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तो आईबी किसके प्रति जवाबदेह?

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Mar 2, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Mar 2013 16:06:49

…तो आईबी किसके प्रति जवाबदेह?

राजनाथ सिंह 'सूर्य'

इस समय राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा को लेकर जांच एजेंसियों की काबिलियत पर जबरदस्त प्रश्नचिह्न लग गया है। मुझे लगता है बयालीस साल पूर्व की एक घटना इसका कारण समझने में शायद सहायक और भविष्य के लिए दिशा संकेत भी साबित हो सकती है। उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस और भारतीय क्रांति दल की संयुक्त सरकार थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी लखनऊ आई थीं। राजभवन में उनकी प्रेस वार्ता थी, जिसके लिए हम सभी मौजूद थे। मैंने देखा कि गुप्तचर ब्यूरो (आई.बी.) के लखनऊ में नियुक्त उपनिदेशक बेचैनी से बरामदे में घूम रहे थे। वे राजस्थान काडर के आईपीएस अधिकारी थे और जब वे जयपुर में थे तब से उनका मेरे साथ आत्मीय सम्बन्ध था। मैंने उनसे बेचैनी का कारण पूछा। वे झल्लाए हुए थे, बोले, 'आईबी देश की सुरक्षा पर निगरानी के लिए बना संगठन है। के.सी. पंत (तत्कालीन गृह राज्यमंत्री) मुझसे कह रहे हैं कि यह पता लगाकर बताओ कि वीकेडी (भारतीय क्रांति दल) से कितने विधायक टूट सकते हैं? यह तो मेरा काम नहीं है।' इस घटना के बाद वे आईबी की प्रतिनियुक्ति छोड़कर राजस्थान वापस चले गए, जहां पुलिस महानिदेशक के पद से अवकाश ग्रहण किया। कांग्रेस ने 1980 में विधानसभा के लिए जिन उम्मीदवारों का चयन किया उसकी समीक्षा भी आईबी ने ही की थी। यह एक जांच एजेंसी का दुरुपयोग नहीं तो क्या है? अनेक लोकतांत्रिक देशों में गुप्तचर एजेंसियां संसद के प्रति जवाबदेह होती हैं। पर भारत में आईबी गृह मंत्रालय के अधीन काम करती है। इसलिए सत्तारूढ़ पार्टी उसका अपने हित में दुरुपयोग करती है। शायद यही कारण है कि आईबी को संसद यानी आम जनता के प्रति जिम्मेदार नहीं बनने दिया जा रहा है।

देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा की निगरानी के लिए जो एजेंसियां बनी हैं उनका राजनीतिक उपयोग तो अब खुलेआम विरोधियों को फंसाने या उलझाए रखने अथवा बचाने के रूप में किया जा रहा है। यह बात तो वे भी कहने लगे हैं जो सत्ता को संभालने के लिए बैसाखी की तरह इस्तेमाल हो रहे हैं। हैदराबाद विस्फोट के बाद इन एजेंसियों की क्षमता पर एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है और केन्द्र सरकार नेशनल काउंटर टेरेरिज्म सेंटर (एनसीटीसी) को सबल बनाने में लग गई है। भले ही शांति व्यवस्था के लिए उत्तरदायी राज्यों की कई सरकारों ने इसे राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बताया हो। एनसीटीसी का कार्यालय नार्थ ब्लॉक से आईबी भवन भेजने के बाद उसे फिर नार्थ ब्लॉक लाया जा रहा है। इस तर्क के साथ कि एनसीटीसी आईबी के अधीन नहीं है। इन चर्चाओं के बीच जहां एक तथ्य यह उभरकर आया है कि अब तक जितने भी मामले सीबीआई को सौंपे गए हैं उनमें से एक में भी सजा क्यों नहीं हो सकी? हेलीकॉप्टर प्रकरण की जांच सीबीआई को सौंपने के साथ यह भी सवाल उठ खड़ा हुआ है कि जिस एजेंसी ने बोफर्स दलाली के मामले में दलाल क्वात्रोकी को इटली का नागरिक होने के कारण बच निकलने का मौका दिया, वह क्या हेलीकॉप्टर घोटाले में इटली सम्बन्ध के कारण कुछ कर सकेगी?

