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– तरुण विजय
बारह साल पहले गोधरा स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में 58 स्त्री, पुरुष, बच्चे तड़पा-तड़पा कर जलती आग में मार डाले गए थे। बंद लोहे के डिब्बे में शैतानों द्वारा पेट्रोल फेंककर लगाई आग में झुलस कर मरना देश ने देखा,पर कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं हुई। उसके बाद जब गुजरात दंगे हुए तो शोर मचा। झूठ, दुष्प्रचार और व्यक्ति विशेष के प्रति शब्द-हिंसा का ऐसा ज्वार उठा कि सब सकते में आ गए। दुनिया में संभवत: किसी एक व्यक्ति के विरुद्ध आघातों का ऐसा जलजला कभी न उठा हो, जितना नरेंद्र मोदी को लेकर में उठा था। मीडिया, विदेशी धन पर पलने वाले स्वयंसेवी संगठन, पुलिस प्रशासन, न्यायपालिका पर दबाव बनाते तथाकथित राजनेता, विभिन्न पार्टियां, पाकिस्तान और अन्य मुस्लिम देशों के जिहादी तत्व,अमरीका, यूरोप व अन्य पश्चिमी देशों के तमाम स्वयंसेवी एन.जी.ओ को राजनैतिक कारणों से मदद देने वाली एजेंसियां-एक तरफ एकजुट,एकांतिक प्रहार कर रही थीं। मीडिया में, उसके एक वर्ग विशेष में गेस्टापो और गोयबल्स को मात देने वाले प्रचार का अभियान छिड़ गया। मोदी हिटलर, मुसोलिनी से भयानक दिखाए गए (लेकिन वामपंथियों का ऐसा प्रभाव रहा कि स्टालिन से तुलना नहीं हुई)। पुलिस द्वारा गर्भवती महिलाओं को मारने संबंधी अरुन्धती राय तक का लेख छपा। जो बाद में असत्य पाया गया और राय को माफी मांगनी पड़ी। एक बड़े अंग्रेजी दैनिक ने लगभग पूरे पृष्ठ का मोदी का साक्षात्कार छापा-जिसमें संवाददाता ने मोदी को एक प्रश्न के उत्तर में यह कहते हुए बताया कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है-ह्य एवरी एक्शन हैज ए रिएक्शनह्ण। बस फिर क्या था। दुनियाभर में छपा कि मोदी गोधरा कांड की प्रतिक्रिया में गुजरात दंगों को न्यायोचित सिद्ध कर रहे हैं। मोदी की जगह यदि कोई और होता तो क्या होता ? जीवित रहना कठिन हो गया होता। मोदी यह फर्जी साक्षात्कार पढ़कर चौंक गए। संपादक को पत्र भेजा-मैने कोई साक्षात्कार नहीं दिया-आपका कोई संवाददाता मुझसे कभी नहीं मिला-फिर यह साक्षात्कार कैसे छपा? कई दिन तक संपादक ने जवाब ही नहीं दिया। फिर श्री अरुण जेटली ने दिल्ली में उन्हें फोन किया और उनकी मेरीडियन होटल में मुलाकात हुई। उन संपादक से श्री जेटली ने पूछा-क्या आप पता लगाएंगे कि किस संवाददाता ने यह जाली साक्षात्कार बनाकर छापा है? और आप उसका खंडन क्यों नहीं छाप रहे हैं ? संपादक ने कहा- मैं जरूर देखूंगा । पर उसके बाद भी,जो जाली साक्षात्कार पहले पन्ने पर छपा था, उसका खण्डन ,भीतर कुछ छोटी-सी पंक्तियों में दो तीन दिन बाद छापा गया।
एक अन्य समाचार चैनल ने श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा मोदी को राजधर्म निभाने की सलाह वाली खबर धूम-धड़ाके से प्रसारित की। ह्यमोदी को राजधर्म निभाने की सलाहह्ण—वाजपेयी। कमाल था। असलियत यह थी कि श्री वाजपेयी ने कहा था-अगली पंक्ति में-ह्यऔर श्री मोदी यह राजधर्म निभा रहे हैं।ह्ण यह ह्यनिभा रहे हैह्णवाली पंक्ति काट दी गई। क्यों? पत्रकारिता का आदर्श यह कि सबसे तेज, सबसे ज्यादा चलने का दावा करने वाले इस चैनल ने खंडन भी नहीं किया और झूठ चलता रहा। 27 फरवरी, 2002 को गोधरा की अमानुषिक, बर्बर और रोंगटे खड़ी करने वाली घटना को सत्ता पक्ष ने किस तरह दबाने का प्रयास किया ? सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जज को लिया गया। एक बनर्जी-कमीशन बनाया-जिसने रिपोर्ट दी कि आग भीतर से ही लगी, यात्री स्वयं अपनी लापरवाही से मरे। सर्वोच्च न्यायालय का एक न्यायाधीश किसी भी कारण ऐसी भयानक,संवेदनहीन और कचरा रपट द, इससे ज्यादा लज्जाजनक क्या होगा। इतनी लचर और कबाड़ थी यह रपट कि जिस सरकार ने यह कमीशन बनाने का गोरखधंधा किया उसको भी यह रपट चुपचाप कूड़े में डालनी पड़ी। तब सरकार में रेल मंत्री ने यहां तक बयान दिया कि मुसलमानों पर आघात के मौके ढूंढने के लिए नरेंद्र मोदी ने स्वयं इन कारसेवकों को मरवा दिया होगा।
