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पिछले 22 वर्षों के आतंकवाद ने जम्मू-कश्मीर में कुछ अलग ही प्रकार की समस्याएं उत्पन्न कर दी हैं। इन समस्याओं से निपटने के लिए केन्द्र या राज्य सरकार की कोई स्पष्ट नीति न होने के कारण अलगाववादी-आतंकवादी अपना खेल-खेलते जा रहे हैं। जो भिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हुई हैं उनमें बहुत से लोगों का आतंकवादी हिंसा के कारण मारा जाना तथा लापता हो जाना भी एक परेशानी का सबब है। आंकड़ों के अनुसार सीमा पार से चलाए जा रहे आतंकवाद में लगभग 55,000 लोग मारे गए हैं। लापता होने वालों की संख्या भी स्पष्ट नहीं है। कई हजार परिवार विस्थापित होकर देश के भिन्न-भिन्न भागों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं और बहुत से परिवार विदेश में भी जाकर बस गए हैं।
जो लोग मारे गए हैं उनमें से 27,000 के लगभग आतंकवादी थे। इन मारे जाने वाले आतंकवादियों में लगभग 7 हजार विदेशी थे, जिनका सम्बंध पाकिस्तान के विभिन्न आतंकवादी संगठनों से था। इन दिनों अलगाववादियों तथा मानवाधिकारवादियों के नाम पर सक्रिय संगठनों में यही एक बड़ा प्रश्न भारत विरोधी प्रचार का मुद्दा बना हुआ है कि लगभग 40 कब्रिस्तानों में 2327 कब्रें ऐसी हैं, जिन पर मरने वालों का नाम-पता नहीं लिखा गया है।
उल्लेखनीय है कि कश्मीर में मारे गए आतंकवादियों को भिन्न-भिन्न कब्रिस्तानों में अलग से दफनाया गया है। इन स्थानों को अलगाववादी लोग “मजार-ए-शहीदां” के नाम से पुकारते हैं और कई ऐसे स्थानों पर भारत विरोधी तत्व रात के समय दिया भी जलाते हैं, ताकि बुझती हुई अलगाववाद की आग को भड़का दिया जाए।
सूत्रों के अनुसार विभिन्न स्थानों पर सैनिकों के साथ मुठभेड़ में मारे गए जिन आतंकवादियों की पहचान नहीं हो पाई उनमें भी अधिकांश विदेशी थे, जिनके पास कोई पहचान पत्र नहीं मिला। फिर उनकी कब्रों पर मरने वाले का नाम तथा पता कैसे लिखा जा सकता था?
अलगावादियों और आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति रखने वाले मानवाधिकारवादियों ने भारत विरोधी प्रचार के लिए एक यह अभियान भी छेड़ रखा है कि आतंकवाद के दौरान बड़ी संख्या में युवक लापता हो गए थे। अब लापता युवकों के संबंधियों का एक संगठन भी गठित हो गया है। सरकार ने भी ऐसे लापता युवकों की गणना सम्बंधी एक सर्वेक्षण करवाया है। इस सर्वेक्षण के अनुसार लापता होने वाले युवकों की संख्या 3 से 4 हजार के बीच है। कुछ अलगाववादी यह संख्या 8 से 10 हजार के बीच बता रहे हैं। सूत्रों के अनुसार अब भी कई हजार युवक पाकिस्तानी प्रशिक्षण शिविरों में हैं। आई.एस.आई. द्वारा संचालित इन शिविरों के अतिरिक्त कई प्रशिक्षित आतंकवादी इन वर्षों के दौरान पाकिस्तान तथा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में बस गए हैं, अपना कारोबार कर रहे हैं। अलगाववादियों-आतंकवादियों की यह सब जानकारी जुटाने तथा इनकी वापसी का रास्ता तलाशने के लिए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने एक आयोग गठित करने का सुझाव दिया है। इस पर अलगाववादी नेताओं का कहना है कि यह आयोग अंतरराष्ट्रीय स्तर का होना चाहिए जिसमें भिन्न-भिन्न देशों के मानवधिकारवादियों व उनके प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना चाहिए। यह सारी कोशिशें हो रही हैं अलगाववादियों -आतंकवादियों के लिए, लेकिन राष्ट्रवादियों-भारत भक्तों की चिंता किसे है? द
अपनों के ही रोष से
घिरी हुड्डा सरकार
हरियाणा/ डा. गणेश दत्त वत्स
