मदरसों में गैर मुस्लिम बच्चों को पढ़ाने पर जमीयत उलमा ए हिन्द की जिद्द क्यों? NCPCR ने UP सरकार के निर्णय को कहा सही
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मदरसों में गैर मुस्लिम बच्चों को पढ़ाने पर जमीयत उलमा ए हिन्द की जिद्द क्यों? NCPCR ने UP सरकार के निर्णय को कहा सही

मदरसे में गैर मुस्लिम बच्चे की धार्मिक स्वतंत्रता का किस प्रकार हनन होता है उसका सबसे बड़ा उदाहरण है वीर हकीकत राय की कहानी।

by सोनाली मिश्रा
Jul 14, 2024, 12:20 pm IST
in विश्लेषण
NCPCR Priyank kanoongo

एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो

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उत्तर प्रदेश में इन दिनों गैर सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों को लेकर आए आदेश ने हंगामा मचाया हुआ है। दरअसल, उत्तर प्रदेश में गैर मान्यता के चल रहे छात्रों को लेकर पिछले दिनों राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने उत्तर प्रदेश सरकार को एक पत्र लिखकर यह कहा था कि सरकारी वित्त पोषित मदरसों में जो गैर मुस्लिम बच्चे पढ़ते हैं, उन्हें स्कूल में प्रवेश दिलाया जाए।

इसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव ने सभी जिलों को एक पत्र जारी करते हुए कहा कि सभी जिलों में गैर-मुस्लिम बच्चों को दाखिला देने वाले मदरसों की विस्तृत जांच की जाए। इसमें हर बच्चे का भौतिक सत्यापन होना चाहिए और इसके अतिरिक्त बिना मान्यता प्राप्त मदरसों में नामांकित सभी बच्चों को औपचारिक शिक्षा प्रदान करने के लिए तत्काल प्रभाव से बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा संचालित विद्यालयों में प्रवेश दिलाया जाएगा।

इस पर जमीयत-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने इस कदम को असंवैधानिक बताया है और यह कहा है कि बच्चे को कैसी और कहाँ पर शिक्षा देनी है, वह हर माता-पिता का अधिकार होता है और मदरसे में गैर-मुस्लिम बच्चों को जबरन नहीं लाया जाता है। और भी उन्होनें काफी बातें कहीं।

मदरसों को लेकर कोई कितनी भी प्रगतिशीलता की बातें कहे, मगर यह बात सत्य है कि मदरसे का मुख्य चरित्र या कहें उसका मूल अपने मजहब से संबंधित तालीम देना ही होता है। मदरसे की परिभाषा के विषय में और जानते हैं तो पाते हैं कि इसका अर्थ होता है एक मुस्लिम स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी, जो अक्सर मस्जिद का हिस्सा होता है। तो यह स्पष्ट है कि उसमें मजहबी तालीम भी हिस्सा है। अब ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या यह एक गैर-मुस्लिम बच्चे की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन नहीं है, यदि वह मदरसे मे तालीम हासिल कर रहा है।

मदरसे में गैर मुस्लिम बच्चे की धार्मिक स्वतंत्रता का किस प्रकार हनन होता है उसका सबसे बड़ा उदाहरण है वीर हकीकत राय की कहानी। यह कहानी हालांकि पुरानी है, परंतु इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि यह उस धार्मिक स्वतंत्रता की बात करती है, जिसका हनन मदरसे में होता है। हकीकत राय को भी उनके माता-पिता ने फारसी सीखने के लिए मदरसे में भेजा था। वह समय ऐसा था जब फारसी राजकाज की भाषा हुआ करती थी। वीर हकीकत राय के पिता चाहते थे कि बेटा पढ-लिख कर कुछ बन जाए। यही कारण था कि उन्होनें फारसी सीखने के लिए मदरसे में भेजा। और वहाँ पर उनके धार्मिक प्रतीक का अपमान हुआ, जब हकीकत राय ने प्रतिवाद किया तो उनपर बेअदबी का आरोप लगाकर उन्हें मृत्युदंड दे दिया गया।

उस समय फारसी की अनिवार्यता होने पर एक मजहबी संस्थान में पढ़ने की बाध्यता समझ में आती है, परंतु आज जब भारत एक सेक्युलर देश है, तो हर बच्चे के पास यह अधिकार होना चाहिए कि उसे वह शिक्षा प्राप्त हो जिससे उसका सर्वांगीण विकास हो और जो उसके धार्मिक अधिकार का भी हनन न करे। हालांकि पहले के लेखकों आदि ने मदरसे को लेकर यह भ्रम फैलाने का प्रयास किया कि वे शिक्षा का केंद्र होते हैं, मगर वे यह बताना भूल गए या कहें मुस्लिम शासन के प्रति इस सीमा तक आसक्त थे कि उन्होनें आजादी के बाद भी मदरसों को ही सरकारी स्कूलों पर प्राथमिकता दी। जैसे बच्चों को अभी तक पढ़ाई जा रही राजेश जोशी की यह कविता “बच्चे काम पर जा रहे हैं!”

