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बंगलादेश में अल्पसंख्यक हिन्दू हमेशा से ही सताए जाते रहे हैं। 1946-47, 1971, 1990, 1992, और 2001 इसके न भूलने वाले वर्ष हैं। सन् 2013 की शुरुआत एक बार फिर न भूलने वाला वर्ष बनकर आया है। इस बार फिर बंगलादेश मुक्ति संग्राम की आड़ में पाकिस्तान के लिए काम कर रहे दिलवर हुसैन सईदी को मिली मौत की सजा हिन्दुओं के लिए काल बनकर आयी है। जमाते-इस्लामी के गुण्डे टूट पड़े हैं हिन्दुओं के मोहल्लों पर और लूट रहे हैं उनका माल-असबाब, जला रहे हैं उनके घर, ताकि वे भाग जाए हिन्दुओं के देश भारत में। भारत-बंगलादेश सीमा से ऐसे लोग झुंड के झुंड भारत आ रहे हैं। नोआखली, चटगांव, काक्स बाजार, कुमिला, लक्ष्मीपुर, गइबंघ, ब्रह्मणबारिया, सिल्हट, बगोरहाट और ठाकुरगांव सहित 22 जिलों में अराजकता और हिंसा का नंगा नाच हो रहा है।
इस सबके विरुद्ध अब बंगलादेश के ही नहीं, अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी मानवाधिकारवादी तेजी से सक्रिय हुए हैं और मानव श्रंृखला आदि बनाकर आक्रोश प्रकट कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के न्यूयार्क स्थित मुख्यालय पर गत 10 मार्च को बंगलादेशी हिन्दुओं के समर्थन में मानवाधिकारवादियों ने प्रदर्शन किया। इससे पूर्व बंगलादेश हिन्दू-बौद्ध-ईसाई एक्य परिषद की अमरीका स्थित समिति ने न्यूयार्क में 2 मार्च को संवाददाता सम्मेलन भी आयोजित किया। इस समिति ने बंगलादेश में हिन्दुओं की स्थिति से अमरीका के विदेश विभाग, ह्यूमन राइट्स वाच और एमनेस्टी इन्टरनेशनल को भी ज्ञापन दिए।
इधर बंगलादेश हिन्दू-बौद्ध-ईसाई एक्य परिषद के तत्वावधान में गत 3 मार्च को चटगांव में मानव श्रृंखला बनाई गई। ढाका नेशनल प्रेस क्लब के सामने भी मानवाधिकारवादियों ने यह श्रृंखला बनाई। इसमें एक्य परिषद के अलावा बंगलादेशी हिन्दू महाजोत, बंगलादेश पूजा परिषद्, बंगलादेश सेवाश्रम फाउंडेशन और इस्कान आदि संस्थाएं शामिल हुई। 'हिन्दू एक्जिस्टेंस फोरम' ने भी अमरीका सहित यूरोपीय देशों में बंगलादेशी हिन्दुओं की व्यथा-कथा बताने का अभियान चला रखा है।
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