एनसीटीसी का उपयोग राज्यों के स्वायत्त में बाधक होने का आरोप निराधार नहीं है। महाराष्ट्र में 'मकोका' कानून लागू है। मध्य प्रदेश और गुजरात की सरकारों ने आतंकवाद से निपटने के लिए वही कानून शब्दश: अपने राज्यों में लागू करने का विधेयक पास किया। वह राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए पिछले आठ साल से लंबित है? क्यों, क्योंकि वहां गैर- कांग्रेसी सरकारें हैं? यदि गुजरात और मध्य प्रदेश में 'मकोका' जैसा कानून गैरवाजिब है तो फिर वह महाराष्ट्र में क्यों? क्या यह आरोप लगाने का अवसर नहीं देता कि केन्द्र सरकार कांग्रेस और गैर- कांग्रेसी सरकारों के प्रति अपने रवैये में भेदभाव करती है। इसलिए प्राय: सभी गैर-कांग्रेसी सरकारें और राजनीतिक दलों ने, जिनमें बैसाखी बने दल भी हैं, एनसीटीसी का विरोध किया है। कांग्रेस का यह स्वभाव बन चुका है कि आतंकवाद या किसी भी राष्ट्रीय समस्या के संदर्भ में देश में एकजुटता का प्रयास करने के बजाय उन पर अपने विचार थोपना चाहती है। उसके 'विचारकों' का ध्यान अब 'पोटा' से भी अधिक कठोर कानून बनाने के पक्ष में है लेकिन सवाल यह है कि 'पोटा' को हटाया ही क्यों? उसके एक प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि 'पोटा' का दुरुपयोग गुजरात के मुसलमानों को सताने के लिए किया जा रहा था। शायद आरोप लगाते समय अपने कृत्यों के बारे में वे भूल जाते हैं। आज महाराष्ट्र में 'मकोका' के तहत जितने मुसलमान जेलों में हैं उतने गुजरात में कभी नहीं रहे। क्या कारण है कि विस्फोट की सर्वाधिक घटनाएं आंध्र और महाराष्ट्र में हो रही हैं? इसका एक कारण तो बहुत स्पष्ट है कि हैदराबाद और मुम्बई अरब देशों और दुबई के माध्यम से पाकिस्तान के हस्तकों की गतिविधियों का केंद्र बन गया है।  दूसरा कारण यह है कि इन दो राज्यों में अर्से से कांग्रेस का शासन है जो सत्ता में बने रहने के लिए सांप्रदायिक संगठनों पर वोट बैंक की राजनीति के कारण अंकुश लगाने के बजाय उन्हें पनपने देने की छूट दे रखी है।

कांग्रेस सरकार का दावा है कि सारी आतंकी गतिविधियों के सूत्रधार पाकिस्तानी हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है। हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने यहां तक सबूत एकत्रित कर लिए हैं कि पाकिस्तान में कहां-कहां प्रशिक्षण केंद्र चल रहे हैं, लेकिन एक के बाद  एक घटनाओं के बावजूद उनको ध्वस्त करने की कारर्वाई क्यों नहीं हो रही है? क्योंकि कांग्रेस का मानना है कि उससे उसका 'वोट बैंक' प्रभावित होगा। उसने सुरक्षा एजेंसियों की गतिविधियों को वोट बैंक बढ़ाने भर के लिए सीमित कर दिया है। हैदराबाद के दिलसुख नगर जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति तब तक होती रहेगी जब तक ऐसी नियत वालों के हाथ में सत्ता रहेगी। इसका संज्ञान लेने के साथ इस बात का भी संज्ञान लेना सर्वथा उचित होगा कि 'राष्ट्रीय' और अन्तरराष्ट्रीय शक्तियों द्वारा निरंतर उग्रता बढ़ाने के बावजूद गुजरात सांप्रदायिक उन्माद या आतंकी घटनाओं से क्यों मुक्त है? जबकि नरेंद्र मोदी ऐसे तत्वों के प्रथम लक्ष्य हैं।

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