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बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देनी चाहिए-न्यायमूर्ति श्यामल कुमार सेन, अध्यक्ष, प. बंगाल, मानवाधिकार आयोगगत 20 जनवरी को कोलकाता में विवेकानन्द विद्या विकास परिषद् के रजत जयन्ती महोत्सव का समापन समारोह आयोजित हुआ। इसकी अध्यक्षता की पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं कोलकाता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्यामल कुमार सेन ने। मुख्य वक्ता थे विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के अ.भा. संगठन मंत्री श्री ब्राहृदेव शर्मा “भाई जी”। सान्निध्य मिला विवेकानन्द विद्या विकास परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष श्री अमल कुमार बसु का।समारोह को सम्बोधित करते हुए श्री ब्राहृदेव शर्मा “भाई जी” ने कहा कि विद्या भारती का उद्देश्य है देश की भावी पीढ़ी को नैतिक, आध्यात्मिक और धर्माधारित शिक्षा के माध्यम से जिम्मेदार नागरिक बनाना। राजा राममोहन राय, स्वामी विवेकानन्द, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी भी नैतिक शिक्षा के पक्षधर थे। इसलिए स्वतंत्रता के बाद भी बच्चों को नैतिक शिक्षा देनी चाहिए थी। किन्तु ऐसा नहीं हो पाया और आजादी के बाद शिक्षा की दिशा ही बदल दी गई। इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से शिशु मन्दिर योजना प्रारंभ की गई। उन्होंने बताया कि आज विद्या भारती की देखरेख में पूरे देश में 32,000 शिक्षण केन्द्र चलते हैं।न्यायमूर्ति श्यामल कुमार सेन ने कहा कि हमें अपने बच्चों को शिक्षा मातृभाषा में दिलानी चाहिए, साथ ही संस्कृत और अंग्रेजी भी पढ़ानी चाहिए। ताकि बच्चे अपनी भाषा से न कटें और अपनी संस्कृति को जान सकें। उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल में 1982 में विवेकानन्द विद्या विकास परिषद् की स्थापना की गई थी। इस परिषद् के तत्वावधान में आज बंगाल में 252 प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय और 2 उच्च विद्यालय चल रहे हैं। सन् 2007 इस परिषद् का रजत जयन्ती वर्ष था। इस अवसर पर पिछले एक साल में विभिन्न जगहों पर अनेक कार्यक्रम आयोजित हुए। -बासुदेब पाल11
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