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हिन्दी अपने देश में, रोती जार-बाजार,
घर में अपमानित हुई, हुआ विमुख परिवार।
देश-जाति-निज के प्रति, जिसे न हो अभिमान,
वह क्या कर सकता है भला, भाषा का सम्मान?
ठकुरसुहाती में रहे, रहे स्वार्थ में लीन,
हिन्दी के प्रति भावना, होती रही विलीन।
हिन्दी अक्सर झेलती, तरह-तरह के दंश,
लगता साजिश चल रही, करने को विध्वंश।
कौन महकमा कर रहा, भांति-भांति के खेल,
व्याकरण-इतिहास पर, कसता रहा नकेल।
हिन्दी लेखन में मिले, अंग्रेजी के अंक,
उसकी छाती पर लगे, ज्यों बिच्छू के डंक।
डैडी-मम्मी, लंच वो, डिनर-सपर परिवार,
बुआ को आन्टी कहे, करे कौन उपचार?
हिन्दी की दहलीज पर, उर्दू करे प्रयास
अंग्रेजी किसमिस चरे, हिन्दी को उपवास।
करते ढेरों गोष्ठी, होता बहुत विचार,
किस सम्मेलन में हुआ, हिन्दी का उद्धार?
आए जब हिन्दी-दिवस, लोग करें गुणगान,
हुई सभा के साथ ही, हिन्दी भी निष्प्राण।
हिन्दी भाषा देश की, यदि समझते आप,
इसे निरादर कर कभी, लेना मत सन्ताप।
हिन्दी भाषा-भाषियो, होता यह विश्वास,
हिन्दी जिस दिन लुप्त हो, होगा सत्यानाश।
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