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भोजपुरी-भाषा का प्राचीन मौखिक लोक-साहित्य अत्यन्त समृद्ध रहा है। वर्तमान समय में आधुनिक भोजपुरी में साहित्य-सर्जन तथा उसका प्रकाशन पुस्तकों तथा पत्रों-पत्रिकाओं के रूप में बड़े पैमाने पर हो रहा है। मगर भोजपुरी का मानकीकरण अब तक पूर्ण नहीं हो पाया है। पूर्णता प्रदान करने की दिशा में आचार्य हवलदार त्रिपाठी “सह्मदयव् लम्बे समय से अन्वेषण कार्य करते रहे। जिसकी फलश्रुति है यह कोश-ग्रंथ। प्रस्तुत कोश-ग्रंथ में मात्र 761 धातुओं की खेाज उन्होंने की है, जिनका विस्तार “ढ़व् वर्ण तक हुआ है। इस प्रबंध के अध्ययन से ज्ञात होता है कि 761 पदों की मूल धातु की वैज्ञानिक निर्माण प्रक्रिया में पाणिनि सूत्र का अक्षरश: अनुपालन हुआ है। पुस्तक की भूमिका में डा. गौरी शंकर तिवारी लिखते हैें, “भाषा- विज्ञान को आधार मानकर वर्ण विपर्यय के साथ भोजपुर में प्रचलित अतीव सरस, सुगम्य तथा स्वाभाविक वाक्यों का गुम्फन भोजपुरवासियों के मनोगत विशेष भावों को अभिव्यक्त करने में अपूर्व है।व्इस कोश-ग्रंथ में वर्णित विषय पर एक नजर डालने से भोजपुरी तथा संस्कृत भाषा के मध्य समानता स्पष्ट परिलक्षित होती है। वस्तुत: भोजपुरी-भाषा संस्कृत-भाषा के अति निकट और संस्कृत की ही भांति वैज्ञानिक भाषा है। भोजपुरी-भाषा के धातुओं और क्रियाओं का वाक्य-प्रयोग विषय को और अधिक स्पष्ट कर देता है। प्रामाणिकता हेतु संस्कृत व्याकरण को भी साथ-साथ प्रस्तुत कर दिया गया है।इस ग्रंथ की विशेषता यह है कि इसमें भोजपुरी-भाषा के धातुओं और क्रियाओं की व्युत्पत्ति को रुाोत संस्कृत-भाषा एवं उसके मानक व्याकरण से लिया गया है। इसके अनुशीलन से भोजपुरी-भाषा से इतर हिन्दी तथा संस्कृत भाषाओं के विद्वानों को भी मार्गदर्शन प्राप्त होगा। भोजपुरी के साधकों एवं अन्वेषकों को दिया गया लेखक का यह अमूल्य उपहार है। इस अधूरे कोश-ग्रंथ द्वारा भी एक नयी दिशा मिलती है। अब “समानधर्माव् अन्वेषकों का यह उत्तरदायित्व है कि वे भोजपुरी-भाषा एवं उसके व्याकरण के मानकीकरण की दिशा में प्रयत्न करें ताकि इस भाषा का मानकीकरण हो सके। करोड़ों जन की भाषा को सम्यक रूप मिल सके। लेखक की पाण्डुलिपि को उनके देहावसान के पश्चात काफी परिश्रम करके प्रकाशित करने के लिए डा. नन्द दूबे और प्रकाशक कृष्ण चन्द्र दूबे का प्रयास सार्थक सिद्ध होता है। दपुस्तक : व्युत्पत्ति मूलक भोजपुरी की धातु और क्रियाएं अन्वेषक : आचार्य हवलदार त्रिपाठी “सह्मदयव् सम्पादक तथा प्रकाशक : कृष्ण चन्द्र दूबे, हरिपाल दूबे शोध संस्थान, मंशा पाण्डेय के बाग, आरा (बिहार)-802301 पृष्ठ : 118, – मूल्य : 150 रुपए28
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