मौन है कि टूटता नहीं
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बात बेलाग
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाढरा के तिलिस्मी भूमि सौदों की जांच करने वाले वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका को स्थानांतरण का आदेश रात दस बजे थमाये जाने के बाद तो यह समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए कि दामाद की खातिरदारी में हरियाणा की भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार नियम-कानून-नैतिकता की सारी हदें ही पार कर गयी, पर चोरी और सीनाजोरी की भी हद देखिए। वर्ष 2005 में भजनलाल और चौधरी बीरेंद्र सिंह सरीखे दिग्गजों को पछाड़ कर सोनिया की कृपा से मुख्यमंत्री बने हुड्डा स्थानांतरण को 'सरकार का विशेषाधिकार' बताते हुए उल्टे खेमका पर ही अनुशासन और आचरण का कोड़ा फटकारने जा रहे हैं। अंजाम जो भी हो, पर अक्सर सरकार की 'जी-हुजूर' मान ली जाने वाली आईएएस बिरादरी के ही एक सदस्य के साहस ने साबित कर दिया है कि अभी तंत्र पूरी तरह सड़ा नहीं है। लेकिन सत्ता राजनीति की बेशर्मी देखिए, 'दामाद' को आर्थिक लाभ पहंुचाने के लिए नियम-कानून-नैतिकता को ताक पर रख कर खेल गये इस बेशर्म खेल में मौनी बाबा के रूप में बदनाम होते जा रहे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मादाम सोनिया का मौन टूटता नजर नहीं आ रहा। हां, दरबार के चारण-भाट अपने नंबर बढ़वाने के खेल में चाटुकारिता का यह अवसर नहीं चूकना चाहते। मंत्रियों से लेकर पदाधिकारियों तक, कांग्रेसियों में होड़ लगी है कि दस जनपथ और उसके दामाद के बचाव में कौन कितना आगे जा सकता है।
कानून मंत्री का फर्जीवाड़ा
राजनीतिक भ्रष्टाचार की बाबत अक्सर कहा जाता है कि हम्माम में सभी नंगे हैं। शायद सच भी यही है, लेकिन देश के कानून मंत्री बनाये गये सलमान खुर्शीद ने साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार में भी कांग्रेसियों का कोई जवाब नहीं। देश को लूटने के किस्से-कहानियां तो आजादी के बाद कांग्रेस शासन से ही शुरू हो कर अभी तक अनवरत जारी हैं, लेकिन खुर्शीद ने तो विकलांगों को भी नहीं बख्शा। डा. जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट चलाने वाले खुर्शीद और उनकी पत्नी लुईस विकलांगों के नाम पर भी घोटाला करने से नहीं चूके। जिस मनमोहन सिंह सरकार में खुर्शीद मंत्री हैं, उसी के सामाजिक अधिकारिता मंत्रालय से विकलांगों को उपकरण बांटने के लिए मिले साढ़े इकहत्तर लाख रुपये फर्जी शिविरों के नाम पर खुर्दबुर्द कर दिये गये। हालांकि यह फर्जीवाड़ा देश के कानून मंत्री के ट्रस्ट ने किया, लेकिन तरीके किसी शातिर जालसाजवाले अपनाये गये। सरकार से अधिकाधिक अनुदान पाने के लिए एक अधिकारी के फर्जी हस्ताक्षरों वाला हलफनामा दिया गया तो दूसरे अधिकारी के फर्जी हस्ताक्षरों वाले पत्र का इस्तेमाल किया गया। जैसे इतना ही काफी न हो, उस अनुदान को खुर्दबुर्द करने के लिए ऐसे-ऐसे गांवों में शिविर लगा दिये गये, जो हैं ही नहीं। जाहिर है, जब गांव फर्जी हैं तो फिर वे स्वास्थ्य केंद्र कैसे असली हो सकते हैं, जहां शिविर लगाने का दावा किया गया है? पर बात यहीं नहीं रुक जाती, अनैतिकता और अमानवीयता की हद तब हो जाती है, जब विकलांग उपकरण पाने वालों की सूची में ऐसे-ऐसे नाम शामिल कर दिये गये, जो इस दुनिया में ही नहीं हैं।
मौसेरे भाई
हर घोटाले के बाद मनमोहन सिंह सरकार का एक ही जवाब होता है कि सीबीआई मामले की जांच करेगी और दोषी दंडित किये जायेंगे। विपक्ष का जवाबी सवाल होता है कि यह सरकारी एजेंसी सरकार या उसके किसी मंत्री के विरुद्ध कैसे और कैसी जांच करेगी। कानून मंत्री सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी लुईस खुर्शीद के ट्रस्ट द्वारा विकलांग कल्याण के नाम पर की गयी साढ़े इकहत्तर लाख की जालसाजी में सरकार ने विपक्ष को यह मौका भी नहीं दिया। दरअसल सरकार तो कुछ नहीं बोली, लेकिन कठघरे में खड़े खुर्शीद ने साहसिक मुद्रा ओढ़ते हुए चुनौतीपूर्ण अंदाज में कहा कि खुद लुईस के अनुरोध पर उत्तर प्रदेश सरकार मामले की जांच कर रही है और सच सामने आ जायेगा। लेकिन सवाल यह है कि जो उत्तर प्रदेश सरकार खुर्शीद की जांच कर रही है, उसके मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव के विरुद्ध केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली सीबीआई आय से अधिक संपत्ति की जांच कर रही है, ऐसे में मौसेरे भाई एक-दूसरे के विरुद्ध कैसी जांच करेंगे?
बेनी के बोल
बेनीप्रसाद वर्मा याद हैं न आपको? वैसे वह भूलने लायक हैं भी नहीं। उम्र के आखिरी दौर में सत्ता की खातिर समाजवादी से कांग्रेसी बने बेनी बाबू ने सलमान खुर्शीद घोटाले पर जो टिप्पणी की, वह तो और भी गजब थी। मनमोहन सरकार में इस्पात मंत्री बेनी बोले- '71 लाख रुपये एक केंद्रीय मंत्री के लिए बहुत छोटी रकम है, 71 करोड़ रुपये की बात होती तो गंभीरता से लेते।' लोग पूछ रहे हैं कि बेनी बाबू आखिर कहना क्या चाह रहे हैं? वह सलमान का बचाव कर रहे हैं या उन पर कटाक्ष अथवा संप्रग सरकार के मंत्रियों के भाव बता रहे हैं? समदर्शी
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