उन्होनें इसमें लिखा कि “क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं सारे मदरसों की इमारतें”

जबकि यह कविता आजादी के बाद लिखी गई थी। और यही कारण है कि मदरसों को अभी भी लोग केवल तालीम का ही स्थान मानते हैं, जबकि यह उसकी परिभाषा में स्पष्ट है कि वह एक मजहबी तालीम का केंद्र होता है। यही बात एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने एक्स पर अपने पोस्ट में लिखी कि “मदरसा,इस्लामिक मज़हबी शिक्षा सिखाने का केंद्र होता है और शिक्षा अधिकार क़ानून के दायरे के बाहर होता है।

ऐसे में मदरसों में हिंदू व अन्य ग़ैर मुस्लिम बच्चों को रखना न केवल उनके संवैधानिक मूल अधिकार का हनन है बल्कि समाज में धार्मिक वैमनस्य फैलने का कारण भी बन सकता है।“

उन्होंने यह भी लिखा कि जमीयत ए उलेमा ए हिन्द नामक इस्लामिक संगठन इस आदेश बारे में झूठी अफ़वाह फैला कर लोगों को गुमराह कर सरकार की ख़िलाफ़त में जन सामान्य की भावनाएँ भड़काने का काम कर रहा है, ये मौलवियों का एक संगठन है जो कि मदरसा दारुल उलूम देवबंद की एक शाखा ही है जो कि जिसके द्वारा गजवा ए हिन्द का समर्थन करने पर आयोग ने कार्रवाई की है।

इसके साथ ही उन्होनें एक कटिंग भी लगाई जिसमें उल्लेख था कि कैसे एक हिन्दू बच्चे का अपहरण करके उसकी धार्मिक पहचान बदल दी गई थी और यह उत्तर प्रदेश के देवबंद से सटे हुए एक गाँव में हुआ था।

आज भी उन्होंने यह स्पष्ट कहा कि भारत का संविधान बाबा साहब अंबेडकर ने लिखा है और कट्टरपंथी इसकी मनचाही व्याख्या करके जनता को गुमराह न करें। उन्होंने स्पष्ट कहा कि हिंदू बच्चों का मदरसे में कोई काम नहीं है, उत्तरप्रदेश सरकार का हिंदू बच्चों का मदरसे के बजाय स्कूल में प्रवेश देने का निर्णय एकदम सही और विधिसम्मत है।

उन्होंने कहा कि जमीयत ए हिन्द के कठमुल्ले दोतरफा काम करते हैं, एक तरफ तो मुस्लिम बच्चों को स्कूलों में पढ़ने नहीं देते हैं, उन्हें संविधान नहीं पढ़ने देते हैं, उन्हें देश की जानकारी नहीं लेने देते और उन पर कंट्रोल करते हैं और संविधान की मनमानी व्याख्या करने के बाद सरकार पर दबाव बनाकर मनचाहे आदेश पारित कराना चाहते हैं।

मदरसों की मनमानी व्याख्या केवल जमीयत ही नहीं करती है, बल्कि यह समूचे लिबरल विमर्श में शामिल है और इसके साथ ही तमाम साहित्यिक विमर्श में शामिल है, जिसे बदले जाने की आवश्यकता है और यह कहे जाने की आवश्यकता है कि मदरसा दरअसल एक मजहबी तालीम की संस्था है, जिसमें मजहबी तालीम के साथ अन्य विषय पढ़ाए जाते हैं। तो मजहबी तालीम किसी गैर मुस्लिम को क्यों दिए जाने का हठ जमीयत-ए-हिन्द कर रही है?

 

Topics: Jamiat Ulema-e-Hindएनसीपीसीआरउत्तर प्रदेशUttar PradeshPriyank Kanungoप्रियांक कानूनगोमहमूद मदनीMahmood MadaniNCPCRजमीयत उलेमा-ए-हिन्द
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