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हालांकि सरकार साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा (निवारण) विधेयक को लेकर अतिरिक्त रूप से जल्दी दिखा रही है, पर क्या उसे देश के 'रीयल एस्टेट' सेक्टर की सूरतेहाल की भी जानकारी है? शायद सरकार की तरफ से इसे सुधारने की चेष्टा इसलिए नहीं हो रही क्योंकि तमाम बड़ी रीयल एस्टेट कंपनियों में कांग्रेस के नेताओं का पैसा लगा हुआ है। जब सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा खुद जमीन घोटालों में फंसे हैं,तो यूपीए सरकार इस क्षेत्र को क्यों सुधारेगी। हां, हरियाणा में कांग्रेस सरकार 10 जनपथ के इशारे पर हरियाणा कैडर के आईएएस अफसर अशोक खेमका को दंड जरूर दे रही है, जिन्होंने गांधी खानदान के दामाद को देश के सामने बेनकाब किया।
काश,सरकार नेशनल कंज्यूमर हेल्पलाइन (एनसीडब्ल्यू) में इन डवलपर्स के खिलाफ दर्ज होने वाली शिकायतों को सुन ले। ये शिकायतें भांति-भांति की हैं। एक अनुमान के मुताबिक, एनसीडब्ल्यू के पास हर रोज विभिन्न बिल्डरों की 75-100 तक शिकायतें आती हैं। जाहिर है कि अगर ग्राहकों की शिकायतों को सुना जाता तो एनसीडब्ल्यू के पास इतनी शिकायतें नहीं आतीं।
ग्राहकों को फ्लैट की वक्त पर डिलीवरी न होना, विवादित प्लाट बेचना,विभिन्न सुविधाओं के लिए अतिरिक्त पैसा मांगना, पूरा पैसा लेने के बाद भी घर देने में विलंब, एग्रीमेंट का पालन ना करना वगैरह- वगैरह शिकायतें इसमें शामिल हंै। एनसीडब्ल्यू के सूत्रों के मुताबिक, खराब निर्माण सामग्री के इस्तेमाल को लेकर भी शिकायतें आ रही हैं। कुल मिलाकर कहा सकता है कि बिल्डरों से ग्राहकों को अनेकानेक शिकायतें हैं। इन शिकायतों के बारे में एनसीडब्ल्यू के सलाहकार सज्जन जिंदल कहते हैं, ह्यमैं मानता हूं कि रीयल एस्टेट कंपनियों को अपने ग्राहकों की शिकायतों को दूर करने के लिए अलग से डेस्क बनाने होंगे। उन्हें हल करना होगा ना कि ग्राहकों से वादे करना। हमारे पास रीयल एस्टेट कंपनियों के खिलाफ शिकायतों के मिलने का सिलसिला खत्म नहीं होता। पर लगता है कि रीयल एस्टेट कंपनियों का रुख आम तौर पर अपने ग्राहकों को लेकर खासा ठंडा ही रहता है। ह्यकहने को हेल्पलाइन केंद्र सरकार के उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के सहयोग से चलती है। पर क्या इतना काफी है। एनसीडब्ल्यू शिकायतकर्ताओं को यह जानकारी देता है कि वे बिल्डर के खिलाफ बिल्डरों की संस्था क्रेडाई में किस तरह से शिकायत लेकर जाएं। उन्हें यह भी बताया जाता है कि वे शिकायत स्पीड पोस्ट या रजिस्टर्ड पोस्ट से ही भेजें। जाहिर है,देश के रीयल एस्टेट सेक्टर को चुस्त करने के लिए ये ऊं ट के मुंह में जीरे के समान है। काश, दंगों के नाम पर सियासत करने वाली सरकार देश की गरीब-गुरबा जनता को घर देने के काम में खड़ी कंपनियों की कार्यशीलता में सुधार लाती। पर ये तो उसके एजेंडा का हिस्सा ही नहीं है।
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