फिर आए श्री संजीव भट्ट। 2002 में हादसा हुआ। 2010 में अचानक इस ह्यईमानदार-आदर्शवादीह्ण को अहसास हुआ कि वह 27 फरवरी, 2002 को मोदी द्वारा बुलाई गई उस बैठक में शामिल था, जिसमें मोदी ने तथाकथित रूप से कहा-हिंदुओं को अपने गुस्से का इजहार करने दो-कोई कार्रवाई न करो। इस बैठक में पुलिस डी.जी., प्रमुख सचिव, मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी थे। उसमें एस.पी. स्तर के व्यक्ति को बुलाने का अर्थ ही नहीं था। जांच हुई, मोबाइल से पता चला, उस समय, उस दिन ये अधिकारी अमदाबाद में था, गांधी नगर में था ही नहीं। उनकी ई-मेल, कंप्यूटर पर मेल-व्यवहार की जांच से पता चला कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश कांग्रेस, अन्य ह्यसेक्यूलर संगठनह्ण द्वारा जालसाजी से शपथ-पत्र बनाने, बैठक की रपट फैलाने, ई-मेल ताने-बाने के जरिए न्यायाधीशों के मत प्रभावित करने की विराट साजिश रची गई थी।
इन तमाम तथ्यों को, मोदी के बयान, मीडिया रपटें,आरोप और हकीकत को दो साल की कड़ी मेहनत के बाद एक पुस्तक में पिरोया है एक मुस्लिम लेखक ने। पुस्तक का शीर्षक है-नरेंद्र मोदी-ए विक्टिम ऑफ मैनीपुलेशन्स। लेखक कर्नाटक के प्रसिद्ध मुस्लिम साहित्यकार अनवर मानीपद्दी हैं,जो कनार्टक राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष भी रहे हैं और उन्होंने कनार्टक के सबसे बड़े व वक्फ भूमि घोटाले (दो लाख करोड़) को उजागर किया था।
इस पुस्तक से दुनिया की सबसे बड़ी सेक्यूलर साजिश बेनकाब हो जाती है। 27 फरवरी, 2002 को ही चार बजकर 30 मिनट पर मुख्यमंत्री की प्रेस विज्ञप्ति में शांति की अपील के साथ कहा जाता है कि किसी भी अपराधी को बख्शा नहीं जाएगा- हम किसी प्रकार के भी सांप्रदायिक फैलाव को रोंकेगे। छह हजार पुलिसकर्मी और प्रांतीय पुलिस व केंद्रीय अर्धसैन्य बल की 62 कंपनियां 27 फरवरी को ही संवेदनशील इलाकों में तैनात कर दी गई थीं। पहले ही दिन 217 लोगों की एहतियातन गिरफ्तारियां हुईं, जिनमें 137 हिंदू और 80 मुसलमान थे। उसी दिन पड़ोसी राज्यों से ज्यादा पुलिस मंगाने के लिए नरेंद्र मोदी ने प्रार्थना भेजी-मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रीदिग्विजय सिंह, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने असमर्थता जाहिर कर इंकार किया तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने कुछ पुलिसबल भेजा जो स्थिति काबू में आने तक वहीं रहा। उसके बाद गुजरात दंगों में कुल 790 मुसलमान और 254 हिंदू मारे गए। पर दुनियाभर मेंप्रचार ऐसा किया जाता है मानो सिर्फ और सिर्फ हजारों मुसलमान मारे गए। पुलिस फायरिंग में बड़ी संख्या में दंगाई हताहत हुए थे-जबकि 1984 के सिख दंगों में पुलिस ने कहीं भी फायरिंग नहीं की थी। वही मोदी यदि आज विराट लोकप्रिय नायक बनकर उभरे हैं तो उसका केवल एक ही कारण है- सत्यमेव जयते। अंतिम विजय सत्य की हीहोती है।
पुस्तक का नाम – नरेंद्र मोदी-ए विक्टिम
ऑफ मैनीपुलेशन्स
लेखक – अनवर मनीपद्दी
प्रकाशक – समृद्धसाहित्य, 121, सैंकेड मेन, 11 बी क्रास, विट्ठल नगर, बेंगलुरू
मूल्य -200 रु., पृष्ठ – 206
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