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हमारे शास्त्रों में तलाक जैसा कोई शब्द नहीं मिलता है। इसका अर्थ यह है कि हमारे यहां तलाक का कोई प्रावधान ही नहीं है। किन्तु कुछ वर्षों से तलाक के इतने मामले सामने आ रहे हैं कि भारतीय समाज अचंभित है। लोग सवाल कर रहे हैं कि जिस देश में सीता, सावित्री, अनुसुइया जैसी पतिव्रताएं हुई हों, उस देश में तलाक की घटनाएं बढ़ती क्यों जा रही हैं? छोटी-छोटी बातों पर पति-पत्नी के बीच इतना मनमुटाव हो रहा है कि महीनों तक एक ही छत के नीचे रहते हुए भी दोनों में बातचीत तक नहीं होती है। फिर दोनों एक-दूसरे से अलग रहने लगते हैं। और एक दिन सुनने में आता है कि दोनों में तलाक हो गया। तलाक के बाद कोई पत्नी या पति कितना सुखी रहता है, यह तो वही बता सकता है। किन्तु पति-पत्नी के बीच की इस लड़ाई से बच्चे बड़े दु:खी होते हैं। बच्चे मां के साथ रहें या पिता के साथ इसके लिए भी मुकदमेबाजी शुरू हो जाती है। इस कारण ऐसे बच्चों की शिक्षा आदि प्रभावित हो जाती है। कुछ पति-पत्नी तो तलाक के बाद भी बहुत परेशान रहते हैं। किन्तु अहं के कारण एक नहीं हो पाते हैं और जीवन बोझ लगने लगता है, नीरस होता जाता है।
दिल्ली के एक विद्यालय में पढ़ाने वाली सीमा तलाकशुदा जीवन बिता रही हैं। सीमा कहती हैं, “यदि वैवाहिक जीवन ठीक रहता तो आज वह भी मातृत्व सुख महसूस करतीं। बार-बार दहेज की मांग करने से हम दोनों में दूरी बढ़ती गई। इसमें सास की भी अहम भूमिका रही। सामाजिक संस्था “नवज्योति” की पहल से हम दोनों एक बार साथ भी रहने लगे। पर ससुराल वालों की वजह से फिर परेशानी हुई। 2006 में मुकदमेबाजी शुरू हो गई और अब कुछ दिन पहले ही तलाक हुआ है। मुआवजे के रूप में मुझे तीन लाख रु. मिले हैं। पैसे का क्या करेंगे, जीवन तो बाधित है। तरह-तरह की परेशानियां उठानी पड़ती हैं।”
मेरे पड़ोस की एक लड़की रेणुबाला का विवाह कुछ दिन पहले हुआ था। दुर्भाग्य से 1 वर्ष के अन्दर उसके पति का निधन हो गया। जब उसके पति का निधन हुआ उस समय उसके गर्भ में एक बच्चा पल रहा था। पति के न रहने पर ससुराल वालों ने उसे प्रताड़ित करना शुरू किया। थक-हार कर वह अपने छोटे बच्चे को लेकर मायके आ गई। वह अभी 20-21 साल की ही थी। माता-पिता बहुत परेशान होने लगे। मुश्किल से एक लड़का मिला और उसके साथ उसका विवाह कर दिया गया। किन्तु वह नशेबाज निकला। दारू पीकर मार-पीट करना आम बात हो गई। बेचारी क्या करे, कुछ दिन बाद फिर से मायके आ गई और तलाक ले लिया। कहती है कि अब क्या होगा? यदि दूसरा विवाह न करूं तो समाज के लोग ताने मार-मार कर जीना मुश्किल कर देंगे। और विवाह की बात करती भी हूं तो कोई लड़का मुझसे विवाह नहीं करना चाहता है।
