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गत 20 से 23 फरवरी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा भोपाल महानगर में चार दिवसीय क्षेत्रीय बैठक का आयोजन किया गया। इस अनूठे कार्यक्रम के समापन अवसर पर संघ के गणवेशधारी स्वयंसेवकों ने महानगर के प्रमुख मार्गों में पथ संचलन किया । उनके द्वारा भारत माता की जय,जय श्रीराम के नारों से संपूर्ण वातावरण गुंजायमान हो गया। स्थान-स्थान पर नागरिकों और बड़ी संख्या में मुस्लिम बंधुओं ने स्वयंसेवकों पर पुष्प-वृष्टि कर उनका स्वागत किया। पथ संचलन स्थानीय मॉडल स्कूल प्रांगण में समाप्त हुआ। जिसके बाद स्वयंसेवकों ने शारीरिक प्रदर्शन कर उपस्थित लोगांे का मन मोह लिया। समापन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि शारीरिक कार्यक्रम कोई शक्ति प्रदर्शन नहीं बल्कि आत्मदर्शन है। हिन्दू समाज को शक्ति संपन्न बनाने के लिये आवश्यक गुण-संपदा इन्हीं कार्यक्रमों से प्राप्त होती है। शरीर को बनाने से ही मन बनता है। कर्म शरीर करता है, भाव मन और बुद्घि का बनता है। उन्होंने समता एवं शारीरिक कार्यक्रम का विशेष उल्लेख करते हुए उस पर संतोष व्यक्त किया और कहा कि यदि संतोष हो जाये तो उसका अर्थ होता है विकास पर विराम। क्योंकि किसी के अच्छा होने की कोई सीमा रेखा नहीं होती। अच्छे से और अच्छा कैसे हो इसका सतत विचार करना चाहिये। किसी व्यक्ति, संस्था अथवा देश की सफलता के लिये भी यही दृष्टि आवश्यक है।
श्री भागवत ने कहा कि पहले शरीर ठीक रखना जरूरी है क्योंकि शरीर ही सबसे पहले हमारी शारीरिक शक्ति को दर्शाता है। इसलिए युवाओं को चाहिए कि वह शरीर ठीक करें अन्य तो बहुत कुछ स्वत: ही ठीक हो जायेगा। उन्होंने कहा कि संघ का स्वयंसेवक भारत माता के मान, सम्मान व देशहित के लिए कार्य करता है। उसके लिए अगर कोई भी कार्य सर्वोपरि हो सकता है तो वह है देश का मान और सम्मान। श्री भागवत ने कहा कि राष्ट्र उन्नत हो, दुनिया सुखी हो इसके लिये हर घर, गांव-शहर में रहने वाले जनमानस को अपने को ज्ञान से निरंतर मांजते रहना चाहिए क्योंकि ज्ञान ही हमें सदमार्ग पर चलने की शिक्षा प्रदान करता है इसलिए जैसे हम लोगों द्वारा लोटे को प्रत्येक दिन मांजा जाता है, ठीक उसी प्रकार स्वयं को भी रोज मांजना परमआवश्यक है और कभी यह नहीं मानना चाहिये कि मैं मैला नहीं हो सकता। समापन समारोह में रा.स्व.संघ के वरिष्ठ कार्यकताओं सहित सैकड़ों स्वयंसेवक भीउपस्थित थे। – प्रतिनिधि
'तृत्व सही हो तो समस्याएं नहीं आतीं'
गत 25 फरवरी को बिहार के छपरा जिले के स्नेही भवन में पू.रज्जू भैया की स्मृति व विजया एकादशी पर प्रति वर्ष आयोजित होने वाली व्याख्यानमाला आयोजित की गई। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबले की गरिमामय उपस्थित रही। गोष्ठी के विषय ह्यदेश के समक्ष चुनौतियां एवं समाधानह्ण पर संबोधित करते हुए श्री होसबले ने कहा कि आज देश में अनेक प्रकार की समस्यायें हैं, फिर भी देश चल रहा है क्योंकि हम देश के आगे बढ़ने के प्रति आशान्वित रहते हैं। लेकिन कुछ लोग हैं,जो हमारे शान्तिपूर्ण वातावरण में खलल डालकर अपना हित साधते हैं। आज भारत चारों तरफ से दुश्मनों से घिरा हुआ है,जिसकी रक्षा करने के लिए हमारे वीर सैनिकों को अपनी जान पर खेलकर उनसे मुकाबला करना पड़ता है। आतंकवाद,नक्सलवाद जैसी अनेकों समस्यायें देश को खोखला करने में रात-दिन लगी हुई हैं। उन्होंने कहा कि हमारे देश में समस्याओं की अधिकता इसलिए भी है क्योंकि हमारी सरकार द्वारा जो नीतियां बनायी जाती हैं वह आमजन को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि किसी और के लिए बनाई जाती हैं। अगर आज यह नीतियां देशहित के लिए बनाई जाती तो भारत का अन्नदाता आत्महत्या करने पर मजबूर न होता ।
