फिर साक्षात् पधारे आद्य गुरु

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लोकेंद्र सिंह/सौरभ तामेश्वरी

समारोह के दौरान ऐसा लग रहा था मानो मांधाता पर्वत पर स्वर्ग उतर आया हो। आचार्य शंकर का फिर से अवतरण हो रहा हो। केरल, असम, ओडिशा, राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों के कलाकारों ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से समारोह को अलौकिक बना दिया।

मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में सुखदायिनी नर्मदा के किनारे मांधाता पर्वत (ओंकार पर्वत) पर जिस समय संत-महात्मा एवं अन्य महानुभाव यज्ञ के बाद आद्य शंकराचार्य की प्रतिमा का पूजन करने आगे बढ़ रहे थे, उसी समय मेघदूतों ने कुछ क्षण के लिए वर्षा की। दृश्य ऐसा था कि मानो स्वयं देवता भी आचार्य शंकर का अभिषेक करने से स्वयं को रोक नहीं पाए। भाद्रपद, शुक्ल पक्ष षष्ठी (21 सितंबर) को वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आद्य शंकराचार्य के बाल स्वरूप की 108 फीट ऊंची दिव्य एवं मोहक प्रतिमा का अनावरण किया। यह प्रतिमा 54 फीट ऊंचे आसन पर बनी 27 फीट ऊंची कमल पंखुड़ियों पर स्थापित है। कंक्रीट और स्टील से बने आधार को 500 वर्ष तक कोई नुकसान नहीं होगा। जगद्गुरु शंकराचार्य की प्रतिमा का मुख मां नर्मदा और ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की ओर है। संत और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लिफ्ट से 75 फीट ऊपर पहुंचे और पूजा के बाद प्रतिमा की परिक्रमा की।

‘शंकरावतरणम्’ समारोह में स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज, परमात्मानंद जी, स्वामी स्वरूपानंद जी, स्वामी तीर्थानंद जी महाराज, गुरु मां आनंदमूर्ति, रा.स्व.संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री सुरेश भैय्याजी जोशी, श्री सुरेश सोनी और संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर, पद्मश्री वीआर गौरीशंकर सहित उत्तर से लेकर दक्षिण के हजारों साधु-संत व 13 प्रमुख अखाड़ों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। इस अवसर पर श्रीशारदा पीठ के शंकराचार्य विधुशेखर भारती, द्वारिका पीठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती और कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य विजयेंद्र सरस्वती ने भी डिजिटल माध्यम से आशीर्वचन दिए।

‘अद्वैत का सिद्धांत सर्वश्रेष्ठ’

– जगद्गुरु शंकराचार्य श्री विधुशेखर भारती
श्री शारदा पीठ, शृंगेरी

दुनिया में सनातन धर्म के हर अनुयायी के लिए आज पवित्र, अविस्मरणीय और ऐतिहासिक शुभ दिन है। पवित्र ज्योतिर्लिंग क्षेत्र में नर्मदा नदी के तट पर विराजमान जगद्गुरु श्री श्री 108 शंकराचार्य जी की भव्य प्रतिमा का पदों से लेकर सिर तक दर्शन कर सकेंगे। इनके दर्शन मात्र से मन में जो आनंद उत्पन्न होता है, उसे हम शब्दों में नहीं कह सकते। यहां पर शंकराचार्य जी का सुंदर मुख देखते हैं, तो उस मुख के ऊपर हमें विशाल आसमान दिखाई दे रहा है। कैलाश पर्वत का शिखर जितना दृढ़ है, उतनी ही शंकराचार्य जी की महिमा। इनके द्वारा प्रतिपादित अद्वैत सिद्धांत कैलाश पर्वत के शिखर जैसा भव्य एवं सर्वश्रेष्ठ है। अद्वैत का सिद्धांत आकाश जैसा अति विस्तृत, अनंत एवं शुद्ध है। जिस प्रकार आकाश में सभी प्रकार के तारों, चंद्रमा इत्यादि का एक स्थान है, वैसे ही इस अद्वैत सिद्धांत में हर दर्शन, हर संप्रदाय का एक स्थान है। उन्होंने सनातन धर्म के सभी संप्रदायों को एकजुट कर आपसी विवाद को समाप्त किया था। अद्वैत सिद्धांत सर्वश्रेष्ठ है। यह पूरी दुनिया के संप्रदायों को जोड़ता है। भगवान् शंकराचार्य जी के दर्शन के उपरांत हमारे मन में ऐसी भावना आनी चाहिए कि इनके सामने हम कितने छोटे हैं। हमें इनके बताए मार्ग पर चल कर अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।

