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होम भारत छत्तीसगढ़

हिंसक विचारधारा का प्रसार आतंकवाद

‘छत्तीसगढ़ का दर्द-नक्सल नासूर’ सत्र में छत्तीसगढ़ के समक्ष नक्सली हिंसा जैसी चुनौतियों के साथ ही हाल के वर्षों में आए सुखद बदलावों पर भी चर्चा हुई

by भुवन ऋभु
Jul 23, 2024, 01:17 pm IST
in छत्तीसगढ़
...नक्सल नासूर सत्र में अपने विचार रखते भुवन ऋभु

...नक्सल नासूर सत्र में अपने विचार रखते भुवन ऋभु

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हिंसा के जरिए किसी भी विचारधारा का प्रसार आतंकवाद है। अगर हिंसा का सहारा लेकर किसी विचार को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है और एक बड़ी आबादी को हिंसा के जरिए डरा-धमका कर विकास से दूर रखा जा रहा है, तो यह आतंकवाद है। छत्तीसगढ़ में बारूदी सुरंगों में विस्फोट जैसी घटनाओं में हाथ-पांव गंवाने वाले बच्चों की पीड़ा की कहीं चर्चा नहीं होती। नक्सली हिंसा के कारण बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित परिवारों ने बच्चियों को बाहर भेजना शुरू किया।

नतीजा, राज्य से बड़े पैमाने पर बच्चों की तस्करी शुरू हुई। नौकरी दिलाने के नाम पर कुकुरमुत्ते की तरह उग आई प्लेसमेंट एजेंसियों ने इसका फायदा उठाया। ट्रैफिकिंग और शोषण के दुष्चक्र को रोकने के लिए 2015 में किशोर न्याय कानून पर विचार-विमर्श के दौरान हमने यह मांग उठाई कि कोई व्यक्ति किसी बच्चे को अपराध में धकेलता है, तो इसे गंभीर अपराध माना जाए और 7 वर्ष सख्त सजा का प्रावधान किया जाए।

नक्सलवाद की चुनौती को खत्म करने के लिए हमें कानून पर सख्ती से अमल और विकास की दोहरी रणनीति पर काम करना होगा। एक तरफ शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास और दूसरी तरफ कानून पर सख्ती से अमल से ही आतंकवाद को रोका जा सकता है। लेकिन राहत की बात यह है कि पहले जिन स्कूलों में सीआरपीएफ के शिविर होते थे, आज वहां पढ़ाई हो रही है। छत्तीसगढ़ से बच्चों की ट्रैफिकिंग में काफी कमी आई है।

झारखंड, असम और नेपाल अब नए ठिकाने हैं। फिर भी नक्सलियों के शोषण और दुष्चक्र से बच्चों को बचाने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है, खासतौर से बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा से जुड़े कानूनों पर सख्ती से अमल हो। नक्सलियों के भय से लोगों ने नाबालिग बच्चियों का  विवाह करना शुरू कर दिया, जो गैर-कानूनी है। लेकिन इन मामलों की एफआईआर दर्ज नहीं की जाती, जबकि इन कानूनी कार्रवाइयों के क्या नतीजे हो सकते हैं, ये असम में बाल विवाह की दर में आई गिरावट से स्पष्ट है।

कुल मिलाकर, नक्सली हिंसा से मुक्ति और बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए कानून का शासन स्थापित करना होगा और इसकी सबसे जरूरी शर्त है कानूनों पर अमल। अरसे से नक्सली हिंसा से पीड़ित बच्चों व महिलाओं को कानूनी संरक्षण की जरूरत सबसे ज्यादा है। उनके अधिकारों की सुरक्षा करनी होगी, उनके लिए न्याय और पुनर्वास सुनिश्चित करना होगा। और कोई रास्ता नहीं है।
(लेखक प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता, लेखक और सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता हैं)

Topics: पाञ्चजन्य विशेषछत्तीसगढ़ में बारूदी सुरंगों में विस्फोटन्याय कानून पर विचार-विमर्शअमल और विकास की दोहरी रणनीतिनक्सली हिंसा से मुक्तिExplosions in landmines in Chhattisgarhdiscussions on justice lawdual strategy of implementation and developmentfreedom from Naxalite violence
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