैद, जुर्माना और अन्य सख्त सजाएं हैं। जहां कानूनी सजाएं नहीं हैं, वहां जुनूनी मुस्लिम समूह खुद सजा देने को आतुर रहते हैं। ऐसे में अब मजहब छोड़ने का चलन तेजी से बढ़ा है।
मुस्लिम युवा सवाल उठा रहे हैं। मारे जाने के खौफ से वे सामने नहीं आते, लेकिन इंटरनेट आ जाने के बाद कई खुल कर सामने आ रहे हैं, अपनी बात रख रहे हैं और मोमिनों, मौलानाओं को आमने-सामने बहस की चुनौती दे रहे हैं। अपने यूट्यूब चैनल खोल कर अन्य मुस्लिम युवाओं को इस्लाम की कमियों के बारे में बता रहे हैं और उनके सवालों के जवाब दे रहे हैं। क्या यही बड़ी वजह थी भारत को इस्लाम का जन्म स्थान और इस्लाम को भारत का सबसे पुराना मजहब बताने की? अगर उलेमा इस तरह का दबाव महसूस कर रहे हैं, तो उसकी वजहें तो नजर आती हैं।
14 भाषाओं में एक्स मुस्लिम के चैनल
तमाम बंदिशों और खौफ के बावजूद इस्लाम छोड़ने की मुहिम दुनिया भर में चल पड़ी है। हाल के दौर में खास तौर पर 2007 से कुछ पहले से तो इस्लाम छोड़ कर एक्स-मुस्लिम बनने का चलन साफ नजर आने लगा है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका रही इंटरनेट की है। इंटरनेट के बूते इस समय दुनिया की 14 भाषाओं में एक्स-मुस्लिम के यूट्यूब चैनल चल रहे हैं। इसमें अरबी, फारसी, तुर्की, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, डैनिस, नार्वेजियन, सोमाली के साथ ही भारतीय भाषाओं हिंदी-उर्दू, बांग्ला, मलयालम, तमिल, तेलुगु में एक्स मुस्लिम के सैकड़ों यूट्यूब चैनल हैं। इसमें हिंदी-उर्दू में ही 37 से अधिक एक्स-मुस्लिम चैनल हैं। नवंबर 2015 में ट्विटर पर एक हैशटैग चला- #नॉटमुस्लिमबिकॉज। उधर, एक्स मुस्लिम आफ नॉर्थ अमेरिका ने ट्विटर पर ‘#आसमविदाउटअल्लाह’ नाम से एक हैशटैग चलाया। इसमें दुनिया भर के एक्स मुस्लिम ने इस्लाम छोड़ने के अपने कारण गिनाए और यह बताया कि इस्लाम छोड़ कर वे कितने खुश और कितने आजाद हैं। यह हैशटैग लगभग हर साल किसी न किसी महीने ट्रेंडिंग में आ रहा है।
विश्वव्यापी एक्स-मुस्लिम लहर
एक्स-मुस्लिम लहर सिर्फ इस्लाम छोड़ने की मुहिम नहीं है। यह थोड़ा बहुत संगठित भी है, इसका विस्तार भी होता जा रहा है और यह मुखर भी है। इसका रजिस्टर भी है और नहीं भी है। इसका विस्तार दुनिया के सभी छह महाद्वीपों में 26-27 से अधिक देशों तक हो चुका है। इस्लाम छोड़ चुके लोगों के दुनियाभर में 35 से अधिक ज्ञात संगठन हैं। इस मुहिम में सबसे आगे है यूरोप और अमेरिका। चंद लोगों से शुरू होकर यह मुहिम दुनिया भर में फैलती गई।
2007 में जर्मनी, युनाइटेड किंगडम, नीदरलैंड्स में एक्स-मुस्लिम्स के संगठन बन गए। 2009 तक इसकी आंच अमेरिका पहुंच गई और अमेरिका में फॉर्मर मुस्लिम्स युनाइटेड बना। 2010 में आस्ट्रिया, 2011 में बेल्जियम एक्स-मुस्लिम मुहिम संगठन बनाकर पेश हुई। नॉर्दर्न इंग्लैंड के ब्रैडफोर्ड में एक्स-मुस्लिम नॉर्थ मीटअप ग्रुप बन गया। स्विट्जरलैंड में कसेम अल घजाली ने एसोसिएशन आफ एक्स-मुस्लिम्स आफ स्विट्जरलैंड की स्थापना की। 2012 तक एक्स-मुस्लिमों के दुनिया भर में 6 संगठन बन चुके थे।