सौन्दर्य विशेषज्ञा शालिनी बताती हैं, “2001 में विवाह हुआ लेकिन आपसी सामंजस्य का अभाव रहा। हम लोग कई बार साथ रहे और अलग हुए। हम पति-पत्नी के बीच दरार उत्पन्न कराने में आधुनिक व पारंपरिक विचारों और सास का हाथ रहा। समझाने बुझाने के बाद भी बात जमी नहीं। सात वर्ष तक सिर्फ मैं ही समझौता करती रही। अंतत: महिला शाखा में जाना पड़ा। वहां से तलाक मिल गया और मुआवजे के रूप में ससुराल से 2 लाख रु. भी मिले। अब मैं दूसरी शादी करना चाहती हूं, क्योंकि मेरे दो बच्चे पिता का प्यार पाने के लिए बेचैन रहते हैं। फिर समाज में प्रतिष्ठित जीवन जीने के लिए संरक्षण भी चाहिए।”
तलाकशुदा जीवन जी रहीं शाल्वी अपनी अन्तर्वेदना व्यक्त करते हुए कहती हैं, “अपने भावी पति को पहली बार देखने के बाद ही मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा। मैं शिक्षित थी और वह अशिक्षित। सास द्वारा अलग कर देने के बाद वह अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल रहे। अंतत: पंचायत द्वारा हम अलग हो गए। अब मैं पूर्णत: अपने भविष्य को ठीक करने में लगी हूं। इसके बाद दूसरी शादी पर विचार करूंगी।”
43 वर्षीय रचना एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान में शिक्षिका हैं। 1984 में इनका विवाह हुआ था। दहेज की मांग के कारण ही इनका ससुराल में रहना कठिन हो गया। इनके साथ अक्सर मार-पीट होती रहती थी। एक दिन वह मायके लौट आईं। 1999 में इनके पति ने दूसरा विवाह कर लिया। फिर इनके सब्र का बांध टूटा और मामला न्यायालय तक पहुंच गया। अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ है।
तलाक के कई मामलों को देख रहीं अधिवक्ता कुसुम रोहेला बताती हैं, “आज की पढ़ी-लिखी लड़कियां नौकरी के कारण घर से बाहर रहती हैं। यदि उनका विवाह किसी परम्परावादी परिवार में हो जाता है तो समस्या खड़ी हो जाती है। लड़की बिन्दाश रहना चाहती है, जो परिवार वालों को पसन्द नहीं होता। ऐसे बहुत मामले न्यायालय में आते रहते हैं, और दोनों पक्ष तलाक की अर्जी लगाते हैं।”
दिल्ली उच्च न्यायालय में तलाक के अनेक मुकदमों को निपटाने वाले वकील विवेकानन्द झा मानते हैं कि पति-पत्नी में सहनशीलता की कमी होने के कारण तलाक ज्यादा हो रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि माता-पिता अपने बच्चों का सही मार्गदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। इस कारण बच्चों में उच्श्रृंखला बढ़ रही है। यही बाद में अनेक समस्याओं का कारण बनती है। संस्कृतज्ञ डा. व्यासनन्दन शास्त्री मानते हैं कि यदि बच्चों को प्रारंभ से पारिवारिक मूल्यों और संस्कारों से जोड़ा जाए तो तलाक की घटनाएं कम हो सकती हैं। द
स्त्री-रत्न
शैव्या
राजा हरिश्चन्द्र बड़े सत्यवादी राजा थे। दान देने में तो उनकी बराबरी करने वाला कोई भी नहीं था। तारा उनकी पत्नी थी। राजा शिवि की कन्या होने के कारण वह शैव्या कहलाई। उनके पुत्र का नाम रोहिताश्च था। राजा का जीवन बड़े सुख एवं आनन्द से व्यतीत हो रहा था। वह एक आदर्श राजा थे। प्रजा उनसे बहुत स्नेह करती थी। वे भी प्रजा का पुत्रवत पालन करते थे।
कहा जाता है कि एक बार वन में राजा हरिश्चन्द्र ने विश्वामित्र को उनके मांगने पर अपना सारा राज्य दान कर दिया। जब शैव्या को इसका पता चला तो उसने पति से कहा, “स्वामी, धन, राज्य सब नाशवान है, धर्म नित्य है और सुख देने वाला है। हम धर्म का ही पालन करेंगे। आपत्तियां आती हैं, आने दो। हम आपत्तियों का हंस कर सामना करेंगे।”