हरियाणा में हुड्डा सरकार द्वारा विकास की योजनाओं का ढिंढोरा सब जगह पीटा जा रहा है। हरियाणा की नीतियों का हवाला देकर कांग्रेस देश में लोगों को गुमराह कर रही है। हकीकत में तो मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के दूसरे कार्यकाल में उनकी नीतियों की जमकर आलोचना हो रही है। विपक्षी दलों ने हर स्तर पर सरकार को आईना दिखाया है। कई मुद्दों पर तो न्यायालय ने भी फटकार लगाई है और भूमि अधिग्रहण को लेकर कई स्थानों पर किसान अभी तक धरने पर बैठे हुए हैं। इनमें से दो किसान अपनी जान भी गंवा बैठे हैं, जिसका किसानों ने सीधा आरोप सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति पर मढ़ा है। किसान मानते हैं कि मौजूदा कांग्रेस सरकार अपने निजी स्वार्थ के लिए किसानों की कोई सुनवाई नहीं कर रही है। ऐसे में प्रदेश के लोग सरकार से नाखुश हैं और बदलाव चाहते हैं।
प्रदेश में हुड्डा सरकार जोड़-तोड़ की बैसाखियों पर टिकी हुई है जिसके कारण सरकार को समर्थन दे रहे हरियाणा जन कांग्रेस (हजकां) के विधायक लाल बत्ती की गाड़ी में घूम रहे है। बैशाखी देने वाले सभी विधायकों को सरकार ने मुख्य सचिव पद भी दिया है, जिससे कांग्रेस के समर्पित विधायकों में रोष पनप रहा है। बेबसी में वे सामने नहीं तो आगे-पीछे सरकार की आलोचना करते हैं। कई बार सरकार के मंत्री व मुख्यमंत्री के बीच आपसी टकराव जनता के बीच आया और उन्होंने एक-दूसरे पर जमकर भड़ास निकाली। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी उ.प्र. में हरियाणा की जिस भूमि अधिग्रहण नीति को आदर्श बताकर जनता को लुभाने की नाकाम कोशिश करते रहे हैं, उसी हरियाणा सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति की आलोचना पूरे प्रदेश में हुई। यही नहीं अम्बाला, रोहतक, रेवाड़ी, पलवल, फरीदाबाद, फतेहाबाद, हिसार में किसानों ने आन्दोलन किया और फतेहाबाद में तो अभी भी किसान आंदोलन कर रहे हैं।
हरियाणा सरकार की शिक्षा नीति भी लोगों के गले नहीं उतर रही है। प्रदेश की जनता मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से एक ही सवाल पूछती है कि जिस हरियाणा को शिक्षा का केन्द्र बताया जा रहा है, वहां करीब 25 हजार शिक्षकों के पद रिक्त क्यों पड़े हैं? इसको लेकर न तो सरकार गंभीर नजर आती है और न ही रिक्त पदों को भरने के लिए कदम उठाए गए हैं। यही नहीं, शिक्षा की नई नीति को पूरे देश में सबसे बाद में हरियाणा में लागू किया गया है। न्यायालय ने प्रशासनिक अधिकारियों व पुलिस अधिकारियों की भर्ती में भी अनियमितता एवं घोटाले को भांपते हुए फटकार लगाई है। सरकार इस पर कोई भी सफाई नहीं दे सकी। बेशक न्यायालय ने खनन पर रोक लगाई लेकिन जिन कारणों को लेकर यह कदम उठाना पड़ा उसके पीछे भी प्रदेश सरकार की कमजोर व अस्पष्ट नीति ही नजर आती है। हालात यह हैं कि खनन पर रोक होने के कारण कई मुख्य परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग पर भी तेज गति से चल रहा निर्माण कार्य अधर में लटक गया है। द
दिल्ली/ अरुण कुमार सिंह
संरक्षित मस्जिदों में अनधिकृत नमाज
क्या इस देश में सभी मत-पंथ के लोगों के लिए नियम-कानून एक हैं? कागजी रूप में भले ही सबके लिए एक जैसे कानून हों, किन्तु व्यवहार में सबके लिए एक जैसे कानून नहीं हैं। धार्मिक मामलों में हिन्दुओं पर एक क्षण में कानून का डण्डा चलाया जाता है, किन्तु मुस्लिमों के मजहबी मामलों में कानून का डण्डा न चले, इसकी हरसंभव कोशिश की जाती है।
राजधानी दिल्ली में तो यह चलन कुछ ज्यादा ही बढ़ता जा रहा है। पिछले दिनों मुस्लिम समाज के कुछ लोग न्यायालय के आदेश से गिराई गई एक अवैध मस्जिद के पुनर्निर्माण के लिए सड़कों पर उतर आए। सरकार ने तुरन्त कहा शान्त रहें, वही जमीन खरीदकर मस्जिद के लिए दी जाएगी। किन्तु किसी मन्दिर के मामले में ऐसा नहीं किया जाता है। कुछ कट्टरवादी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) द्वारा संरक्षित मस्जिदों में जबरदस्ती नमाज पढ़ रहे हैं, इस मामले में भी सरकार चुप है। सरकार कानून तोड़ने वाले कट्टरपंथियों को पकड़ना भी नहीं चाहती है, उन्हें दण्डित करने की बात तो दूर है। कट्टरवादियों की इस हरकत पर वे तथाकथित सेकुलर नेता, बुद्धिजीवी और समाजसेवी भी मौन हैं, जो चिल्लाते रहते हैं कि देश में कानून का राज स्थापित होना चाहिए।
