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गत 24 फरवरी को कांस्टीट्यूशन क्लब, नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने 'कल्चरल नेशनलिज्म एंड दलित' पुस्तक का लोकार्पण किया। इसके लेखक हैं भाजपा नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. संजय पासवान।
इस अवसर पर डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि इस पुस्तक के माध्यम से एक सामाजिक समस्या को उठाया गया है, जो कि हमारे समाज के लिए हितकारी है। लेकिन वंचित समाज दिनों-दिन कैसे पिछड़ता गया यह एक बहस का विषय है और इस पुस्तक से उस बहस को आगे बढ़ा कर उसको सुलझा व वंचितों के उत्थान के लिए एक नया मार्ग निकाला जा सकता है। उन्होंने कहा कि वंचित समाज ने सदैव से ही भारत माता की सेवा अन्य लोगों की भांति की है। लेकिन आज भी कुछ लोगों में भ्रांतियां हैं जिसके चलते वंचित समाज को हेय दृष्टि से देखा जाता है। यह सर्वथा गलत है। और हमें अपनी सोच को समय के अनुसार बदलना होगा।
डॉ. संजय पासवान ने कहा कि भारत और उसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में वंचित समाज का विशेष योगदान है। यह वही समाज है जिसने तृण व कंदमूल फल खाकर, वनों में निर्भय रहकर भारतीय संस्कृति की रक्षा की। इसने धर्म को बचाने में, सीमाओं को बचाने में, संस्कृति को बचाने में, सभ्यता को बचाने में अगर किसी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है तो वह वंचित समाज का रहा है। लेकिन लम्बे समय से इस वंचित समाज को जो अधिकार मिलना चाहिए था वह नहीं मिल पा रहा है, जो एकीकरण में एक संकट बन रहा है।
लेखक ने पुस्तक के विषय में बताते हुए कहा कि किताब लिखने का अर्थ है वंचित समाज को उसका अधिकार दिलाना, लेकिन यह हक वह न तो लड़कर लेगा और न ही जबरदस्ती वह सौहार्द रूप से अपने हक की मांग करेगा। उन्होंने कहा कि अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं, जिनके मस्तिष्क में विकृतियां भरी हुई हैं। उन विकृतियों को दूर करने के लिए हमने इस पुस्तक को लिखा है। ताकि बुद्धिजीवियों द्वारा इस पर पहले शोध हो, फिर उसका बोध हो और फिर जो गतिरोध है वह समाप्त हो एवं उनको न्याय मिले।
उन्होंने कहा कि वंचित समाज भी भारत माता का पुत्र है और देश का अभिन्न अंग है। इसलिए घर को बचाने के लिए वंचित समाज की चिंता करना आवश्यक है।
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