पाकिस्तान बन रहा है बीमार एवं पंगु राष्ट्र
|
पाकिस्तान बन रहा है बीमार एवं पंगु राष्ट्र
पाकिस्तानी परमाणु बम के जनक डा. अब्दुल कदीर खान का कहना है कि परमाणु बम जितना खतरनाक नहीं है उससे खतरनाक हैं नजदीकी रिश्तेदारी में होने वाले विवाह। एक ही खानदान में जब चाचा और मामा के बच्चे आपस में विवाह कर लेते हैं तो उसके नतीजे बड़े भयंकर होते हैं। ऐसी शादियां आने वाली अनेक पीढ़ियों को बर्बाद कर देती हैं। परमाणु बम के प्रभाव से एक साथ सब मर जाते हैं, लेकिन इस प्रकार के विवाह तो सम्पूर्ण परिवार के बौद्धिक और शारीरिक शक्ति को नष्ट कर देते हैं। अब्दुल कदीर का कहना है कि हमारे सामाजिक और राजनीतिक नेताओं को परमाणु बम के प्रभाव से अधिक चिंता आपस होने वाले विवाहों की करनी चाहिए।
कष्टदायी परीक्षा
पिछले दिनों इस सम्बंध में उन्होंने कराची से प्रकाशित होने वाले दैनिक जंग में एक विस्तृत लेख लिखा है। इसमें उन्होंने लिखा है, 'कुछ दिन पूर्व उन्होंने थैलीसीमिया नामक एक खतरनाक बीमारी के सम्बंध में कुछ लेख लिखे थे। ये लेख पाठकों के बीच बड़े लोकप्रिय हुए। उनकी असंख्य प्रतिक्रियाएं मुझे मिलीं। लेकिन आज मैं उससे भी अधिक खतरनाक बीमारी की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। मैं कोई डाक्टर नहीं हूं लेकिन एक पाठक के नाते जब कुछ गम्भीर मुद्दों पर चर्चा करता हूं तो यह भी एक प्रकार की देश सेवा ही है। पाकिस्तान में एक ही खानदान के निकटवर्ती रिश्तों में विवाह कर लिए जाते हैं। लोग भले ही इसे अपने यहां चली आने वाली रस्म अथवा परम्परा कहें लेकिन पाकिस्तान के लिए यह अपने आपमें एक परमाणु बम है। मुस्लिमों में सबसे उत्तम विवाह सगे भांजे-भतीजियों और भतीजे-भांजियों के बीच माने जाते हैं। लेकिन इन्हीं शादियों के कारण उनके बच्चे असंख्य बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। केवल उनके बीच ही नहीं, बल्कि उनकी आने वाली संतानों को भी इसका परिणाम भोगना पड़ता है। यह एक कष्टदायी परीक्षा बन जाती है। इस सम्बंध में असंख्य आलेख और पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। पढ़े-लिखे लोग 'वीकिपीडिया' और 'गूगल' पर जाकर इस सम्बंध में चौंका देने वाली जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं।' आगे वे लिखते हैं कि 'इस सम्बंध में पाकिस्तान टुडे (21 फरवरी, 2012) में मुजफ्फर अली का एक लेख प्रकाशित हुआ था। इसमें भाई-भाई की संतानों, बहन-बहन की संतानों और भाई-बहनों की संतानों के बीच होने वाले विवाहों के घातक परिणाम की चर्चा की गई है। ज्यों-ज्यों यह रिवाज बढ़ता जा रहा है उतनी ही आबादी में भयंकर घातक बीमारियां फैलती जा रही हैं, जिनके परिणाम बड़े दूरगामी होते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ के प्रोफेसर डा. मोहम्मद असलम के शोध पर आधारित आंकड़ों के आधार पर मुजफ्फर अली ने बताया है कि ऐसी शादियों के परिणामस्वरूप न केवल 50 प्रतिशत लोग हमेशा बीमार रहने वाले पैदा होते हैं, बल्कि मानसिक, शारीरिक रूप से पंगु रहने वाली बीमारियों से भी ग्रसित होते हैं। इन बीमारियों में बहरापन और अंधापन एक सामान्य परिणाम है। मानसिक रूप से कमजोर बच्चों का जन्म माता-पिता के लिए सबसे बड़ा सरदर्द है। कमजोर स्मरण शक्ति तो सामान्य बात है ही। बच्चे हकलाने लगते हैं। उनकी तोतली जुबान समाज में उनके माता-पिता के लिए अपमानित होने का एक कारण हो जाता है। एक से 6 वर्ष के बच्चों में लार गिरना और मुंह से दुर्गंध आना एक सामान्य बात है। लड़की का शारीरिक विकास रुक जाता है। उसके गर्भाशय में कैंसर हो जाने के अवसर बढ़ जाते हैं। उक्त बीमारियां केवल भाई बहन के साथ होने वाली शादियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि समान बिरादरी में भी विवाह होते रहने के कारण अनेक दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं। उनके दांत जल्द गिरने लगते हैं और मुंह में छालों की आम शिकायत होती है।