विश्व के कल्याण के लिए सनातन धर्म अति आवश्यक है। जब सनातन धर्म पर संकट आया था, तब शंकराचार्य जी ने इसका उद्धार कर लोगों को अनुग्रहीत किया था। शंकराचार्य जी ने धर्म की शाश्वत स्थिति के लिए मुख्य रूप से तीन काम किए थे। पहला ग्रंथों, प्राकरण और स्त्रोतों की रचना। दूसरा, दिग्विजय यात्रा कर पूरे भारतवर्ष का मार्गदर्शन और तीसरा काम चारों दिशाओं में पीठों की स्थापना। यह सनातन धर्म के लिए शाश्वत रूप से एक बड़ी व्यवस्था थी। इसी के कारण दुनिया में आज भी सनातन धर्म जीवंत है। जहां पर जगद्गुरु आद्य शंकराचार्य जी को गुरु के रूप में श्री गोविंद पादाचार्य जी मिले, उस प्रदेश में इतनी उनकी भव्य मूर्ति की स्थापना बहुत ही संतोषजनक एवं ऐतिहासिक बात है।
– जगद्गुरु शंकराचार्य श्री विधुशेखर भारती
श्री शारदा पीठ, शृंगेरी

समारोह के दौरान ऐसा लग रहा था मानो मांधाता पर्वत पर स्वर्ग उतर आया हो। आचार्य शंकर का फिर से अवतरण हो रहा हो। केरल, असम, ओडिशा, राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों के कलाकारों ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से समारोह को अलौकिक बना दिया। वेद मंत्रोच्चार ने वातावरण में ऊर्जा का संचार किया, जिसे सहज अनुभव किया जा सकता था। इस अवसर पर सभी संतों एवं महानुभावों ने समवेत स्वर में कहा कि आद्य शंकराचार्य की यह प्रतिमा देश-दुनिया में हिंदू संस्कृति, अद्वैत सिद्धांत, एकता और शांति का संदेश पहुंचाएगी।

प्रतिमा की स्थापना से पहले मांधाता पर्वत पर उत्तरकाशी के स्वामी ब्रह्मेंद्रानंद और 32 संतों ने 11 सितंबर से प्रस्थानत्रयी भाष्य शुरू कर दिया था, जो 20 सितंबर तक चला। प्रस्थानत्रयी भाष्य वेदांत के तीन प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता, ब्रह्मसूत्र और उपनिषदों को प्रस्थानत्रयी कहा जाता है। प्रतिमा अनावरण के अवसर पर आदिगुरु के लिए शृंगेरी के श्रीशारदा पीठ से लाई गई रुद्राक्ष की माला मुख्यमंत्री को सौंपी गई। मठ की ओर से चरण पादुकाएं भी भेजी जाएंगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, ‘‘आज आदिगुरु फिर पधारे हैं। उनके चरणों में प्रणाम। उपयुक्त अवसर पर रुद्राक्ष की माला आदिगुरु को पहनाई जाएगी।’’

‘भारतीय संस्कृति और भावी पीढ़ी को उपहार’

– जगद्गुरु शंकराचार्य श्री सदानंद सरस्वती
शारदापीठ, द्वारिका

यह परमपवित्र अवसर है। भारत की पुण्यभूमि पर समय-समय पर बड़े-बड़े ओजस्वी और तेजस्वी महापुरुषों ने अवतार लिया है, जिनमें भगवद्पाद शंकराचार्य भगवान् प्रथम पंक्ति में हैं। उन्होंने ऐसे समय अवरित होकर देश को दिशाबोध प्रदान किया, जिस समय देश में विधर्मियों ने घोषणा की थी कि वेदा: अप्रमाणम् यानी वेद प्रमाण नहीं है। उस समय भगवद्पाद आदि शंकराचार्य जी ने लगभग 72 मतों का खंडन करके अद्वैत सिद्धांत का किला खड़ा किया था। उसी दर्शन को प्राप्त करके हम आज एकात्म धाम की स्थापना कर रहे हैं। प्राणीमात्र में परमात्मा का दर्शन भगवद्पाद शंकर का प्रथम उपदेश है।