2013 में कनाडा और अमेरिका के एक्स-मुस्लिम ने मुहम्मद सईद की अगुवाई में एक्स-मुस्लिम्स आफ नॉर्थ अमेरिका नाम से अपना संगठन बनाया। इसी साल फ्रांस में काउंसिल आफ एक्स-मुस्लिम्स आफ फ्रांस और मोरक्को में काउंसिल आफ एक्स-मुस्लिम्स आफ मोरक्को का गठन किया गया। 2014 में स्कॉटलैंड में एक्स-मुस्लिम्स आफ स्कॉटलैड बना। 2015 में युनाइटेड किंगडम में आलिया सलीम और इम्तियाज शम्स ने फेथ आफ फेथलेस का गठन किया। 2015 में ही नीदरलैंड में प्लेटफॉर्म न्यू फ्रीथिंकर्स का गठन किया गया। 2016 में नॉर्वे, मध्य-पूर्व एवं उत्तरी अफ्रीका, श्रीलंका, ईरान, दक्षिण अफ्रीका और इटली में एक्स-मुस्लिम के संगठन बने।
इसी तरह, 2017 में आयरलैंड, 2018 में जॉर्डन, आयरलैंड, आस्ट्रेलिया में संगठन बने। असली चुनौती थी एशिया में, और ईरान में आर्मिन नवाबी ने ओरकुट पर ईरानी एथिस्ट के रूप में एथिस्ट रिपब्लिक की स्थापना की। पाकिस्तान में एथिस्ट एंड एग्नॉस्टिक एलायंस पाकिस्तान की स्थापना हुई। 2014 में तुर्की में एसोसिएशन आफ एथिज्म का गठन किया गया। तुर्की में यह पहला विधिक एथिस्ट संगठन था। सिंगापुर में काउंसिल आफ एक्स-मुस्लिम्स आफ सिंगापुर का गठन हुआ।
2019 में एक्स-मुस्लिम्स आफ नीदरलैंड और भारत में एक्स-मुस्लिम्स आफ केरल का गठन हुआ। केरल के एक्स-मुस्लिम संगठन ने 9 जनवरी को एक्स-मुस्लिम दिवस के रूप में मनाना शुरू किया। 2021 में अमेरिका में यंग एपोस्टेट्स नाम का संगठन बना।
क्यों छोड़ रहे इस्लाम!
इस्लाम छोड़ने वालों को इस्लाम में मुलहिद या मुरतद कहा जाता है। सोशल मीडिया के दौर में इन मुलहिदों की संख्या दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही है। ये वे लोग हैं जो मौलानाओं की मजहबी तकरीरों की अपेक्षा तथ्यों का आकलन करते हैं। सवाल उठाते हैं। प्रश्न यह उठता है कि ऐसा क्या है जो इन पढ़े-लिखे और अपनी व्यक्तिगत सोच रखने वालों को मोहम्मदवाद से विमुख कर देता है? अब तक जिन लोगों ने इस्लाम छोड़ा है, उनमें से ज्यादातर की प्रतिक्रियाओं में उभरने वाली साझी बात यह है कि सबसे पहले तो उन्हें पैगम्बरवाद की मूल अवधारणा ही तर्कहीन प्रतीत होती है। पाकिस्तान में जन्मे आज के कई यूट्यूबर रोज अपने पूर्व मुस्लिम (एक्स मुस्लिम) होने की घोषणा गर्व के साथ करते हैं और विदेश में किसी सुरक्षित-अज्ञात स्थान से प्रसारण करते हुए प्रतिदिन कुछ प्रश्न उलेमाओं और मुफ्तियों के सामने बार-बार उठा रहे हैं। इन यूट्यूब वीडियो में रोजाना उठने वाले कुछ सामान्य प्रश्न मुस्लिम युवाओं को उद्वेलित भी करते हैं और नए तार्किक विमर्श के लिए तैयार भी। उदाहरण के लिए, इस्लाम के अनुसार मोहम्मद साहब स्वयं अनपढ़ थे। अल्लाह ने जब उन्हें पैगम्बर चुना तो सीधे संवाद नहीं किया। जिब्रील नामक एक ‘फरिश्ता’ भेजा। जिब्रील ने जब लिखा हुआ ‘पैगाम’ मोहम्मद साहब को देकर उसे पढ़ने के लिए कहा तो मोहम्मद साहब ने उसेसे कहा कि वे तो पढ़ना जानते ही नहीं हैं।
एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार से आने वाली मास कम्युनिकेशन की छात्रा सायमा (नाम परिवर्तित) स्वयं को ‘खुले विचारों’ वाली कहने में गर्व अनुभव करती हैं। उनके अनुसार, ‘‘यदि इस सृष्टि का कोई सृजन करने वाला है और वह अपने बनाए हुए लोगों को संदेश (पैगाम) देना चाहता है तो उसे इतना अटपटा ढंग चुनने की क्या आवश्यकता है?’’ जाहिर है कही-सुनी या लिखी बातों को भी अपने नजरिए से परखने वाली नई पीढ़ी मुस्लिम समाज में प्रगतिशील तरीके से बात, बहस-मुबाहिसे की जगह तैयार कर रही है और ये बातें तर्क की बात करने वाली इस पीढ़ी के नौजवानों के गले नहीं उतरतीं। यूट्यूब पर लोकप्रिय इस्लामी विमर्शों में छद्म नाम से भाग ले चुके एक पूर्व मुस्लिम कहते हैं, ‘‘कई बार मजहबी आस्थाएं तर्क से परे होती हैं। इसलिए केवल इतना ही होता तो भी चल जाता, क्योंकि कोई किस बात पर विश्वास करना चाहता है, यह उसका निजी निर्णय हो सकता है। किंतु इस्लाम में इन विश्वासों के आधार पर दूसरों के अधिकारों का हनन होता है। यह लोगों के इस्लाम से विमुख होने का एक बहुत बड़ा कारण है।’’
वास्तव में, न्याय और समानता जैसे सामाजिक विमर्श से जुड़े कई बिंदु हैं, जिन पर नए जमाने के मुस्लिम, पूर्व मुस्लिम यूट्यूब योद्धा रूढ़िवादी मौलानाओं को रोज ‘लाइव स्ट्रीम’ में घेर रहे हैं। उदाहरण के लिए, सभी गैर-मुसलमान घृणा के पात्र हैं। सबसे पहली बात जो इस्लाम छोड़ने वालों को खटकती है, वह है मजहब के आधार पर घृणा। वे प्रश्न करते हैं कि गैर-मुस्लिम मानवों से इतनी घृणा क्यों है? उन्हें काफिर जैसे घृणास्पद सम्बोधन से क्यों सम्बोधित किया जाता है? कुरान में काफिर की सबसे स्पष्ट परिभाषा इसके अध्याय 98 में मिल जाती है। इसके अनुसार, अहल-ए-किताब और मुशरिक, दोनों ही काफिर हैं और ये सभी मखलूक (जीवों) से बदतर (नीच) हैं। यह रचयिता न केवल उन्हें सब मखलूक से बदतर कहता है, बल्कि ‘अपने’ अनुयाइयों को इन्हें मारने (8:12, 9:5, 47:4), लूटने (8:40, 8:41) और इनकी महिलाओं का अपहरण करने (4:24) के लिए उकसाता है। फिर यह भी कहा जाता है कि अल्लाह रहमान-उर-रहीम है अर्थात् क्षमाशील और दयावान है। ये घृणा और विरोधाभास, तर्कशील मुस्लिमों को इस्लाम से विमुख कर रहा है।
महिलाओं के प्रति भेदभाव
इस्लाम में महिलाओं की स्थिति निचले दर्जे की होने पर भी विमुख मुसलामानों को आपत्ति है। कुरान के अनुसार, ‘अल्लाह’ ने मर्दों को औरतों पर फजीलत (प्रधानता) बख्शी है (4:34), इसलिए मर्द चाहे तो अपनी पत्नी को पीट सकता है। इतना ही नहीं, मर्द एक ही समय पर चार बीवियां रख सकता है। अर्थात् शादियों की संख्या की कोई सीमा नहीं है, एक समय पर बीवियों की संख्या की सीमा है। ऐसे कई उदाहरण इतिहास में मिलते हैं, जहां एक को तलाक दिया और अगले दिन दूसरी ले आए। इसके अतिरिक्त भी महिलाओं को कई जगह निचली स्थिति में रखे जाने की बात है जिसे इस्लाम छोड़ने वाले पसंद नहीं कर रहे।