श्री होसबले ने कहा कि आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनगिनत समस्याएं हैं, लेकिन इसके कारण में जाये तो पता चलता है कि लोगों में आज नैतिक शुचिता का अभाव हो गया है। अगर समाज को इन समस्याओं से छुटकारा पाना है तो हमें नैतिकता पर बल देना होगा। साथ ही देश का नेतृत्व भी परिवर्तन करना आवश्यक हैक्योंकि अधिकतर समस्याओं की जड़ गलत हाथों में नेतृत्व का होना है। कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. कृष्णकान्त द्विवेदी ने कहा कि भारत का सामान्य नागरिक यदि धर्म के लक्षणों में से यदि अस्तेय (चोरी नहीं करना) और अपरिग्रह (अनावश्यक संग्रह नहीं करना) को अपना ले तो अधिकांश समस्यायें तो अपने आप ही दूर हो जायेंगी। इस अवसर पर उत्तर बिहार के प्रान्त प्रचारक श्री रामकुमार, जिला संघचालक श्री विजय कुमार सिंह, विभाग प्रचारक श्री राजाराम, नगर संघचालक श्री जगन्नाथ प्रसाद के साथ गणमान्य प्रबुद्घ वर्ग एवं स्वयंसेवकों की गरिमामय उपस्थिति रही।
– प्रतिनिधि
'जबरन मनवाए नहीं जा सकते फतवे'
'वंदेमातरम गाना मुस्लिमों के लिए हराम' , 'पति-पत्नी साथ नहीं बैठ सकते', 'बालों में महिलायें खिजाब न लगायें', 'मुसलमानों को मंगलग्रह पर नहीं जाना चाहिए क्योंकि कुरान इसकी इजाजत नहीं देता', 'जन्मदिन नहीं मनाना चाहिए', 'देवबंदी दूल्हे से बरेलवी लड़की का निकाह हराम है' आदि तमाम ऊल-जलूल फतवे मुल्ला- मौलवियों व उनके संस्थानों द्वारा आये दिन जारी किये जाते रहते हैं। ये वे फतवे हैं, जिनको मानने से ज्यादातर मुसलमान कन्नी काटते हैं। साथ ही समय-समय पर ये फतवे मीडिया में चर्चा का विषय भी बनते हैं,लेकिन गत 25 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने शरियत अदालतों में हस्तक्षेप करते हुए अपनी एक टिप्पणी में कहा कि मौलवियों के फतवों को किसी पर थोपा नहीं जा सकता है। सरकार को चाहिए कि वह इस प्रकार के फतवों के नाम पर जिन्हें परेशान किया जाता है उन्हें संरक्षण प्रदान करे। न्यायमूर्ति सी.के. प्रसाद व पी.सी. घोष की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अधिवक्ता विश्व लोचन मदान की याचिका पर कहा कि फतवा स्वीकार करना या न करना लोगों की इच्छा पर निर्भर करता है। लेकिन किसी भी रूप में जबरदस्ती फतवे को स्वीकारने के लिए बाध्य करना कानून का उल्लंघन है। सर्वोच्च अदालत ने शरियत अदालतों को समाप्त करने और फतवों पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए यह टिप्पणी की। अपनी टिप्पणी देते हुए न्यायाधीशों ने सवाल किया कि कौन सा कानून फतवा जारी करने का अधिकार देता है। अदालत इस मामले में इतना कह सकती है कि यदि किसी को फतवा के कारण परेशान किया जा रहा है तो सरकार उसे संरक्षण देगी। उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता विश्व लोचन मदान ने 2005 में सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की थी, जिसमें शरियत अदालतोंऔर फतवों पर रोक लगाने की मांगकी गई थी। – प्रतिनिधि
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