श्रुतियों ने कहा है, यदि इस जन्म में जान लिया तो ठीक है और नहीं जाना तो बहुत बड़ा विनाश होने वाला है। क्या जानने योग्य है? इस पर भगवद्पाद अपने भाष्य में कहते हैं, प्राणीमात्र में परमात्मा का दर्शन करके अमृतत्व को प्राप्त किया जा सकता है। चतुष्पीठ की स्थापना कर उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनके बाद भी इन पीठों से धर्म संदेश प्रसारित होता रहे। प्रजा का पालन राजा करता है और राजा को उपदेश धर्म से प्राप्त होता है। धर्म का उपदेश धर्माचार्य करते हैं। प्राचीन काल से राजा, प्रजा, धर्म और धर्माचार्य की जो शृंखला चली आ रही थी, भगवद्पाद शंकर ने उसे और मजबूती प्रदान की। ओंकारेश्वर में भगवद्पाद शंकराचार्य जी की विशाल मूर्ति की स्थापना करके मध्य प्रदेश शासन ने निश्चित रूप से भारतीय संस्कृति और आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत बड़ा उपकार, उपहार दिया है।
– जगद्गुरु शंकराचार्य श्री सदानंद सरस्वती
शारदापीठ, द्वारिका

भव्य होगा ‘अद्वैत लोक’
आद्य शंकराचार्य की प्रतिमा को ‘एकात्मता की प्रतिमा’ (स्टैच्यू आफ वननेस) और यहां विकसित होने वाले पूरे परिसर को ‘एकात्म धाम’ नाम दिया गया है। प्रतिमा अनावरण के बाद शाम को ओंकारेश्वर के प्रसिद्ध तीर्थस्थल सिद्धवरकूट में ‘ब्रह्मोत्सव’ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर एकात्म धाम में भूमिपूजन के बाद मुख्यमंत्री चौहान ने ‘अद्वैत लोक’ की आधारशिला रखी। यह एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिस पर 2200 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। मांधाता पर्वत पर 11.5 हेक्टेयर में बनने वाला ‘अद्वैत लोक’ 2026 तक बनकर तैयार हो जाएगा।

इस परियोजना के अंतर्गत एक संग्रहालय का भी निर्माण किया जाएगा, जिसमें अद्वैत वेदांत के संदेशों को दर्शाते हुए आदिगुरु शंकराचार्य के जीवन और दर्शन को प्रदर्शित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, ‘आचार्य शंकर अंतरराष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान’ की स्थापना भी की जाएगी। यह वेदांत के अध्ययन, प्रचार के लिए समन्वय, अनुसंधान तथा संसाधन केंद्र के तौर पर कार्य करेगा। राज्य सरकार शोधार्थियों और विद्यार्थियों के लिए चार शोध केंद्र भी स्थापित करने पर विचार कर रही है। ये केंद्र आदिगुरु शंकराचार्य के चार शिष्यों के नाम पर होंगे, जिनके नाम हैं-अद्वैत वेदांत आचार्य पद्मपाद केंद्र, आचार्य हस्तमलक अद्वैत विज्ञान केंद्र, आचार्य सुरेश्वर सामाजिक विज्ञान अद्वैत केंद्र तथा आचार्य तोटक साहित्य अद्वैत केंद्र।

आचार्य शंकर पर बनेगी फिल्म
ब्रह्मोत्सव में न्यास ने आचार्य शंकर के चरित्र पर फिल्म ‘शंकर’ के निर्माण की घोषणा भी की। इसका निर्देशन आशुतोष गोवारिकर करेंगे। आशुतोष गोवारिकर ने इस संबंध में एक्स पर एक पोस्ट डाली है। इसमें उन्होंने लिखा है, ‘‘मैं बहुत सम्मानित अनुभव कर रहा हूं कि आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास के सहयोग से बनने वाली फिल्म ‘शंकर’ के माध्यम से आदि शंकराचार्य के जीवन एवं ज्ञान को सामने लाने का अवसर मुझे मिला है।’’

‘भारत विश्व गुरु बने, यही कामना है’

– जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी विजयेंद्र सरस्वती कांची कामकोटि पीठ, कांचीपुरम्

वेदों का सार है विश्व-कल्याण। आज इस विचार को सारा विश्व मान रहा है। अद्वैत के सिद्धांतों से देश का विकास होगा और भारत जल्द विश्व गुरु बन सकेगा। जब हम इतिहास पढ़ते हैं तो पता चलता है कि केरल से जब दीक्षा लेने के लिए भगवान् शंकराचार्य ओंकारेश्वर पहुंचे थे, वहां पर बाढ़ आई हुई थी। लेकिन उनके द्वारा नर्मदा का स्मरण करते ही बाढ़ का प्रकोप कम हो गया। 21 सितंबर को अनुराधा नक्षत्र है। इस नक्षत्र के देवता पितृ देवता होते हैं।