अपनी एक यूट्यूब रील में जफर हेरेटिक कहते हैं कि ओल्ड टेस्टामेंट में बहुत सी बातें इंसानियत के खिलाफ थीं। न्यू टेस्टामेंट में सुधार किया गया। कुरान ओल्ड टेस्टामेंट की ही कॉपी है। मैं यहूदी और ईसाई रिलीजन को अच्छा नहीं कह रहा, लेकिन यहूदी और ईसाई बदलते वक्त के साथ बदलते रहे। दुनिया में सिर्फ मोमिन ही छठी सदी में जी रहे हैं। आकिब स्मिथ आकिब ट्वीट करते हैं कि अल्लाह के बिना एक व्यक्ति वैसा ही है, जैसे साइकिल के बिना मछलियां।
बढ़ती एक्स मुस्लिम मुहिम
कुछ समय पहले एक कनाडाई-अफ्रीकी मौलवी बिलाल फिलिप्स ने ‘इस्लाम छोड़ने की सुनामी’ आने की आशंका जताई थी। अमेरिकी इतिहासकार और मध्य-पूर्व मामलों के विशेषज्ञ डॉ. डैनियल पाइप्स का मानना है कि एक्स-मुस्लिम एक महत्वपूर्ण घटना के प्रतिनिधि हैं। वे इस्लाम को एक अभूतपूर्व तरीके से चुनौती देते हैं और मुसलमानों के पास प्रभावी बचाव के लिए कुछ खास नहीं होता। उनके अनुसार, मुस्लिम जगत में अपने मजहब से दूर होना ‘जंगल की आग’ की तरह फैल रहा है। अभी तुर्की मूल की लाले गुल ने एक संस्मरण पुस्तक ‘मैं जीना चाहती हूं’ लिख कर इस्लाम छोड़ने की घोषणा की। यह पुस्तक तुर्की में सर्वाधिक लोकप्रिय रही है। यह अब अनेक मुस्लिम देशों में हो रहा है।
असलम बेग कहते हैं कि वाजिब बातें आज की युवा पीढ़ी को भाती हैं। आधुनिक दुनिया के साथ मुस्लिम युवा भी कदम से कदम मिला कर चलना चाहता है। इंटरनेट आने के बाद लोग अपनी पहचान छुपा कर भी सवाल पूछ पा रहे हैं। कुछ एक्स मुस्लिम के सामने आने से खौफ के कारण अब तक खामोश मुसलमानों का हौसला बढ़ा है। एक्स मुस्लिम्स आफ नॉर्थ अमेरिका के अध्यक्ष मोहम्मद सईद कहते हैं कि जब आपके मन में कुछ सवाल, संदेह होते हैं, लेकिन आपके आसपास रहने वाले लोगों को उसी पर भरोसा होता है तो आप खामोश रहते हैं। परंतु जब जवाब देने, संदेह को दूर करने के लिए कोई सामने आ जाता है तो संदेह दूर हो जाते हैं और इनसान अपना रास्ता चुन लेता है। एक्स मुस्लिम की लोकप्रियता का आलम यह है कि इस्लामी उपदेशक जाकिर नाईक को सुनने अब उतने लोग नहीं आते, जितने एक्स मुस्लिम के यूट्यूब चैनल पर सुनने आते हैं। अभी हाल ही में यूट्यूब पर एक्स मुस्लिम एडम सीकर की एक बहस लगातार पांच घंटे चली, जिसमें अंतिम समय तक भी 4,700 लोग जुड़े हुए थे। कई एक्स मुस्लिम के यूट्यूब चैनल पर लाखों की संख्या में दर्शक हैं। यही कारण है कि एक्स मुस्लिम के अलग-अलग भाषाओं में सैकड़ों चैनल चल रहे हैं।
भारत में एक्स मुस्लिम
