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क्योंकि मित्तल की लक्ष्मी भारतीय है?
-प्रतिनिधि
“स्टील मैन” के नाम से विश्वभर में विख्यात भारतीय मूल के प्रसिद्ध उद्योगपति लक्ष्मी निवास मित्तल द्वारा लग्जमबर्ग की “आर्सेलर स्टील कम्पनी” को खरीदे जाने पर जिस तरह यूरोपीय देशों द्वारा विरोध किया जा रहा है, उससे लगता है कि मित्तल की एकमात्र गलती मानो यह है कि वे भारत में पैदा हुए हैं। अन्यथा फ्रांस सरकार द्वारा विश्व की किसी भी कम्पनी द्वारा पूंजी निवेश करने की अनुमति के बाद आर्सेलर विवाद की और क्या वजह हो सकती है? वह भी उस स्थिति में जबकि लक्ष्मी निवास मित्तल चीनी स्टील कम्पनियों से प्रतिस्पर्धा में खुद को तैयार करने और कर्मचारियों की छंटनी न करने का स्पष्ट भरोसा दिला रहे हों? विश्व पटल पर भारतीयों की बढ़त को रोकने का यूरोपीय देशों को शायद यही माध्यम उचित लगा लेकिन इस विरोध ने वैश्विक स्तर पर उनके दोहरे मानदण्डों की कलई खोलकर रख दी है।
लक्ष्मी निवास मित्तल ने दुनिया की सबसे बड़ी स्टील कम्पनी आर्सेलर को खरीदने के लिए गत 13 जनवरी को 23 अरब डालर की बोली लगाई थी, लेकिन इससे यूरोप के राजनीतिक क्षेत्रों सहित कारोबार जगत में हड़कंप मच गया। इसके बाद फ्रांस और लग्जमबर्ग सरकार ने निवेश प्रस्ताव का व्यापक स्तर पर विरोध शुरू कर दिया। इसी का नतीजा था कि विश्व आर्थिक फोरम की बैठक में फ्रांस के वित्तमंत्री थिएरी ब्रोटन बार-बार यह तो कहते रहे कि फ्रांस सरकार ने निवेश के लिए
अपने बाजार को खोल दिया है और दुनियाभर की कम्पनियां यहां पूंजी निवेश कर सकती हैं, लेकिन आर्सेलर के मामले में वे पलटी मार गए, बल्कि विरोध में शामिल होते हुए कह डाला कि मित्तल स्टील कम्पनी द्वारा आर्सेलर कम्पनी को खरीदने की पेशकश से जो लोग चिंतित हैं, उनमें वह भी शामिल हैं। उक्त बयान से स्पष्ट है कि एक ओर जहां निवेश को आमंत्रण दिया जा रहा है वहीं मित्तल स्टील कम्पनी द्वारा अधिग्रहण की पेशकश पर चिंता जताई जा रही है। जाहिर है भारतीय मूल के उद्योगपति की सफलता यूरोपीय देशों को पच नहीं रही है। दिलचस्प और हैरत की बात यह भी है कि लग्जमबर्ग और फ्रांस सरकार मित्तल स्टील कम्पनी को यूरोपीय ही नहीं मान रहे हैं। दोनों सरकारों का कहना है कि मित्तल स्टील कम्पनी भारतीय कंपनी है। जानकारों का भी मानना है कि लक्ष्मी मित्तल के पास भारतीय पासपोर्ट है और वे सबसे अमीर भारतीय के रूप में मशहूर हैं। शायद यही कारण है कि उनकी कम्पनी को जानबूझकर यूरोपीय न मानने का प्रयास किया जा रहा हो।
मुख्य बात यह है कि मित्तल स्टील कम्पनी का मुख्यालय नीदरलैंड के रोटरडम शहर में है और वह वहां पंजीकृत भी है। यही नहीं, मित्तल स्टील कम्पनी जर्मनी, फ्रांस, रोमानिया, पोलैंड, बोसनिया तथा चेक गणराज्य सहित सहित आठ यूरोपीय देशों में कारोबार कर रही है। इस कम्पनी में 70 हजार कर्मचारी कार्यरत हैं जो आर्सेलर से मात्र 25 हजार कम हैं। तथ्यों से स्पष्ट है कि मित्तल कम्पनी के विस्तार में बाधा पहुंचाने के लिए यह विवाद खड़ा किया जा रहा है। हालांकि लक्ष्मी निवास मित्तल ने कहा कि वे अपना भारतीय पासपोर्ट कभी नहीं छोड़ेंगे। उल्लेखनीय है कि लक्ष्मी निवास मित्तल का जन्म राजस्थान में हुआ था और यहीं उनकी परवरिश भी हुई थी। बाद में उन्होंने अपना कारोबार यूरोपीय और अफ्रीकी देशों में फैलाया।
