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नेपाल की संविधान सभा का 9 माह पूर्व अजीब परिस्थितियों में अंत हो गया था। अब इतने लंबे अंतराल के बाद फिर से संविधान सभा का निर्वाचन कराने की तैयारी हो गई है। नई संविधान सभा के चुनाव आगामी 21 जून को कराए जाएंगे। गत 13 मार्च को प्रमुख राजनीतिक दलों एनेकपा (माओवादी), नेपाली कांग्रेस, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एमाले) और संयुक्त लोकतांत्रिक मधेशी मोर्चा (मधेशी जनाधिकार फोरम लोकतांत्रिक, तराई मधेश लोकतांत्रिक पार्टी, मधेशी जनाधिकार फोरम गणतांत्रिक, तराई मधेशी लोकतांत्रिक पार्टी नेपाल) और सद्भावना पार्टी के बीच सहमती बन ही गई। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश खिलराज रेग्मी की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद का गठन कर चुनाव कराने संबंधी सहमति पत्र पर हस्ताक्षर हुए।
प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच हुई इस सहमति के अनुसार, नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रेग्मी अंतरिम चुनावी मंत्रिपरिषद के अध्यक्ष चुने गये हैं। 14 मार्च को उन्होंने पद और गोपनीयता की शपथ ली। रेग्मी की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद में नेपाल सरकार के अवकाश प्राप्त विशिष्ट श्रेणी के पूर्व कर्मचारी ही मंत्री के रूप में सहभागी हो सकेंगे। सरकार के कामकाज को नियंत्रित करने और निर्धारित समय सीमा के अंदर चुनाव करवाने के उद्देश्य से एक उच्च स्तरीय राजनीतिक व्यवस्था भी बनाई गईं। इसमें प्रमुख राजनीतिक दलों के अध्यक्ष शामिल होंगे। सहमति के अनुसार, यदि किसी कारणवश 21 जून तक चुनाव नहीं हो पाया तो चुनाव की अगली तिथि सरकार खुद निर्धारित करेगी। चुनाव की राह में आने वाले संवैधानिक अवरोधों को दूर करने के लिए राष्ट्रपति डा.रामबरण यादव अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर मंत्रिपरिषद की सिफारिश पर संविधान में आवश्यक संशोधन कर सकेंगे।
खास बात यह है कि चुनाव के द्वारा गठित संविधान सभा ही संसद का काम भी करेगी। संविधान सभा की सदस्य संख्या को भी घटाकर 491 किया गया है। विघटित संविधान सभा के सदस्यों की संख्या 601 थी।
पिछली संविधान सभा में जिन मतदाताओं ने मतदान किया था उन सभी को मतदान का अधिकार देने के साथ ही जिनकी उम्र 18 वर्ष हो चुकी है, उनको भी मतदाता बनाने का निर्णय किया गया है। साथ ही मतदान कराने के लिए इस बार राष्ट्रीय परिचय पत्र को अनिवार्य नहीं बनाया जाएगा। गैरमधेशवादी पार्टियों का कहना था कि वंशजों के आधार पर नागरिकता लेने वालों की संतानों को कृत्रिम नागरिकता दी जाए, जबकि मधेशवादी पार्टियों की मांग थी कि जिन लोगों ने वंशजों के आधार पर नागरिकता ली है उनकी संतानों को नागरिकता मिलनी चाहिए। इस व्यवस्था से एक प्रकार से मधेशवादी पार्टियों की मांगों को ध्यान में रखा गया है। इसी तरह एकीकृत माओवादी पार्टी की मांग थी कि उसके जो लड़ाके नेपाली सेना में शामिल हुए हैं, उनमें से योग्यता के आधार पर एक को कर्नल और दो को लेफ्टिनेंट कर्नल बनाया जाए। इस पर भी सहमति हुई है। मुख्य न्यायाधीश खिलराज रेग्मी गैरराजनीतिक व्यक्तियों की सहभागिता वाली मंत्रिपरिषद बनाने में भले ही सफल हुए हों, लेकिन उनके सामने चुनौतियों का अंबार है। इन चुनौतियों का सामना करते हुए वे निर्धारित समय के अंदर चुनाव करा पाएंगे या नहीं, इसी के आधार पर उनकी क्षमता का आकलन किया जाएगा। इस नई व्यवस्था के तहत अब रेग्मी मुख्य न्यायाधीश नहीं रहेंगे। लेकिन अपनी नई भूमिका में वे कितने सफल होंगे, यह तो वक्त ही बताएगा। काठमाण्डू से राकेश मिश्र
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