एक्स मुस्लिम अब्दुल हमीद कहते हैं कि भारत में एक्स मुस्लिम आंदोलन यूट्यूब के जरिए कोविड काल के दौरान ज्यादा फलने-फूलने लगा। कोविड के दौरान घर बैठे समय मिलने पर जब लोग मनोरंजन से दार्शनिक बातों की ओर मुड़े और दार्शनिक पहलू से हर चीज की पड़ताल करनी शुरू की, सवाल करना शुरू किया। इस्लाम एक ऐसा मजहब है जिसको लेकर सवालात की इजाजत नहीं होती। कोई किसी के सामने सवाल नहीं कर सकता। तो यूट्यूब इतना बेहतरीन माध्यम बन कर सामने आया कि इसमें आप बेझिझक, निर्भय होकर सवाल कर सकते हैं, बिना अपना चेहरा दिखाए, बिना अपनी पहचान उजागर किए। लिहाजा, मन में आने वाले सवाल लड़के, लड़कियां, नौजवान, बच्चे पूछने लगे। जो अपने-आप को एक्स मुस्लिम कहते हैं, एक्स मुस्लिम की तरह पेश करते हैं, एक्टिविज्म में हिस्सेदारी करते हैं, आज भी ऐसे बहुत गिने-चुने लोग हैं। लेकिन हकीकत में आज हर घर में एक्स मुस्लिम मौजूद है। उसे सिर्फ दिशा, मार्गदर्शन, हिम्मत और हौसले की दरकार है।
भारत में 2019 में एक्स मुस्लिम आफ केरल नामक संगठन बना। इसके अध्यक्ष डॉक्टर आरिफ हुसैन थेरुवथ बताते हैं कि संगठन में 300 से अधिक नाम दर्ज हैं। परंतु आंकड़ों से इतर 2,000 से अधिक एक्स मुस्लिम संपर्क में हैं। उन्होंने बताया कि संगठन भले अभी बना हो, परंतु इसका काम 10 साल से चल रहा था। भारत में एक्स मुस्लिम्स आॅफ इंडिया नाम से यह संस्था चल रही है। जल्द ही तमिलनाडु में भी इसका पंजीकरण पूरा कर लिया जाएगा। वे कहते हैं कि पूरे भारत में हजारों लोग इस्लाम छोड़ चुके हैं, लेकिन खौफ की वजह से सामने नहीं आते। इसका उदाहरण मई 2022 में केरल में ही सामने आया, जब मलप्पुरम निवासी 24 वर्षीय अस्कर अली ने इस्लाम छोड़ा तो उसके रिश्तेदारों ने ही उसे मारने की कोशिश की। अस्कर केरल में एक्स मुस्लिम्स का चेहरा बन गया। अस्कर ने मलप्पुरम की एक प्रमुख मजहबी एकेडमी से 12 साल का मजहबी कार्यक्रम हुदावी पूरा किया है।
अस्कर ने कहा, ‘‘मैंने इस्लाम का विस्तार से अध्ययन करने के बाद इस मजहब को छोड़ दिया। जब मैं (हुदावी) कोर्स कर रहा था तो इस्लाम से संबंधित सामग्री के अलावा अन्य सामग्री को पढ़ने का अवसर काफी कम था। लॉकडाउन के दौरान मुझे अन्य विषयों को पढ़ने का अवसर मिला, जिससे मेरी आंखें खुल गईं।’’ अस्कर ने कहा कि जो लोग मजहब छोड़ते हैं, उन्हें उनके परिवार के सदस्य नीच प्राणी के रूप में देखते हैं। अस्कर अली फिलहाल अपने दोस्त के यहां रह रहे हैं।
महिलाएं भी छोड़ रहीं इस्लाम
सिर्फ पुरुष ही नहीं, मुस्लिम महिलाएं भी इस्लाम छोड़ने की हिम्मत दिखा रही हैं। सीरिया की एक्स-मुस्लिम डॉ. वफा सुल्तान ने वीडियो जारी कर इस्लाम छोड़ने की घोषणा की और इस्लाम के तहत महिलाओं की अंधकारमय जिंदगी को उद्घाटित किया।
@पाकिस्तानीकाफिर ट्विटर हैंडलर ने ट्वीट किया कि इस्लाम में निकाह के लिए लड़कियों की कोई न्यूनतम उम्र निर्धारित नहीं है। इसलिए कुछ मुस्लिम अपनी बच्चियों को ऐसे ढकते हैं, जैसे वे कोई सेक्सुअल आब्जेक्ट हों।
