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-मुजफ्फर हुसैन-
31 मई, 2014 को वर्तमान लोकसभा की अवधि समाप्त होने जा रही है। इसलिए परम्परा के अनुसार नई लोकसभा का गठन जून, 2014 के मध्य तक हो जाएगा। आजादी के पश्चात हमारी लोकसभा का चुनाव हर पांच वर्ष के बाद होता है। केवल 1975 में श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू करने से चुनाव में विलम्ब हुआ था। जिसका नतीजा उन्हें भुगतना पड़ा और वे सत्ता से बाहर हो गई थीं। इसका अर्थ यह हुआ कि अब हमारे देश में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो चुकी हैं जिसे कोई भी राजनीतिक दल उखाड़ कर नहीं फेंक सकता। इतना ही नहीं लोकतंत्र से खिलवाड़ करने वालों को जनता ऐसा पाठ पढ़ाती है कि उन्हें सत्ता से बाहर हो जाना पड़ता है। चुनाव की अवधि अपने तय किए हुए समय के अनुसार होती है। हमारा चुनाव आयोग इतना मजबूत और कानून रूप से सक्षम हो चुका है कि वह चुनाव के मामले में किसी को हस्तक्षेप नहीं करने देता। कुछ वषोंर् से सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ नहीं होते। लेकिन जो विधानसभाएं अपना समय पूरा कर लेती हैं उनके चुनाव हमारा चुनाव आयोग तत्काल आयोजित कराने में अग्रणी रहता है। इस प्रकार भारतीय लोकतंत्र ने अपनी परिपक्वता की छाप सारी दुनिया में कायम की है। हम यह भी देख रहे हैं कि समय के साथ हमारे चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण दुनिया में कायम हुई है। 2014 के आम चुनाव की तिथि यद्यपि घोषित नहीं हुई है लेकिन यह बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि जून 2014 के अंत तक दिल्ली में चुनी हुई सरकार कायम हो जाएगी। भारत में इस समय पंजीकृत राजनीतिक दलों की संख्या 750 है। केन्द्र की सरकार बनाने में तो जाने-माने दल ही भाग लेते हैं लेकिन राज्यों में अपनी-अपनी सांस्कृतिक धारा के आधार पर बनी पार्टियां हैं। कुछ दलों का तो नामों निशान भी अब नहीं बचा है लेकिन चुनाव आयोग की सूची में उनका नाम अथवा चिन्ह पर कोई चुनाव नहीं लड़ता है। हमारे आम चुनाव में अब भी पंथ पर आधारित कुछ दल शेष हैं जिनके कारण बहुधा राष्ट्रीय दलों के चुनाव परिणाम गड़बड़ाते रहते हैं। पंथ, जाति और अपनी स्थानीय पहचान से चुनाव प्रभावित होते हैं। राष्ट्रीय स्तर के दलों के लिए वे कभी चुनौती भी बनते हैं और हार-जीत का नुकसान उनके कारण राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों को उठाना पड़ता है। एक समय था कि दलित मतदाता राजनीतिक पार्टियों के चुनाव नतीजों को गड़बड़ाया करते थे। लेकिन हमारी संवैधानिक व्यवस्था ने इसे बहुत हद तक कम किया है। किन्तु धर्म पर आधारित वोट बैंक आज भी चुनौती है।