“सूचना का अधिकार” के तहत मांगी गई जानकारी के बाद ए.एस.आई. के दिल्ली मण्डल ने पाञ्चजन्य को बताया है कि दिल्ली मण्डल में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन 174 संरक्षित स्मारक हैं। इनमें से कोई मन्दिर नहीं है, जबकि 30 मस्जिदें हैं। उप अधीक्षण पुरातत्वविद् एवं केन्द्रीय जनसूचना अधिकारी ए.के. पाण्डे ने पत्रांक (डी.एल.एच.-265/2010- स्मा.-408) में साफ लिखा है, “केवल 3 मस्जिदों में संरक्षित स्मारक सूची में आने से पहले से ही नमाज पढ़ी जाती थी और 9 मस्जिदों में अनधिकृत नमाज पढ़ी जाती है, जो नियम के विरुद्ध है।”
पालम मस्जिद, नीली मस्जिद और सुनहरी मस्जिद- ये तीन ही ऐसी मस्जिदें हैं, जहां वैध रूप से नमाज पढ़ी जाती है। उल्लेखनीय है कि ए.एस.आई. ने पालम मस्जिद को 26 जून, 1983, नीली मस्जिद को 12 जनवरी, 1921 और सुनहरी मस्जिद को 6 अगस्त, 1919 को अपने अधीन लेकर संरक्षित घोषित किया हुआ है। चूंकि ए.एस.आई. की अधिसूचना के समय इन तीनों मस्जिदों में नमाज पढ़ी जाती थी, इसलिए बाद में भी इनमें पढ़ी जाने वाली नमाज पर रोक नहीं लगाई गई। किन्तु शेष 27 मस्जिदों को ए.एस.आई. ने जब संरक्षण सूची में शामिल किया था, उस समय उनमें नमाज नहीं पढ़ी जाती थी। इसलिए बाद में भी नमाज पढ़ने की इजाजत नहीं दी गई। परन्तु पिछले कुछ सालों से हर शुक्रवार को नमाजियों की भीड़ संरक्षित मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए उमड़ पड़ती है। उन्हें रोकने का प्रयास किया जाता है तो हंगामा शुरू हो जाता है। इसी हंगामे के बल पर कुतब मस्जिद, सराय शाहजी मस्जिद, लाल गुम्बद/मस्जिद (चिराग दिल्ली), जामी मस्जिद (कोटला फिरोजशाह), रजिया सुल्तान मकबरा, कुदुसिया मस्जिद, सफदरजंग मस्जिद, अफसर वाला की मस्जिद और खैरूल मंजिल मस्जिद में जबरदस्ती नमाज पढ़ी जा रही है। जबकि ये मस्जिदें 75-80 साल से संरक्षित सूची में शामिल हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (दिल्ली मण्डल) के अधीक्षण पुरातत्वविद् मुहम्मद के.के. से जब यह पूछा गया कि अनधिकृत रूप से नमाज पढ़ने वालों को रोका क्यों नहीं जाता है? उन्होंने उत्तर दिया, “यह अनधिकृत नमाज मेरे द्वारा कार्यभार संभालने से पूर्व ही शुरू हो गई थी। फिर भी मैं इस अनधिकृत नमाज को रोकने का प्रयास कर रहा हूं।”
दूसरी ओर मुस्लिमों का एक वर्ग पूरी तैयारी के साथ किसी संरक्षित मस्जिद पर कब्जा करने की तैयारी करता रहता है। यह वर्ग प्राय: हर साल किसी मस्जिद पर कब्जा कर लेता है। पिछले साल कुतुबमीनार परिसर स्थित मस्जिद में जबरदस्ती नमाज पढ़ने की कोशिश की गई और अब वहां हर शुक्रवार को नमाज होती है, जो कि नियमत: गलत है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यदि मुस्लिमों का एक वर्ग इसी तरह किसी संरक्षित मस्जिद पर कब्जा करता रहा और वहां नमाज पढ़ी जाती रही, तो हिन्दू भी प्रतिक्रिया में संरक्षित मन्दिरों में पूजा-पाठ के लिए सड़कों पर आ सकते हैं। तब फिर स्थिति गंभीर हो सकती है। नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने यह भी बताया कि मुस्लिमों का एक वर्ग कुछ मुस्लिम नेताओं और इमामों की शह पर ए.एस.आई. द्वारा संरक्षित मस्जिदों और इस्लामी स्मारकों पर कब्जा करना चाहता है। इसके लिए बाकायदा एक रणनीति बनाई गई है। इस रणनीति को सरकारी नीतियों से भी प्रोत्साहन मिलता है।द
उत्तराखण्ड/ मनोज गहतोड़ी
खंडूरी ने संभाली कमान, आते ही भ्रष्टाचार पर वार
मजबूत लोकपाल बिल के साथ ही प्रदेश में बेनामी संपत्ति को सरकार से संबद्ध करने की घोषणा