दूसरे ही दिन विश्वामित्र दरबार में आ धमके। वे बोले, “राजन, अब यह सारा राज्य मेरा है, अत: तुम्हें यहां से चले जाना चाहिए।” हरिश्चन्द्र बल्कल वस्त्र पहन पत्नी और पुत्र के साथ जैसे ही चलने को तैयार हुए तभी विश्वामित्र बोल पड़े, “पहले मेरी दक्षिणा दो अन्यथा मैं तुम्हे शाप दे दूंगा।” राजा हरिश्चन्द्र ने एक माह का समय मांगा। हरिश्चन्द्र, शैव्या और रोहिताश्च पैदल चल कर ही शिव की नगरी काशी पहुंचे। एक माह पूर्ण होने में केवल एक दिन ही शेष रह गया था। अचानक उसी समय कहीं से तभी विश्वामित्र आ पहुंचे। उन्होंने दक्षिणा मांगी। रानी बोली, “नाथ, मुझ से पुत्र का जन्म हो चुका है, आप मुझे बेच कर दक्षिणा चुका दें।”
यह सुन राजा दु:ख से व्याकुल हो उठे। समय जाता हुआ देख उन्होंने आवाज लगाई- “साहूकारो सुनो! हम अपनी प्यारी पत्नी को बेचना चाहते हैं!” एक वृद्ध ब्राह्मण ने धन देकर रानी को खरीद लिया। उसे दासी की आवश्यकता थी। जब शैव्या पति से अन्तिम विदा ले जाने लगी तो रोहिताश्च ने मां का आंचल पकड़ लिया। शैव्या मानो पत्थर बन चुकी थी। वह कर्तव्य कठोर थी, पर बालक की ममता ने उसे हिला दिया। उसने ब्राह्मण से प्रार्थना की, “कृपा कर आप इसे भी खरीद लें। मैं मन लगा कर आपकी सेवा करूंगी।” ब्राह्मण ने धन देकर बालक को भी खरीद लिया।
राजा ने प्राप्त धन विश्वामित्र को दे दिया। पर वह अभी भी कम था। विश्वामित्र न माने तब राजा ने अपने को बेचने की घोषणा की। एक चाण्डाल ने आगे बढ़ कर राजा को खरीद लिया। विश्वामित्र धन लेकर चले गए। चाण्डाल ने हरिश्चन्द्र को श्मशान घाट पर कर वसूलने के काम पर लगा दिया।
एक बार अंधेरी रात में राजा आवाज लगाकर श्मशान घाट पर पहरा दे रहे थे। तभी एक स्त्री अपने मृत बालक का शव लेकर वहां आई। वह बहुत दुर्बल, दुखी और दीन लग रही थी। उसके पास कफन के लिए न कपड़ा था और न कर चुकाने को धन। तभी अचानक बड़े जोर की बिजली चमकी, आकाश में काले बादल छा गए। बिजली के प्रकाश में राजा ने पहचाना कि स्त्री शैव्या है और मृत बालक उनका ही पुत्र रोहिताश्च है। वे मूर्छित हो गए। पर थोड़ी देर बाद होश आने पर उन्होंने स्वयं को संभाला और उस स्त्री से श्मशान का कर मांगा। उन्होंने कहा, “मैं यहां का प्रहरी हूं। मेरे स्वामी की आज्ञा है कि बिना कर दिए यहां कोई अग्नि संस्कार नहीं कर सकता।” शैव्या ने बहुत अनुनय-विनय की पर राजा न माने। विवश होकर शैव्या ने अपनी पहनी हुई आधी साड़ी फाड़ने को हाथ उठाया तभी वहां धर्मराज उपस्थित हुए। उन्होंने शैव्या को रोका और कहा हम इस धर्मनिष्ठ राजा की परीक्षा ले रहे थे, राजा खरा उतरा। इसी बीच रोहिताश्च जीवित हो उठा। हरिश्चन्द्र अपनी पत्नी शैव्या और पुत्र रोहिताश्च के साथ अयोध्या लौटे। रोहिताश्च को राज्य देकर राजा हरिश्चन्द्र और शैव्या तपस्या करने वन में चले गए।
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