एक्स मुस्लिम चैनल ‘सचवाला’ के एक कार्यक्रम में एक्स मुस्लिम लड़की जन्नत ने कहा कि सुन्नत तो उसको कहा जाता है जो मुहम्मद साहब के जीवन से साबित हो, जो उन्होंने किया हो। उन्होंने लौंडी रखी तो अभी जो लोग सुन्नत का पालन करते हैं, वे कहें कि उन्हें लौंडी रखना है तो क्या यह सही है? कुरान या मुहम्मद साहब ने तो लौंडी रखना प्रतिबंधित नहीं किया। इसे तो मानवाधिकार वालों ने, दुनिया वालों ने प्रतिबंधित बैन किया। जन्नत कहती हैं कि मौलाना बताते हैं कि मुस्लिम मर्दों को जन्नत में 72 हूरें मिलेंगी। मैं रोजा रखती हूं, नमाज पढ़ती हूं, हर इबादत करती हूं।
मैंने हर जगह ढूंढा कि औरतों को क्या मिलेगा, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला। अल्लाह मुझसे इतनी नफरत क्यों करता है कि वह मुझे कुछ नहीं देगा। इस पर मौलाना ने कहा कि कुछ है, जो मिलेगा। लेकिन अल्लाह ने बताना जरूरी नहीं समझा। तो क्या हम इतने गैर-जरूरी हैं कि अल्लाह ने लिखना भी जरूरी नहीं समझा। और अगर गुमराह भी रखा तो ये भी तो नाइंसाफी है। आपने तो मर्दों को बता दिया कि आपको यह-यह-यह मिलेगा, लेकिन औरतों को गुमराह रखा। इस पर मौलाना बताते हैं कि अल्लाह ने मर्दों को ज्यादा ताकतवर बनाया है। इसीलिए वह चार-चार औरतें रख सकता है। फिर दुनिया में तमाम दवाएं मर्दाना ताकत के लिए ही क्यों बनी हैं? मैंने तो औरतों की ताकत बढ़ाने के लिए कोई दवा नहीं सुनी।
ईएक्सएमएनए अभियान के लिए वीडियो रिकॉर्ड करने वाली मेरिम के अनुसार, इस्लाम छोड़ने के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि वह अब केवल प्रार्थना या उपवास नहीं करती है। वह कहती हैं, ‘‘मैं एक विषाक्त, अपमानजनक और पितृसत्तात्मक वातावरण से मुक्त हो रही हूं। कोई भी मुझे कुछ पहनने के लिए, या कुछ करने के लिए, या कुछ महसूस करने के लिए, या कुछ ऐसा दिखने, जो मैं नहीं हूं, के लिए मजबूर नहीं कर सकता है।
आस्ट्रेलिया के एक्स-मुस्लिम सपोर्ट नेटवर्क की सह-संस्थापक और @HereticalGray ट्विटर हैंडल से जानी जाने वाली निक बताती हैं कि वह अल्लाह के बिना कमाल की क्यों हैं। उन्होंने कहा, ‘‘क्योंकि किसी भी बच्चे को हिजाब या नकाब के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि मेरी कीमत कपड़े से तय नहीं होती। क्योंकि मेरा हिजाब हटाने का मतलब यह नहीं है कि मैं एक अनैतिक व्यक्ति हूं, जो बलात्कार के लायक है।’’
यास्मीन मोहम्मद ने ट्वीट किया, ‘‘हम अब कुछ संकीर्णतावादी मांग के आदेशों के अधीन नहीं हैं। अब हम जीवन का आनंद लेने के लिए स्वतंत्र हैं, जैसा हम चाहते हैं। हमारा मन यह सोचने के लिए स्वतंत्र है कि हम क्या चाहते हैं।
दिसंबर 2021 में इस्लाम छोड़ने वाले केरल के फिल्मकार अली अकबर का कहना है, ‘‘हमारे सेना प्रमुख की मौत के बाद बहुत से लोगों ने हंसने वाली इमोजी लगाई। यह बहुत खराब बात थी। आप सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों के नाम देख सकते हैं। वे सभी मुसलमान हैं। हम सिर्फ अपने मजहब को सबसे पहले रखकर कैसे जी सकते हैं? किसी भी मुसलमान नेता ने ऐसे लोगों के खिलाफ मुंह नहीं खोला और न ही इस तरह के पोस्ट करने से रोका।’’
