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अमरीकी संसद की रपट ने जिस तरह दिल खोलकर गुजरात में विकास के लिए प्रतिमान गढ़ने और प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ की है वह महज गुजरात के लिए नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व की बात है। मुख्यमंत्री के नाते नरेन्द्र भाई ने कई कल्याणकारी योजनाओं को तो मूत्र्तरूप दिया ही, राज्य में ढांचागत विकास में जो तेजी से कदम बढ़ाए हैं उसकी तारीफ करते हुए हाल ही में जारी अमरीकी संसद की भारत पर 94 पन्नों की इस रपट ने कहा है कि नरेन्द्र मोदी के शासन में गुजरात देश की आर्थिक प्रगति का प्रमुख संचालक बन गया है।
दरअसल अमरीकी संसद का एक स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रकोष्ठ “संसदीय अनुसंधान सेवा” अमरीकी हितों से जुड़े मुद्दों पर समय-समय पर रपट तैयार करता है। इसी की ताजा रपट ने नरेन्द्र भाई और उनके शासन में गुजरात की तरक्की की तारीफों के पुल बांध दिए हैं। रपट आने के बाद जहां राज्य के कांग्रेसी मुंह बिचकाए दुबके बैठे हैं और गुजरात के गौरवगान को भी इतालवी चश्मे से देखकर खामियां तलाशने में जुटे हैं वहीं नरेन्द्र भाई ने इसे 6 करोड़ गुजरातियों के सम्मान में एक और आयाम बताया है। ट्विटर पर मोदी ने लिखा- “अमरीकी रपट गुजरात के प्रभावी शासन की तारीफ करती है…. जय जय गर्वी गुजरात”। अमरीकी संसदीय रपट के शब्दों में कहें तो “प्रभावी शासन और बेहतरीन विकास का भारत का शायद सबसे बढ़िया उदाहरण गुजरात में मिलता है, जहां मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आर्थिक प्रक्रियाओं को सुचारू किया है, लालफीताशाही और भ्रष्टाचार को इस तरह समाप्त किया है कि जिससे यह राज्य राष्ट्रीय आर्थिक विकास का अगुआ बन गया है।…. मोदी के राज में आधुनिक सड़कों और ऊर्जा के क्षेत्र में भारी निवेश हुआ है और हाल के सालों में 11 फीसदी से ज्यादा की सालाना वृद्धि हुई है। गुजरात ने प्रमुख अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को आकर्षित किया है, जैसे जनरल मोटर्स और मित्सुबिशी… देश की महज 5 फीसदी आबादी वाला यह राज्य आज भारत के निर्यात का 1/5 से ज्यादा हिस्सा उपलब्ध करा रहा है।” थ्
जर्मनी देगा काले खातों का पता
जर्मनी जल्दी ही भारत को उन भारतीय खातेदारों के नाम बताने जा रहा है जिन्होंने वहां के एल.जी.टी. बैंक में काला पैसा जमा कराया हुआ है। भारत का रणनीतिक साझीदार जर्मनी 2008 में भी ऐसे 26 भारतीय खातेदारों की जानकारी दे चुका है जिनके खातों में काला धन जमा था। भारत के कर अधिकारियों को जर्मन के कर विभाग की तरफ से अब उन सौ से ज्यादा लोगों के नामों की सूची सौंपे जाने के आसार हैं जो जर्मनी के बैंकों में अकूत काला धन जमा किए हुए हैं। 2008 में भारत के 26 काले खातेदारों के बारे में जानकारी तब सामने आयी थी जब एल.जी.टी. बैंक के एक पुराने कर्मचारी ने जर्मनी के कर विभाग को 1400 खातेदारों का ब्योरा सौंपा था। उनकी जांच के बाद जर्मनी ने भारत को 26 खातेदारों के नाम बताए जिन्होंने वहां काला पैसा जमा किया हुआ था। इनमें से 5 अनिवासी भारतीय होने के कारण जांच से बच गए और बचे 21 में से 18 के खिलाफ मुकदमा शुरू कर दिया गया। भारत सरकार ने उन 21 खातों में जमा 39.66 करोड़ रुपए की उगाही शुरू कर दी है। महज कर विभाग ही उन खातेदारों पर निगाह नहीं रख रहा है, बल्कि दूसरी जांच एजेंसियां भी पैनी निगाहें डालकर यह पता लगी रही हैं कि कहीं यह पैसा आतंकी या नशीले पदार्थों से जुड़ीं ऐसी गतिविधियों के लिए तो नहीं जमा किया जा रहा था जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील हों। थ्