अल्पसंख्यक वोट, जिसे मुस्लिम वोट बैंक कहा जाता है, वह आज भी पहले की तरह मजबूत है। इसलिए टिकट बांटते समय सभी राजनीतिक दलों को मुस्लिम मतदाता की ओर विशेष ध्यान देना पड़ता है। यहां एक बात कहनी ही होगी कि बहुसंख्यकों की तुलना में अल्पसंख्यक मतदान के प्रति अधिक जागरूक होते हैं। इसलिए हर उम्मीदवार को अपने निर्वाचन क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं पर अधिक ध्यान केन्द्रित करना पड़ता है। देश के राजनीतिक दल उन्हें रिझाने का लगातार प्रयास करते रहते हैं। कुछ पार्टियां तो सीमा के बाहर जाकर उन्हें मनाने का कार्य करती हैं। क्योंकि उनके संगठित वोट ही हार जीत का कारण बनते हैं। अपने देश में अनेक निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुस्लिम आबादी घनी है। इसलिए राजनीतिक दल अल्पसंख्यकों की उक्त बैठकों कर उनमें से किसी अल्पसंख्यक को ही चुनाव लड़ाने का प्रयास करते हैं। अनुभव यह बतलाता है कि इसके अधिकतम लाभ कांग्रेस को मिला है। विभाजन की त्रासदी को 66 वर्ष बीत गए हैं लेकिन आरोप प्रत्यारोपों का बाजार अब भी गर्म है। इसका परिणाम यह आता है कि हमारे आम चुनाव पर इसकी परछाइंया पड़ती हैं। इसलिए आगामी आम चुनाव में मुस्लिम वोटों की दशा और दिशा क्या होगी इसका उत्तर हम आंकड़ों के दर्पण में ढूंढने का प्रयास करेंगे। 2011 की जनगणना के अनुसार मुस्लिम जनसंख्या 14.23 प्रतिशत यानी 18 करोड़ के लगभग है। देश की सभी राजनीतिक पार्टियां मुसलमानों को रिझाने में लगी हुई हैं। क्योंकि उनका मानना है कि मुस्लिम संगठित होकर मतदान करते हैं इसलिए उनके सामने मजहब आधारित मुद्दे ही रखे जाते हैं। परसनल लॉ, हज यात्रा, मुस्लिम सम्पत्तियों की सुरक्षा, उर्दू और उनके आरक्षण की बात प्रमुख रूप से रहती है। मुस्लिम मतदाताओं के सम्मुख राष्ट्र के विकास सम्बंधी मुद्दे नहीं रखे जाते हैं। राजनीतिक दलों का व्यवहार इस प्रकार का होता है मानो मुसलमानों का भारत से कोई लेना देना नहीं है। मुस्लिम नेता इस प्रकार का वातावरण तैयार कर स्वयं का महत्व और स्वयं की रक्षा का बंदोबस्त तो कर लेते हैं लेकिन राष्ट्रीय प्रवाह में मुसलमानों को किस प्रकार शामिल किया जाए इस पर तनिक भी चिंतन नहीं करते। विभाजन को 66 वर्ष हो गए हैं लेकिन उसकी त्रासदी का रोना रोकर मुस्लिम नेता अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर लेने का सबसे अच्छा अवसर चुनाव के समय को भी मानते हैं। राजनीतिक दल एक-दूसरे की स्पर्धा में अपनी जीत और हार का गणित तो निकाल लेते हैं, लेकिन इतनी बड़ी संख्या को राष्ट्रीय प्रवाह से अलग करके देश के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं इस पर कभी चिंतन नहीं करते? मुस्लिम वोट किसी दल के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है और किसी के लिए कड़वा विष इसलिए अधिकांश मुस्लिम मतदाता इस घेरे से बाहर नहीं निकल पाते हैं। देश के राजनीतिक दलों का यह दायित्व है कि वे मतदाता में राष्ट्रीय भावना का संचार करें। लेकिन जिन्हें मुस्लिम वोटों पर एकाधिकार प्राप्त कर केवल सरकार बनानी है और सरकार में रहना है वे भला इस बात पर क्यों विचार करें? मुस्लिम मतदाता भारतीय राजनीति में सरकार का निर्माण करने में कितने शक्तिशाली हैं इसका अनुमान लगाने के लिए देश में कुल कितने निर्वाचन क्षेत्रों में उनका एकाधिकार है इस पर विचार करना अनिवार्य है। पाठक इस भूल भूलैया को समझ सकें इसलिए हम यहां इस तस्वीर को आंकड़ों में प्रस्तुत करना चाहते हैं। भारत में जबसे लोकतंत्र आया है, प्रत्येक आम चुनाव के समय मुस्लिम आबादी और उसका कुल प्रतिशत कितना था इसे जानना अनिवार्य है।
