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तीन साल की चुप्पी के बाद, कश्मीर घाटी का बेमिना इलाका जिहादी हत्यारों की एके-47 और हथगोलों की धमक से गूंज उठा। यह उन सबमें से ही एक इलाका है जहां से मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और कश्मीरी अलगाववादियों के बाकी हमदर्द सुरक्षा बलों के विशेष अधिकार खत्म की पैरवी करते आ रहे हैं। 13 मार्च की सुबह दो हथियारबंद जिहादियों ने बेमिना में एक स्कूल के मैदान में दूर के कोने में लगे सीआरपीएफ के शिविर पर धड़धड़ाती गोलियों और हथगोलों से हमला बोलकर 5 जवानों की जान ले ली। जवाबी गोलीबारी में दोनों जिहादी भी ढेर कर दिए गए। एक अन्य आतंकवादी अगले दिन गिरफ्त में आ गया, जो मूलत: मुल्तान (पाकिस्तान) का रहने वाला है। हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान समर्थित हिज्बुल मुजाहिदीन ने ली है।
क्रिकेट खेलने के बहाने मैदान में दाखिल होने वाले वे दोनों आतंकवादी भले ही पाकिस्तान से जिहादी पट्टी पढ़ाकर भेजे गए थे, लेकिन घाटी में ही ऐसे कितने ठिकाने हैं जहां कट्टरवादी तत्व भारत से दुश्मनी का सबक पढ़ाते आ रहे हैं। कश्मीर में 10 जिले ऐसे हैं जहां ऐसे नफरती दिमागों की फसल तैयार की जाती है। उनमें से भी 5 जिले ऐसे हैं जहां से अलगाववादी तत्व अपने हिंसक अभियानों के लिए पत्थरबाजों को बुलाते हैं और राज्य सरकार से उन्हें 'राह भटके नौजवानों' के नाम पर हजारों रुपए दिलाते हैं। उमर सरकार दिल्ली से 'और पैसा और पैसा' उगाहती है, जिसे भारत विरोधियों को 'राह पर लाने' के नाम पर बांट देती है। घाटी में कुकुरमुत्तों की तरह ऐसे अवैध मदरसे रातोंरात उग आते हैं जिनमें तालीम के नाम पर कम उम्र दिमागों में भारत के प्रति नफरत रोपी जा रही है। यानी दिल्ली के पैसे पर भारत के दुश्मन खड़े करने का एक बड़ा सुनियोजित इंतजाम कर लिया गया है।
कुछ वर्ष पूर्व केन्द्र सरकार ने अल्पसंख्यकों यानी मुस्लिमों को रिझाने के लिए मदरसों-मकतबों में शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने के नाम पर एक नीति घोषित की थी। इसके अंतर्गत इन मजहबी शिक्षा संस्थानों को भारी मात्रा में अनुदान राशि उपलब्ध कराने का क्रम शुरू किया गया। अनुदान राशि जम्मू-कश्मीर में भी उपलब्ध करवाई जा रही है, यद्यपि इस राज्य में मुसलमान बहुसंख्यक हैं और हिन्दू अल्पसंख्यक।
इस पैसे के बूते जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में नए-नए मदरसे खुलने लगे हैं जिनमें मजहबी शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है और इससे भी बढ़कर पढ़ाने वाले मौलवियों-मुल्लाओं की संख्या में रहस्यमय ढंग से बढ़ोत्तरी देखने में आई है।
गत तीन वर्षों के दौरान जम्मू-कश्मीर में, सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मदरसों की संख्या 388 हो गई है, जिनमें से 237 कश्मीर घाटी में हैं जबकि 121 जम्मू संभाग में हैं। इनमें पढ़ने वालों की संख्या 10,000 के लगभग हो गई है और अध्यापकों की संख्या 800 तक पहुंच गई है। सरकारी आकड़ों के अनुसार 2001 में ऐसे मदरसों की संख्या मात्र 2 थी और मकतब 39 थे, जिनमें मजहबी शिक्षा देने वालों की संख्या 41 थी और पढ़ने के नाम पर मात्र 500 छात्र थे।
एक और विचित्र बात यह सामने आ रही है कि 117 मदरसे ऐसे हैं जो पंजीकृत ही नहीं हुए, किन्तु केन्द्रीय योजना के अंतर्गत उन्हें भी लाखों रु. की धनराशि उपलब्ध करवाई जा रही है, जबकि कानूनन कोई भी शिक्षण संस्थान पंजीकृत किए बिना चलाया नहीं जा सकता।
उल्लेखनीय है कि कश्मीर घाटी में उग्रवाद के पनपने से पूर्व जमात-ए-इस्लामी ने बड़ी संख्या में स्कूल तथा अन्य शिक्षण संस्थान खोले थे। 1990 में जब उग्रवाद ने भयानक रूप धारण कर लिया तो परिस्थितियों में सुधार लाने के लिए तत्कालीन राज्यपाल श्री जगमोहन ने जो कदम उठाए उनके अंतर्गत एक यह प्रयास भी था कि जमात-ए-इस्लामी तथा कुछ अन्य मजहबी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे सभी शिक्षण संस्थानों को सरकारी नियंत्रण में ले लिया गया था। किन्तु अब ऐसे भी समाचार हैं कि जम्मू-कश्मीर में मजहबी शिक्षा के नाम पर बड़ी मात्रा में सउदी अरब तथा कुछ अन्य देशों द्वारा भी धन उपलब्ध करवाया जा रहा है। इस प्रकार मजहबी शिक्षा के नाम पर कट्टरवादी मानसिकता को और गहरा करने का प्रयत्न चल रहा है। विशेष प्रतिनिधि
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