तेजी से घटे घटनाक्रम में मेजर जनरल (से.नि.) भुवन चंद्र खंडूरी ने दो साल 75 दिन बाद गत 11 सितम्बर को पुन: उत्तराखंड के छठे मुख्यमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। मुख्यमंत्री के साथ राज्यपाल माग्र्रेट अल्वा ने पूर्व कैबिनेट मंत्रियों- त्रिवेंद्र सिंह रावत, दिवाकर भट्ट, राजेंद्र भंडारी, खजान दास, बंशीधर भगत, मातबर सिंह कंडारी, बलवंत सिंह भौर्याल, प्रकाश पंत, गोविंद सिंह, श्रीमती विजया बडथ्वाल तथा मदन कौशिक को भी पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। देहरादून के रेंजर्स मैदान में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में राज्य के कई जिलों से आए हजारों लोगों ने भाग लिया। इससे पूर्व निवर्तमान मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल “निशंक” ने अपना इस्तीफा राज्यपाल भवन में राज्यपाल श्रीमती मार्गेरेट अल्वा को सौंपा।
विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आम जनता में श्री भुवन चंद्र खडूरी (से.नि.) की ईमानदार एवं साफ-सुथरी छवि को देखकर भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश की राजनीति में यह बड़ा परिवर्तन किया है। भारतीय जनता पार्टी विधानमंडल दल की बैठक में सदन का नेता चुने जाने के बाद मे. जन. (से.नि.) खंडूरी ने दोपहर बाद सवा तीन बजे शपथ ग्रहण कर राज्य की बागडोर संभाली। शपथ ग्रहण समारोह में भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं उत्तराखंड के चुनाव प्रभारी श्री राजनाथ सिंह, सह प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रवि शंकर प्रसाद, प्रदेश प्रभारी थावरचंद गहलौत सहित राज्य के चार पूर्व मुख्यमंत्री- रमेश पोखरियाल निशंक, नारायण दत्त तिवारी, नित्यानंद स्वामी एवं भगत सिंह कोश्यारी, विधानसभा अध्यक्ष हरबंश कपूर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल, कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य के अलावा भाजपा के अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने किया।
राज्य की बागडोर संभालने के चंद घंटों बाद ही मुख्यमंत्री ने कैबिनेट की पहली औपचारिक बैठक कर सचिवालय परिसर में एक पत्रकार सम्मेलन का आयोजन किया। आत्मविश्वास से भरपूर मुख्यमंत्री खंडूरी ने पत्रकार वार्ता में यह साफ कर दिया कि वह राज्य में भ्रष्टाचार को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। इससे यह साफ हो गया कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना उनकी पहली प्राथमिकता होगी। श्री खंडूरी ने कहा कि एक महीने के भीतर सरकार के सभी मंत्री और आईएएस व आईपीएस स्तर के अधिकारी अपनी संपत्ति की घोषणा करेंगे। उन्होंने बताया कि बेनामी संपत्ति को बिहार की तरह ही सरकार अपने कब्जे में ले लेगी। राज्य में प्रभावशाली लोकायुक्त कानून बनाने के लिए लोगों से सुझाव लिए जाएंगे। उन्होंने मुख्यमंत्री को भी लोकायुक्त के भीतर लाने के लिए नया विधेयक तैयार करने की घोषणा की। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृृत न्यायाधीश की सेवाएं ली जाएंगी। उन्होंने कैबिनेट बैठक के फैसलों को सार्वजनिक करते हुए कहा कि बेनामी संपत्ति मिलने पर उसे जब्त किया जाएगा। एक सवाल के जवाब में श्री खंडूरी ने साफ कहा कि यदि किसी पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलीं तो उसकी जांच कराने में सरकार लापरवाही नहीं करेगी। कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना ही बड़ा हो, उसे माफ नहीं किया जाएगा। उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कैबिनेट बैठक के तीन बिंदुओं- मजबूत लोकायुक्त बिल बनाने, मुख्यमंत्री को लोकायुक्त के दायरे में लाने और बेनामी संपत्ति को जब्त करने के फैसलों से जनता को अवगत कराया। पत्रकार वार्ता में कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत, बंशीधर भगत, मुख्य सचिव सुभाष कुमार, उमाकांत पंवार, देवेंद्र भसीन तथा रविंद्र जुगरान मौजूद थे।
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