खतरनाक बीमारी
पाकिस्तान में लगभग 82 प्रतिशत युगल भाई-बहन के रिश्ते वाले हैं। 7 प्रतिशत खूनी रिश्तेदार हैं। यानी पति और पत्नी का खून एक ही समूह का होता है। दुनिया में अनेक ऐसे देश हैं जहां चचेरे भाई-बहन के बीच विवाह पर प्रतिबंध है। यदि ऐसा होता है तो सरकार उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई करती है। निकटवर्ती विवाह में 20 प्रतिशत बालक किसी न किसी रोग से ग्रसित रहते हैं। प्रोफेसर असमल खान की जांच-पड़ताल ने बताया है कि 44 प्रतिशत रोगी चचेरे भाई-बहन की संतानें थीं। इनमें बीमार लड़के और लड़कियों का प्रतिशत समान था।'
डा. अब्दुल कदीर खान लिखते हैं कि इस सम्बंध में दूसरा आलेख 11 फरवरी, 2013 को अंग्रेजी अखबार 'टेलीग्राफ' में छपा था। इसके लेखक रिबेकाले फोर्ट हैं। इस लेख में इंग्लैंड में बसने वाले पाकिस्तानी परिवारों के सम्बंध में अत्यंत चिंताजनक बातें लिखी गई हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तानी परिवारों में 50 प्रतिशत से अधिक विवाह चचेरे भाई-बहन में होते हैं। उनके बालक सामान्यत: अन्य नागरिकों की तुलना में दस गुना अधिक बीमारियों से पीड़ित होते हैं। इनमें बच्चों की मृत्यु दर भी बहुत अधिक होती है। मां के गर्भ में मर जाने वाले बच्चे भी यहां अधिंक देखे जाते हैं। जन्म से ही बच्चे विकलांग होते हैं। यहां गर्भपात की घटनाएं अधिक घटती हैं। अधिकतर बीमार बच्चे पांच वर्ष की आयु होने तक दम तोड़ देते हैं। चौंका देने वाली इस रपट में यह बात भी सामने आई है कि लगभग 700 बच्चे हर साल इंग्लैंड में खानदानी शादियों के कारण खतरनाक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। अंत में डा. कदीर लिखते हैं कि इसके बावजूद हम अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं कर रहे हैं और अपनी गलतियों के कारण एक बीमार और पंगु पाकिस्तान को जन्म दे रहे हैं। पाठकों को यह बता दें कि भारत में आज भी अनेक गौत्रों को छोड़कर ही लड़के-लड़की का रिश्ता तय किया जाता है। लेकिन प्रेम विवाह इस रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा है। उनका शारीरिक प्रेम राष्ट्र प्रेम को प्रभावित करता है। भारत में भी विवाह का समाजशास्त्र लड़खड़ाने लगा है। इसलिए डा. अब्दुल कदीर की इस चिंता पर हम भी विचार करेंगे तो समाज और देश के साथ न्याय हो सकेगा।
नेताजी का पैतृक घर बनेगा स्मृति–स्थल
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के कटक (उड़ीसा) स्थित पैतृक घर को अब स्मृति-स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। यह जानकारी उड़ीसा के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री महेश्वर मोहंती ने दी है। गत दिनों उन्होंने उस घर का दौरा किया था। मालूम हो कि नेताजी के पिता जानकी नाथ बोस और उनकी माता प्रभावती बोस ने 1916 में पुरी के तत्कालीन जिलाधीश से यह घर बनाने के लिए पट्टे पर जमीन ली थी। पट्टे की अवधि 30 साल थी। माता-पिता के न रहने के बाद यह मकान नेता जी के नाम हो गया था। 1946 में यह मकान शरत चंद्र बोस, सुनील चन्द्र बोस, शैलेश चन्द्र, सुभाष चन्द्र, विजेन्द्र नाथ, अशोक नाथ, आमीय नाथ, शिशिर कुमार, सुब्रत घोष एवं शांतलता घोष के नाम किया गया था। इन सबके निवेदन पर 1976 में इस घर के पट्टे का नवीनीकरण दूसरी बार किया गया। इन लोगों ने इस घर से नेता जी का नाम भी हटाने का अनुरोध किया था। तर्क दिया गया था कि अब वे जीवित नहीं हैं। किन्तु सम्बंधित विभाग ने नेता जी के देहान्त का प्रमाणपत्र मांगा, जो अब तक बना ही नहीं है। यह आवेदन वर्षों तक सरकारी दफ्तर में धूल फांकता रहा। 3 अगस्त, 2011 को पुरी के जिलाधीश फकीर चरण शतपथी ने उस आवेदन का निपटारा किया और जमीन का पट्टा रद्द कर दिया। अब यह घर सरकारी सम्पत्ति का हिस्सा है और इसलिए सरकार ने उस घर को स्मृति-स्थल के रूप में विकसित करने का फैसला लिया है। भुवनेश्वर से पंचानन अग्रवाल मुजफ्फर हुसैन
टिप्पणियाँ