सभी के लिए सौहार्द के साथ शिवराज जी के द्वारा यह बहुत अच्छा कार्य हुआ है। इन सब कार्यों से जनता का कल्याण हो, इसके लिए अद्वैत दर्शन की जरूरत आज भी है। सभी प्रकार का विकास होना चाहिए। सभी प्रकार का आनंद होना चाहिए। शंकराचार्य जी का उपदेश है कि किसी के साथ झगड़ा मत करो। सबके साथ मिल-जुल कर काम करना। बौद्धिक विकास, अध्यात्मिक प्रगति, सनातन धर्म का प्रचार प्रसार होता रहे। भारतवर्ष के सभी मंदिरों में पूजा-पाठ की व्यवस्था हो।

शंकराचार्य जी के उपदेश को जन-जन तक पहुंचाने की जो प्रकल्पना है, उसे देखकर प्रसन्नता होती है। ओंकारेश्वर में शंकराचार्य जी के उपदेशों से लोगों को जो स्फूर्ति मिली है, हम भगवान से प्रार्थना करेंगे कि वह भारत को विश्व गुरु बनने में सफल बनाए। सबके कल्याण के लिए हम भगवान से प्रार्थना करेंगे। धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो, गोमाता की रक्षा हो, सनातन धर्म का प्रगति एवं विस्तार हो। हर हर शंकर, जय जय शंकर।

– जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी विजयेंद्र सरस्वती कांची कामकोटि पीठ, कांचीपुरम्

शास्त्रसम्मत प्रतिमा
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 9 फरवरी, 2017 को ओंकारेश्वर में ‘नर्मदा सेवा यात्रा’ के दौरान आद्य शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा की थी। लेकिन सरकार के सामने समस्या यह थी कि 12 वर्ष के आचार्य शंकर की प्रतिमा कैसी हो? उस अवस्था में वे कैसे दिखते होंगे? इसका कारण यह था कि आद्य शंकराचार्य के बाल स्वरूप का कोई चित्र उपलब्ध नहीं है। उनका जो चित्र आमतौर पर हमें देखने को मिलता है, उसे महान चित्रकार राजा रवि वर्मा ने बनाया था। इसलिए प्रतिमा के स्वरूप को लेकर सरकार ने 100 से अधिक संतों-विद्वानों से लंबे समय तक विचार-विमर्श किया। इसमें प्रतिमा के स्वरूप, उसके रंग, वस्त्र, त्रिपुंड आदि पर विस्तार से चर्चा की गई। यहां तक प्रतिमा के वस्त्र में कैसी और कितनी सिलवटें होंगी? गले में रुद्राक्ष की माला के कितने बीज वस्त्र के ऊपर दिखेंगे? इसके बाद देश के विख्यात 11 चित्रकारों-मूर्तिकारों के बीच प्रतियोगिता कराई गई।

लंबी चर्चा के बाद जिस छवि की कल्पना की गई थी, उसके आधार पर उनके द्वारा बनाए गए चित्रों और प्रतिमाओं पर विचार मंथन हुआ। इन सब विषयों पर चर्चा करने के बाद आद्य शंकराचार्य के बाल स्वरूप का चित्र बनाने की जिम्मेदारी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात चित्रकार वासुदेव कामत को दी गई। उन्होंने वेदों एवं संतों के मार्गदर्शन में बालक शंकर का भावपूर्ण चित्र तैयार किया। इसी चित्र के आधार पर प्रख्यात मूर्तिकार भगवान रामपुरे ने अथक परिश्रम से प्रतिमा को आकार दिया। आद्य शंकराचार्य की प्रतिमा का निर्माण पूरी तरह शास्त्रसम्मत तरीके से किया गया है। उनके दंड-त्रिपुंड तक लंबे विचार-विमर्श के बाद तय किए गए हैं। आद्य शंकराचार्य के शरीर पर 11 त्रिपुंड लगाए जाते हैं, इसलिए प्रतिमा के दोनों हाथों पर तीन-तीन, गला, हृदय और पीठ पर भी त्रिपुंड बनाए गए हैं। यहां तक कि आद्य शंकराचार्य का चित्र बनाने से पहले वासुदेव कामत ने भी आदिगुरु के कई ग्रंथ और उनकी जीवनी पढ़ी।

प्रतिमा के निर्माण में समाज के सभी वर्गों का सहयोग मिले, इसके लिए 2017-18 में मध्य प्रदेश की लगभग 23,000 पंचायतों में गांव-गांव तक एकात्म यात्राएं निकाली गई थीं। जनजागरण और धातु संग्रहण के उद्देश्य से निकाली गई यात्राओं में समाज के हर वर्ग से धातुएं एकत्रित की गई। उन्हीं धातुओं का उपयोग कर आद्य शंकराचार्य के बाल स्वरूप की अष्टधातु की भव्य प्रतिमा बनाई गई है।

 

 

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