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12 सितम्बर को न्यायमूर्ति डी.के. जैन, न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम और न्यायमूर्ति आफताब आलम की सर्वोच्च न्यायालय की विशेष खंडपीठ ने गुजरात के संबंध में जो फैसला सुनाया, वह न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि इस देश में आए दिन सिर उठा रहे तथाकथित मानवाधिकारवादियों की कलुषित मानसिकता पर एक करारा तमाचा भी है। न्यायालय ने जाकिया जाफरी की उस याचिका पर यह फैसला सुनाया जो 2002 में गुजरात के सांप्रदायिक दंगों में मुख्यमंत्री और 62 अन्य अधिकारियों की कथित अनदेखी के विरुद्ध दायर की गई थी। जाफरी इससे पहले गुजरात उच्च न्यायालय में अपील कर चुकी थीं जहां से उन्हें साफ शब्दों में कह दिया गया था कि दण्डाधिकारी की अदालत में जाएं। यह 3 नवम्बर 2007 की बात है। जाफरी तब भी नहीं मानीं और तीस्ता जावेद, हर्षमंदर और उन जैसे तथाकथित सेकुलर मानवाधिकारवादियों के कथित उकसावे पर सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गईं। जाफरी की शिकायत थी कि दंगों के दौरान गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी में दंगाइयों को रोकने की बजाय राज्य सरकार जानबूझकर हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। इसके लिए जाफरी ने मोदी और कई सरकारी अधिकारियों के नाम लिए थे।
सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई के पूर्व निदेशक आर.के. राघवन की अध्यक्षता में विशेष जांच दल गठित करके पूरे मामले की छानबीन करने को कहा था।
फरवरी 2011 में विशेष जांच दल ने अपनी रपट दाखिल की जिसमें इसने निष्कर्ष निकाला कि मोदी के उस मामले में संलप्तिता का कोई सीधा सबूत नहीं मिला। आखिरकार अब 12 सितम्बर को सर्वोच्च न्यायालय ने (दंगों के समय) मोदी के कथित हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने की शिकायत पर कोई भी निर्णय देने से मना करते हुए मामले की आगे की कार्यवाही संबंधित दण्डाधिकारी की अदालत में चलाने का फैसला सुनाया। सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष जांच दल को भी निर्देश दिया कि वह अपनी अंतिम रपट गुजरात में संबंधित दंडाधिकारी को सौंपे।
देश की सबसे बड़ी अदालत के इस फैसले से जहां गुजरात में न्यायपालिका की निष्पक्षता पर उंगली उठाने वाली सेकुलर जमात मायूस है वहीं मामले पर न्यायसंगत रवैया रखने वाले लोग संतुष्ट हैं। गुजरात सरकार ने फैसले पर संतोष जताते हुए कहा कि कानून की उचित प्रक्रिया पूरी हुई है और मुख्यमंत्री मोदी के खिलाफ किसी भी तरह की आपराधिक साठगांठ का कोई सबूत नहीं है। राज्य सरकार के प्रवक्ता जयनारायण व्यास ने कहा कि कुछ निहित स्वार्थी तत्वों का मकसद पीड़ितों को न्याय दिलाना नहीं बल्कि किसी न किसी तरह मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और गुजरात सरकार पर मनगढ़ंत आरोप लगाना ही रहा है। इसीलिए एक के बाद एक नए-नए चेहरे उभरते गए और बेबुनियाद आरोप लगाते गए। अगर ये तत्व और कुछ गैर सरकारी संगठन बाधा न डालते तो दंगा पीड़ितों को न्याय कब का मिल गया होता। भाजपा के केन्द्रीय नेताओं ने भी सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का स्वागत करते हुए इसे सत्य की जीत बताया है।
गुजरातवासियों के नाम एक पत्र के जरिए फैसले पर अपना मत व्यक्त करते हुए नरेन्द्र मोदी ने कहा कि इसने कलुषित वातावरण का अंत किया है। उन्होंने गुजरात को विकास पथ पर सतत् बढ़ाए रखने हेतु सभी से मिलकर काम करने और नकारात्मकता का भाव त्यागने की अपील की है। (देखें बाक्स) लेकिन दूसरी ओर तीस्ता और निलंबित आई.पी.एस. अधिकारी संजीव भट्ट अपने विष-बुझे शब्दों के साथ अदालत के फैसले पर लोगों को भ्रमित करने की अपनी मानसिकता के साथ सामने आए। भट्ट वही पुलिस अधिकारी हैं जिन्हें इस सेकुलर जमात ने कुछ ही वक्त पहले उभारा है और जो ऐसी ऐसी बातें गढ़कर उछालते हैं जिनका कोई सिर-पैर नहीं होता। एक नहीं अनेक मौकों पर वे झूठे साबित हुए हैं। तीस्ता की पोल तो उनके झूठे गवाह ही खोल चुके हैं। पर सेकुलर मीडिया के कंधों पर सवार होकर ये लोग गुजरात को लांछित करने के मौके तलाशते रहे हैं। इस सेकुलर जमात की “मोदी को बदनाम करो” मुहिम की पाञ्चजन्य में कई बार विस्तार से चर्चा की जा चुकी है।
मोदी गुजरात को विकास की जिस राह पर बढ़ाए ले जा रहे हैं उसकी तारीफ देश ही में नहीं, विदेशों में भी हो रही है। अंतरराष्ट्रीय निवेशक राज्य में निवेश करने को आतुर हैं, राज्य के निवासी, चाहे वे किसी मत-पंथ के हों, आगे बढ़ने के समान अवसर पा रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने नि:संदेह मोदी में नए आत्मविश्वास का संचार किया है जो राज्य के, और व्यापक अर्थों में देश के हित में ही होगा।द
शांति, एकता और सौहार्द हेतु सद्भावना मिशन
नरेन्द्र मोदी अपने जन्मदिवस अर्थात् 17 सितम्बर से “सद्भावना मिशन” आरम्भ करेंगे। इसके तहत वे तीन दिन उपवास रखकर राज्य में शांति, एकता और सौहार्द की मंगलकामना के साथ गुजरातवासियों के गौरव को और बढ़ाने के लिए सबका आह्वान करेंगे। उनका मानना है कि नकारात्मकता का भाव त्यागकर सकारात्मक दृष्टिकोण रखकर ही प्रगति के पथ पर बढ़ा जा सकता है।
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