…क्योंकि कतर नहीं पहुंचती इस्लामाबादी हवा
तालिबान और पाकिस्तान में किस कदर मेल-मिलाप है, इसे अमरीका से बेहतर कौन समझता है, और शायद यही कारण है कि सूत्रों के अनुसार, अमरीका ने अफगानिस्तान के तालिबानियों की कतर में अपना राजनीतिक मुख्यालय खोलने की योजना को हरी झंडी दिखा दी है। अमरीका तालिबान से बातचीत के रास्ते तलाश रहा है और यह कदम तालिबानियों को पाकिस्तान के बद्दिमाग मजहबी उन्मादियों से दूर रखकर ही उठाया जा सकता है इसलिए कतर का नाम जंचा। कतर में तथाकथित “इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफगानिस्तान” का दफ्तर तालिबान का पहला “अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त” प्रतिनिधित्व होगा। टाइम्स में छपी यह खबर यू.के. द्वारा दो साल पहले इस विचार को पेश करने के 18 महीने बाद आई है। ब्रिटेन ने तब अफगानिस्तान पर लंदन में एक कांफ्रेंस की थी जिसमें से उन तालिबानी उग्रवादियों से बातचीत शुरू करने का विचार उपजा था जो हथियारों का इस्तेमाल छोड़कर अफगानी संविधान की कसमें खाएंगे। उस कांफ्रेंस में भारत के विदेश मंत्री कृष्णा सहित 68 देशों के नुमाइंदे मौजूद थे। कतर में दफ्तर का ठिकाना ढूंढने के पीछे अमरीका की यही शर्त थी कि दफ्तर ऐसी जगह बने जहां इस्लामाबाद की हवा न पहुंचती हो। तो इसलिए कतर को चुना गया। थ्
चित्र कथा की चर्चा
42 साल के नसीर अब्बास को आज इंडोनेशिया के बच्चे खूब अच्छे से पहचानने लगे हैं। अल कायदा से जुड़े एक आतंकवादी से आतंक के खिलाफ लड़ने में इंडोनेशियाई सरकार का मददगार बनने तक का अब्बास का सफर बच्चे-बच्चे की जुबान पर है। इसके पीछे वजह बनी है चित्र कथा “मैंने जिहाद का अर्थ पाया” की वह किताब जो राजधानी जकार्ता के स्कूलों और लाइब्रेरियों तक पहुंची है। यह पूरी किताब अब्बास के जीवन में आए महत्वपूर्ण बदलाव की सचित्र दास्तान पेश करती है जिसमें अब्बास ही हीरो है। अब्बास को अब लोग न केवल पहचानने लगे हैं बल्कि कई तो उसका “ऑटोग्राफ” तक लेते देखे गए हैं। 2002 के बाली बम विस्फोटों सहित दक्षिण एशिया में बेहद बर्बर आतंकी हमलों के लिए आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने वाले जिहादी से लेकर पुलिस को इंडोनेशिया के खूंखार जिहादी गुट जम्मा-इस्लामियाह के आतंकी संजाल की जानकारी देने वाले इनसान तक के अब्बास के सफर ने उसे आज इंडोनेशिया का एक चर्चित नाम बना दिया है। वह अब सरकार के एक नए कार्यक्रम के तहत सजायाफ्ता आतंकवादियों को यह समझाता है कि मजहब के नाम पर निहत्थे नागरिकों की हत्याएं करना गलत है। 137 पन्नों वाली इस चित्रकथा के बारे में अब्बास का कहना है कि वह चाहता है कि बच्चे उसके अनुभव से सबक लें। वे उन गलतियों को न दोहराएं जो उससे हुई हैं।
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