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उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव के मार्गदर्शन में चलने वाली अखिलेश यादव सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण करेगी, इसकी संभवना तो इसके गठन के साथ ही व्यक्त की गई थी। आखिर मुलायम की समाजवादी पार्टी की राजनीतिक खुराक की जड़ है एकमुश्त मुस्लिम वोट। सरकार को तो उन्हें हर हाल में खुश रखना ही है लेकिन इस वोट बैंक की राजनीति में सरकार देश के हितों से खिलवाड़ करेगी, इसकी आशा कम ही लोगों को रही होगी। राज्य सरकार ने फैजाबाद, लखनऊ, गोरखपुर और वाराणसी में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों से जुड़े आतंकियों पर दर्ज देशद्रोह के मुकदमों को वापस लेने का देशहित विरोधी फैसला कर लिया है। सरकार का मानना है कि इस सिलसिले में जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, वे निर्दोष हैं। उन्हें गलत फंसाया गया है।
तब थरर्ा गया था जनमानस
बताते चलें, 23 नवंबर 2007 को उक्त जिलों की कचहरियों में सिलिसिलेवार विस्फोट हुए थे। विस्फोटों में कई लोगों की जानें गईं थीं। वकीलों और वादकारियों को भारी नुकसान हुआ था। आतंक का माहौल बन गया था। पूरे प्रदेश के वकीलों ने एकजुटता के साथ बड़ा आंदोलन किया था। उस समय बसपा की सरकार थी। केंद्र सरकार भी सक्रिय हो गई थी। केंद्रीय खुफिया विभाग (आईबी) की पहल पर उत्तर प्रदेश की एसटीएफ (विशेष टास्क फोर्स) ने इस सिलसिले में चार लोगों को गिरप्तार किया था। तारिक काजमी और खालिद मुजाहिद को उसी साल 22 दिसंबर को बाराबंकी रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया था। इस सिलसिले में दो कश्मीरी आतंकियों-सजादुर्रहमान और अख्तर को भी गिरफ्तार किया गया था।
'आदि' में छिपा है राज
सरकार ने प्रत्यक्ष रूप से तारिक और खालिद के बारे में विस्तृत ब्योरा तलब किया है। साथ ही शासन से जारी पत्र में कहा गया है कि तारिक, खालिद आदि की गिरफ्तारी, मुकदमा, लोक अभियोजक की राय और साथ ही संबंधित जिलाधिकारी और पुलिस प्रमुख के मंतव्य भेजे जाएं। यह भी कहा गया है कि आतंकवाद के नाम पर निर्दोष मुस्लिम युवकों तारिक काजमी और खालिद मुजाहिद आदि पर दर्ज अभियोग की वापसी के संदर्भ में शासन को सूचना चाहिए। संबंधित डीएम और एसपी का मत भी मांगा गया है। शासन ने यह भी जानना चाहा है कि इन पर कौन-कौन सी धाराएं लगाई गई हैं। किन-किन न्यायालयों में इन पर मुकदमा चल रहा है। वाद के तथ्य क्या हैं। वादी पक्षों की चोटों का भी विवरण भी मांगा गया है। संबंधित न्यायालयों में चल रहे मुकदमे की अद्यतन स्थिति के बारे में भी पूछा गया है। उधर पूरे प्रदेश का वकील समुदाय इस 'आदि' का अर्थ समझ रहा है। उसका मानना है कि 'आदि' शब्द में सजादुर्रहमान और अख्तर को भी मुक्त करने की योजना जान पड़ती है। चारों की संलिप्तता जगजाहिर है।
गवाह लापता
सरकार की इस घृणित मंशा का असर दिखने लगा है। विगत 9 अक्टूबर को मामले की सुनवाई फैजाबाद मंडल कारागार में होनी थी। चारों आतंकी इसी जेल में बंद हैं। एक गवाह विनोद कुमार लापता घोषित कर दिया गया। उसे गवाही के लिए समन भेजा गया था। वह वाराणसी का निवासी है। वहां की पुलिस की ओर से दी गई रिपोर्ट में बताया कि उसको तलाशा गया लेकिन वह नहीं मिला। विनोद कुमार के न आने से सुनवाई टाल दी गई। अगली सुनवाई 20 अक्टूबर को तय की गई है। संभव है कि तब तक सरकार जिलों की रिपोर्ट के आधार कोई फैसला कर ले।
चौतरफा विरोध
वकीलों ने इसके विरोध में एक दिन पूरे प्रदेश में धरने-प्रदर्शन का भी आयोजन किया। वकील समुदाय नहीं चाहता कि विस्फोटों के अभियुक्तों को किसी भी कीमत पर दोषमुक्त दिखाकर मुक्त किया जाए। अयोध्या और फैजाबाद में तो संत समाज सामने आ गया है। रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष व मणिरामदास छावनी के महंत नृत्य गोपाल दास, पूर्व सांसद राम विलास वेदांती, भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय कटियार आदि ने सरकार के इस फैसले के विरोध में आर-पार की लड़ाई का मूड बना लिया है। नृत्यगोपाल दास का कहना है कि सरकार के इस फैसले से देश में आतंकियों का हौसला बढ़ेगा। इस तरह के विस्फोटों के लिए वे फिर मन बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि अखिलेश सरकार को इस तरह के वोट बैंक बनाने वाले फैसले करने की बजाय जनहित का काम करना चाहिए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश कुमार सिंह का कहना है कि यह विधिक मामला है। न्यायालय से जो मामले वापस किए जाते हैं, वे ऐसे होते हैं जिनसे व्यापक जनहित जुड़ा होता है। इस मामले में किसी तरह का जनहित नहीं जुड़ा है। इसलिए सरकार कोई भी कोशिश कर ले, वह इसमें सफल नहीं होगी। प्रदेश के प्रमुख सचिव गृह आर.एम. श्रीवास्तव का कहना है कि इस मामले में पूरी विधिक राय ली जाएगी। उसके बाद ही कोई फैसला होगा।
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