देश के 35 संसदीय क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें मुस्लिमों का प्रतिशत 31 से 95 प्रतिशत के बीच है। उत्तर प्रदेश-रामुपर 50, मुरादाबाद 45, सहारनपुर 39, बिजनौर 42, अमरोहा 38, आजमगढ़ 35, बहराइच 34, बिहार किशनगंज 67, कामयर 42, पूर्णिया 36, पश्चिम बंगाल मंगीपुर 60, मुर्शिदाबाद 63, रायगंज 56, ब्रह्मपुर 44, बीरभूप हाट 44, मालदा उत्तर 49, माल्दा। दक्षिण 49, डायमंड हार्बर 33, बीभूम 38। असम-धुबरी 56, करीमगंज 52 बारपेटा 59 नोगांव 33 महाराष्ट्र भिवंडी 40 और धूलिया 35 आंध्रप्रदेश-हैदराबाद 35। केरल- यूनानी 66, मल्लापुरम 56, हरियाणा- गुडगांव 38 जम्मू-कश्मीर बारामूला 97, अनंतनाग 65, श्रीनगर 90, लद्दाख 56 लक्ष्यद्वीप 65 प्रतिशत
देश के 40 संसदीय क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं का प्रतिशत 20 से 30 के बीच है।
क्रं. निर्वाचन मुस्लिम राज्य
संख्या क्षेत्र का प्रतिशत
नाम
1 केहराना 30 उत्तर प्रदेश
2 बरेली 29 उत्तर प्रदेश
3 संभल 28 उत्तर प्रदेश
4 डुमरिया गंज 27 उत्तर प्रदेश
5 कैसर गंज 23 उत्तर प्रदेश
6 लखनऊ 28 उत्तर प्रदेश
7 शाहजहांपुर 21 उत्तर प्रदेश
8 बारबंकी 21 उत्तर प्रदेश
9 मेरठ 30 उत्तर प्रदेश
10 मुजफ्फरनगर 28 उत्तर प्रदेश
11 अररिया 29 बिहार
12 मधुबनी 24 बिहार
13 दरभंगा 22 बिहार
14 सीतामढ़ी 21 बिहार
15 चम्पारन पूर्व 20 बिहार
16 चम्पारन दक्षिण 20 बिहार
17 गोड्डा 25 झारखण्ड
18 राजमहल 25 झारखण्ड
19 जमशेदपुर 20 झारखण्ड
20जयनगर 30 प. बंगाल
21 हबेलपुर 25 प. बंगाल
22 लोकबीर 24 प. बंगाल
23 अलबीरिया 22 प. बंगाल
24 मथुरापुर 21 प. बंगाल
25 जोधपुर 20 प. बंगाल
26 बर्धमान 20 प. बंगाल
27 सिल्चर 30 असम
28 कलियाबोर 30 असम
29 गुवाहाटी 25 महाराष्ट्र
30 उत्तर मुम्बई 20 महाराष्ट्र
31 दक्षिण मुम्बई 26 महाराष्ट्र
32 औरंगाबाद 30 महाराष्ट्र
33 गुलबर्गा 20 कर्नाटक
34 बीजापुर 30 कर्नाटक
35 बैतुल 30 मध्य प्रदेश
36 मंदसौर 30 मध्यप्रदेश
37 फरीदाबाद 30 हरियाणा
38 दिल्ली उ.पू. 21.6 दिल्ली
39 आजमपुर 31 जम्मू-कश्मीर
40 जम्मू 28 जम्मू-कश्मीर
लोकसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व की स्थिति इस प्रकार रही…
वर्ष संख्या
1952 21
1957 23
1962 23
1967 29
1971 29
1977 34
1980 49
1984 45
1989 29
1991 27
1996 27
1998 29
1999 31
2004 36
2009 28
वर्ष कुल आबादी मुस्लिम आबादी प्रतिशत
1951 36108890 35856047 9.93
1961 439234771 46998120 10.70
1971 548159652 61448696 11.21
1991 866427039 102586957 12.12
2001 1028737436 138159437 13.43
2011 1210193422 17220523 14.23
1071 जनगणना में असम की जनसंख्या शामिल नहीं है।
(चुनाव आयोग की रपट एवं अन्य सर्वेक्षण पर आधारित)
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