हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है। आज ही भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है, गंगा जी पृथ्वी पर आई थीं, भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की भेंट हुई थी, द्रौपदी को भगवान विष्णु की उपासना करने पर अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी। इसलिए आज दान का विशेष महत्व है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन त्रेता युग का आरंभ माना जाता है। कहते हैं इस दिन किए गए कार्यों से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। ‘न क्षय इति अक्षय’ यानी जिसका कभी क्षय न हो, वह अक्षय है।
इस दिन गंगा स्नान करने की परम्परा है। यदि गंगा स्नान संभव न हो तो घर में ही गंगा का स्मरण कर स्नान करें, तो गंगा स्नान का पुण्य लाभ मिलेगा। इसके बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी जी की मूर्ति को शुद्ध जल से स्नान कराएं। रोली, कुमकुम अक्षत, पंचमेवा, पंच मिठाई, सफेद फूल अर्पित करें। घी का दीपक जलाकर आरती करें। अक्षय तृतीया के दिन गोदान का संकल्प करें और जब संभव हो, तब गोदान करें।
अक्षय तृतीया से जुड़ीं पांच बातें बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। पहली बात तो यह है कि आज ही के दिन भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। भगवान विष्णु के छठवें अवतार थे भगवान परशुराम। परशुराम महर्षि जमदग्नि और माता रेनुका के पुत्र थे। उन्होंने दुष्टों का नाश किया। इन्होंने स्वयं भगवान शंकर से शस्त्र की शिक्षा ली थी और शंकर जी ने उन्हें अपना एक धनुष उनकी वीरता से प्रसन्न होकर दिया था जिस पर बाण चढ़ाने वाले केवल विष्णु या उनके अवतार ही हो सकते थे। इन्हीं गुणों के कारण भगवान परशुराम को ब्रह्म क्षत्रिय भी कहते हैं।
अक्षय तृतीया के दिन ही अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाती है। भंडार और रसोई की देवी माता अन्नपूर्णा की पूजा करने से कभी अन्न के भंडार खाली नहीं रहते। सर्वत्र संपन्नता और प्रसन्नता रहती है।
अक्षय तृतीया के दिन ही सुदामा और कृष्ण के बीच भेंट हुई थी। सुदामा ने भगवान श्रीकृष्ण को उपहार के रूप में सूखे चावल भेंट किए थे। इसके बदले भगवान कृष्ण ने उन्हें दो लोकों का स्वामी बना दिया था। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन भगवान विष्णु को चावल चढ़ाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवों की पत्नी द्रौपदी को भगवान विष्णु की उपासना करने पर आज के दिन ही अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी। इस अक्षय पात्र का भोजन कभी घटता नहीं था।
अक्षय तृतीया से जुड़ी पांचवी कथा गंगावतरण से जुड़ी है। महाराज भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा अक्षय तृतीया के दिन ही पृथ्वी पर आई थीं।
अक्षय तृतीया के दिन वाहन, सोना आदि खरीदना भी शुभ माना जाता है। इसी दिन भगवान विष्णु का विवाह भी हुआ था। इसलिए अक्षय तृतीया को स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना गया है।
मान्यता है कि इस दिन किए जाने वाले दान का फल अक्षय होता है यानी कई जन्मों तक इसका लाभ मिलता है। इसलिए इसे दान का महापर्व माना गया है।
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