दरअसल लक्ष्मी निवास मित्तल ने आर्सेलर कम्पनी प्रबंधन से अधिग्रहण संबंधी बातचीत करने के बजाय सीधे निवेशकों को 23 अरब डालर का प्रस्ताव दे डाला। निवेशकों ने प्रस्ताव का स्वागत किया, जिससे आर्सेलर कम्पनी की जड़ें हिल गईं। फ्रांस और लग्जमबर्ग सरकार एक भारतीय मूल के उद्योगपति के इस वर्चस्व को भला कैसे सहन कर पातीं। इसलिए कई तरह के बहाने बनाकर अधिग्रहण का विरोध शुरू कर दिया। आर्सेलर कम्पनी ने तो यहां तक कहा कि दोनों कम्पनियों के विचार, व्यवसाय के प्रारूप और मूल्य मेल नहीं खाते, इसलिए प्रस्ताव ठुकराया जा रहा है। यही नहीं, लग्जमबर्ग सरकार ने पूरे मामले पर भारत को हस्तक्षेप नहीं करने की सलाह भी दे डाली। भारत में लग्जमबर्ग के राजदूत पाल स्टेनमेटज ने कहा कि यह यूरोप की दो कम्पनियों के बीच का मुद्दा है और चूंकि आर्सेलर में लग्जमबर्ग की हिस्सेदारी है, इसलिए उसे मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार है जबकि भारत सरकार के लिए यह मुद्दा भिन्न है क्योंकि भारत कम्पनी में शेयर धारक नहीं है, लक्ष्मी मित्तल के केवल भारत में पैदा होने से ही उसे मामले में नहीं पड़ना चाहिए।
आखिर जब फ्रांसीसी कम्पनी लाफार्ज ने देश की बड़ी सीमेंट कम्पनियों का अधिग्रहण किया था, तब भारत या अन्य प्रतिस्पर्धी कम्पनियों ने विरोध नहीं किया तो फिर लक्ष्मी निवास मित्तल का विरोध क्यों किया जा रहा है? स्पष्ट है कि यूरोपीय देश विश्व पटल पर भारतीयों की बढ़ती ताकत को सहन नहीं कर पा रहे हैं। भारत दौरे के समय फ्रांसीसी राष्ट्रपति याक शिराक के समक्ष आर्सेलर मामला बेहद हल्के ढंग से उठाना और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का यह कहना कि फ्रांस सरकार इस पर न्यायसंगत फैसला लेगी, कई सवाल खड़े करता है।
कामयाबी की डगर
लंदन में बसे और भारत के राजस्थान राज्य में जन्मे 54 वर्षीय लक्ष्मी निवास मित्तल संसार के तीसरे सबसे अमीर व्यक्ति हैं। हाल ही में मित्तल ने अपनी कई स्टील कम्पनियों को सार्वजनिक कम्पनियों के रूप में समाहित किया है। मित्तल स्टील के शेयर न्यूयार्क और एम्सटर्डम शेयर बाजार में पंजीकृत हैं। पिछले साल दिसम्बर में मित्तल ने एलएमएम होÏल्डग्स और एम्सटर्डम स्थित कम्पनी इस्पात इंटरनेशनल का विलय किया था। उसी समय मित्तल ने घोषणा की थी कि वह (मित्तल स्टील) ओहायो स्थित इंटरनेशनल स्टील ग्रुप को 4.5 बिलियन डालर में खरीदेगी।
अकेले कजाकिस्तान में ही मित्तल स्टील में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या 50 हजार है। यहां से चीन के बाजारों में स्टील की आपूर्ति की जाती है। मित्तल कम्पनी का रोमानिया, चेक गणराज्य, दक्षिणी अफ्रीका और अमरीका में भी व्यापक स्तर पर कार्य है। चीन में वह “ह्रूमन वेलिन स्टील ट्यूब एंड वायर” कम्पनी में 37.2 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीद रहे हैं। आईएसजी से समझौता होते ही मित्तल स्टील की विश्व बाजार में छह प्रतिशत हिस्सेदारी हो जाएगी। मित्तल स्टील ने चेक गणराज्य में नोवा हट, पोलैण्ड में पोल्सकी हटी स्टेली, रोमानिया में पैट्रोट्यूब, बोस्निया में बीएच स्टील, मैसीडोनिया में बाल्कन स्टील, अल्जीरिया में अल्फासिड और दक्षिणी अफ्रीका में इस्कोर कंपनी को खरीद कर उभरते बाजार में अपनी मजबूत पकड़ बनाई है।
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