क्या कहते हैं इस्लाम छोड़ने वाले फिलहाल लंदन में रह रहे एपोस्टेट इमाम कुरान, हदीस के अच्छे जानकार हैं। वह जाकिर नाईक के इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन में काम कर चुके हैं। अब वह पूर्व मुस्लिम हैं। उन्हें इस्लाम की जो बातें आपत्तिजनक लगीं, उसका उल्लेख उन्होंने निम्नवत किया है-
- मुरतद की सजा मौत
- पशु दुर्व्यवहार, जैसे सभी कुत्तों विशेषकर काले कुत्तों को मारना, छिपकली और गिरगिट को मारना, जानवरों को दर्दनाक तरीके से हलाल करके मारना।
- सच्चे मुसलमान हमेशा अल्लाह के रास्ते में किताल (हत्या) करेंगे। कयामत से पहले ईसा को सभी काफिरों को आकर मारना है, महदी ने पूरी दुनिया को जीत लेना है, गजवा-ए-हिंद करने के लिए महदी की सेना खुरासान से काले झंडे के साथ आएगी आदि-आदि।
- महिलाओं को कोई अधिकार नहीं है, जैसे विरासत में आधा हिस्सा, पुरुष मेहरम (पति, पिता, भाई) के बिना अपने घरों से बाहर नहीं जा सकती हैं, उनकी गवाही पुरुष की तुलना में आधी है, पुरुष अपनी पत्नियों को पीट सकते हैं और इस्लामी कानून में इसके लिए कोई सजा नहीं है। यदि एक लड़की के साथ बलात्कार किया जाता है तो उसे 4 पुरुष गवाहों को लानी पड़ती है, वरना उसे पत्थर मारने या कोड़े मारने की सजा दी जाएगी। महिलाओं को तलाक देने का अधिकार नहीं है, इत्यादि।
यहां एक बात महत्वपूर्ण है कि एक्स मुस्लिम काफिर या मुरतद कह दिए जाते हैं। कुछ एक्स मुस्लिम्स का कहना है कि काफिर शब्द को परिभाषित करने की जरूरत है। उनका कहना है कि भारत में जाति सूचक शब्द पर सजा होती है। इसी तरह, काफिर शब्द भी अपमानबोधक है। इसे न्यायिक रूप से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। इसके लिए सजा का प्रावधान होना चाहिए। इस्लाम त्याग चुकीं सकीना (बदला हुआ नाम) कहती हैं, ‘‘मजहब जो भी था, उस पर कट्टरपंथियों ने कब्जा लिया और अब लोग उससे उकता चुके हैं। ये अनपढ़ किस्म के लोग थे जो विज्ञान को नहीं मानते, तर्क को नहीं मानते, और आज के समय में वही बच्चों को बताते हैं। एक्स मुस्लिमों ने उनके तर्कों को झुठला दिया है। इस्लामी बुजुर्ग अगर मुल्लाओं के बताए इस्लाम पर चलें, तो वे अपने ही घरों में अप्रासंगिक हो जाएंगे। मुस्लिम महिलाओं ने इस्लाम की दुनिया देख ली है। वे आजाद होना चाह रही हैं।’’
सकीना की बात की पुष्टि ईरान में हिजाब से मुक्ति के आंदोलन से होती है, जो महिलाओं के भीतर की इस हलचल को दर्शाता है कि अब वे मुल्लाओं की ताबेदारी में रहने को तैयार नहीं हैं। इस्लाम के पुराने दायरे और पाबंदियों को मुसलमान तोड़ रहे हैं, यह मुस्लिम समाज को सोचना पड़ेगा। तर्क की लड़ाई चल रही है। एक्स मुस्लिमों को इसके बाद खौफ की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। मुस्लिम समाज को इस पर भी विचार करना होगा। ल्ल
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