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दुनिया में सबसे अधिक गरीब भारत में रहते हैं। जुलाई 2010 में जारी यू.एन.डी.पी. मानव विकास रपट के अनुसार भारत में 42 करोड़ से ज्यादा लोग गरीब हैं। यह संख्या 26 अफ्रीकी देशों के गरीबों की संख्या से 1 करोड़ अधिक है। इस रपट में गरीब उस परिवार (माता-पिता और दो बच्चे) को माना गया है, जो रोजाना 45 रु. या उससे कम पर गुजर-बसर करता है। रपट में कहा गया है कि बिहार, उ.प्र., प. बंगाल, म.प्र., छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा व राजस्थान में गरीबों की बाढ़ है और यह गरीबी बढ़ती ही जा रही है। जिस देश में 10 करोड़ 50 लाख परिवार केवल 45 रु. या उससे भी कम पर रोजाना गुजारा करते हों, उस देश के योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया लगभग 11,354 रु. प्रतिदिन विदेश यात्रा पर खर्च करते हैं। उनकी इस यात्रा से देश को कितना लाभ होता होगा, यह तो वही जानें। किन्तु उनकी यह शाही-खर्ची लोगों को चिढ़ा जरूर रही है। लोग चिढ़ें भी क्यों न? बड़े से बड़े पद पर बैठा एक सरकारी अधिकारी भी पूरी नौकरी में वेतन के रूप में इतना पैसा नहीं पाता है जितना कि मोंटेक सिंह सिर्फ 5 साल में विदेश यात्रा पर खर्च कर चुके हैं।
हुआ यूं कि इन पंक्तियों के लेखक ने पिछले दिनों व्सूचना का अधिकारव् के तहत योजना आयोग से जानकारी मांगी थी कि पिछले 5 साल में श्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने सरकारी खर्चे पर किन-किन देशों की यात्रा की है और उन यात्राओं पर कितने पैसे खर्च हुए हैं? योजना आयोग के ए.पी.आई.ओ. डा. वाई. प्रभंजन कुमार यादव ने 16 अगस्त, 2011 को भेजे पत्र में बताया है कि श्री मोंटेक सिंह ने पिछले पांच साल (जुलाई, 2006 से जुलाई 2011 तक) में 36 विदेश यात्राएं की हैं। इनमें से 35 यात्राएं सरकारी और एक यात्रा निजी खर्चे पर की है। इन यात्राओं में 2 करोड़, 4 लाख, 36 हजार, 895 रु. खर्च किए गए। यानी एक वर्ष में उन्होंने विदेश यात्रा में ही 40,87,379 रु. खर्च किए हैं। इस प्रकार एक महीने में 3,40,614.917 रु. और एक दिन में लगभग 11,354 रु. सिर्फ विदेश यात्रा में खर्च किए गए।
एक ओर तो सरकार बजट घाटे का रोना रोती है और उसे पूरा करने के लिए लोगों से नए-नए कर वसूलती है, दूसरी ओर उनके मंत्री, विभिन्न आयोगों के अध्यक्ष/उपाध्यक्ष और अन्य प्रभावशाली लोग जनता से वसूले गए पैसे को पानी की तरह बहा रहे हैं। एक ओर देश की विकास योजनाओं को चलाने के लिए विदेशों से कर्ज लिया जा रहा है, तो दूसरी ओर योजना बनाने वाले, उसको क्रियान्वित करने वाले अपने वेतन, भत्ते, आवास और अन्य सुविधाओं में ही प्रतिमाह लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं। क्या इस तरह के शाही खर्चों में कमी नहीं लाई जा सकती है?
15 मार्च, 1950 को गठित योजना आयोग का मुख्य काम है देश के संसाधनों का आकलन करना व इन संसाधनों के उपयोग के लिए पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण करना, आर्थिक विकास को बाधित करने वाले कारणों की पहचान करना आदि। मोंटेक सिंह अहलूवालिया, जिन्हें केन्द्रीय मंत्री का दर्जा प्राप्त है, जरा बताएं कि देश के संसाधनों का आकलन करने के लिए उन्होंने कितनी बार और कहां की यात्रा की है?
अपनी 35 विदेश यात्राओं में उन्होंने 16 बार अमरीका, 4 बार ब्रिाटेन, 4 बार सिंगापुर, 2 बार फ्रांस, 2 बार चीन की यात्रा की है। इसके अलावा उन्होंने कोरिया, स्विट्जरलैण्ड, ओमान, कनाडा, बहरीन, जापान और सऊदी अरब की यात्रा की है। 5 साल के अन्दर श्री मोटेंक सिंह 16 बार अमरीका गए। 2006 में 1 बार, 2007 में 2 बार, 2008 में 3 बार, 2009 में 6 बार और 2010 में 4 बार। अमरीका की इतनी यात्राओं से कई सवाल खड़े होते हैं। मुख्य सवाल तो यह है कि क्या भारत सरकार की नीतियां अमरीका में तय होती हैं?
योजना आयोग से यह भी पूछा गया था कि योजना आयोग की स्वास्थ्य समिति में उन बिनायक सेन को क्यों लिया गया है, जिन्हें देशद्रोह के आरोप में आजीवन कारावास की सजा हुई है? हालांकि अभी वे जमानत पर हैं। इस संबंध में गोल-मटोल जवाब दिया गया है। कहा गया है कि डा. बिनायक सेन की योजना आयोग में नियुक्ति नहीं हुई है, बल्कि स्वास्थ्य समिति में उनका सहयोग लिया जा रहा है। क्योंकि उनके पास छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े क्षेत्र में कार्य करने का अनुभव है। यह भी बताया गया है कि सेन को बैठकों में भाग लेने पर भारत सरकार के नियमानुसार यात्रा आदि भत्ते दिए जाते हैं।
पिछड़े क्षेत्रों में काम करने वाले डाक्टर तो सैकड़ों मिल जाएंगे। फिर एक ऐसे कथित डाक्टर को स्वास्थ्य समिति में क्यों लिया गया, जिन्हें सजा मिली है? इस पर आयोग ने कुछ नहीं बताया है।
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