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त्रिपुरा के नवनियुक्त मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब कहते हैं, ‘‘हमारा प्रयास है कि दो-तीन वर्षों के अंदर राज्य में एक भी व्यक्ति बेरोजगार न रहे। हमने जो हर घर में रोजगार का वायदा किया उसे पूरा करेंगे, लोगों का भविष्य उज्ज्वल हो, इसके लिए रात-दिन काम करेंगे।’’ राज्य में भाजपा की ऐतिहासिक विजय के बाद पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर एवं संवाददाता अश्वनी मिश्र ने नई दिल्ली के त्रिपुरा भवन में उनसे विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:-
त्रिपुरा में भाजपा की ऐतिहासिक विजय के बाद आपके सामने बड़ी चुनौती क्या है? सीधे-सादे मुख्यमंत्री की छवि बनाना या त्रिपुरा का विकास करना?
त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी को जो ऐतिहासिक विजय मिली है, वह विकास करने के लिए मिली है। इसलिए हमारा सिर्फ और सिर्फ एक ही काम है राज्य का विकास करना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जो विकास का मंत्र है-सबका साथ, सबका विकास, इसी को ध्यान में रखकर राज्य के लाखों लोगों का भविष्य कैसे उज्ज्वल हो, इसके लिए हम रात-दिन काम करेंगे। व्यक्तिगत रूप से मैं चाहे जैसा भी हूं, लेकिन जब आप प्रशासक बन जाते हैं, तो गवर्नेंस से आपका परिचय होता है, इससे ही आप सभी जगह जाने जाते हैं।
… लेकिन माणिक सरकार का परिचय तो उलटा था?
देखिए, माणिक सरकार का परिचय जो भी रहा हो, मैं व्यक्तिगत रूप से किसी पर कुछ नहीं कहूंगा। लेकिन भाजपा की जीत से एक बात तो प्रमाणित हो गई कि राज्य में ‘गुड गवर्नेंस’ नहीं थी। अब मेरे पास जो रिपोर्ट आ रही हैं, उनमें दिखता है कि माणिक सरकार को मनरेगा में अवार्ड मिला था। ऐसा बताया गया कि वे देश में शीर्ष पर हैं। लेकिन जब खंगाल शुरू हुई, तो देश में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार अगर मनरेगा में कहीं हुआ तो वह त्रिपुरा की माणिक सरकार में हुआ। इसलिए मनरेगा का भुगतान बंद था। अब हमने केंद्र से अनुरोध कर सात दिन का समय मांगा है। क्योंकि प्रशासन ने राज्य सरकार को भ्रष्टाचार की रिपोर्ट दी थी लेकिन राज्य सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। हालत यह थी कि मृतक के नाम से भी भुगतान हो रहा था। अब हमारी ओर से केंद्र को आश्वस्त किया गया है कि इसमें लिप्त लोगों के खिलाफ न केवल प्राथमिकी दर्ज करवाई जाएगी बल्कि कड़ी कार्रवाई करेंगे। इस आश्वासन के बाद केंद्र की ओर से मनरेगा के लिए हमने 241 करोड़ रुपए जारी करवाए हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 50 उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें 49 की जमानत जब्त हो गयी थी। 1.87 प्रतिशत वोट मिले थे। सिर्फ पांच साल में एकदम तस्वीर बदल गयी। शून्य से शिखर का सफर, कैसे संभव हुआ?
शून्य से शिखर पर पहुंचने का श्रेय भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को है, जिन्होंने रात-दिन मेहनत करके आज यहां पहुंचाया है। हां, इससे पिछले चुनाव में हमारी जो स्थिति थी, उसे सभी जानते हैं। लेकिन कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत रंग लाई और आज परिणाम सबके सामने हैं। दूसरी बात, त्रिपुरा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जमीनी स्तर पर काम है और समाज के बीच वह निरंतर काम कर रहा था। तीसरी बात, जो मुझे समझ आई वह यह कि पिछले तीन साल में कम्युनिस्टों के सामने कांग्रेस ने कोई वैकल्पिक नेतृत्व नहीं दिया और दस साल तो संप्रग सरकार सीपीएम के साथ, एक बार तो प्रत्यक्ष तो दूसरी बार केंद्र में अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर रही है। इसके कारण केन्द्र में तब आसीन कांग्रेस कभी नहीं चाहती थी कि त्रिपुरा से सीपीएम का राज खत्म हो। मजबूत नेतृत्व के अभाव में जनता के पास कोई विकल्प नहीं था। इसलिए राज्य में माणिक सरकार चली आ रही थी। लेकिन जैसे ही 2014 में नरेन्द्र मोदी सरकार आयी तो लोगों को मोदी के रूप में एक विकल्प दिखा। लोगों को भाजपा का चाल, चरित्र और चेहरा दिखाई दिया। इसी कारण से कांग्रेस और वामदल को त्रिपुरा के लोगों ने नकारा है।
मीडिया द्वारा त्रिपुरा की एक तथाकथित छवि बनाई गई थी, जबकि उसी त्रिपुरा में नफरत की राजनीति और हिंसा का भी एक मॉडल रहा है। लेकिन इसकी कभी चर्चा नहीं होती। इसे आप कैसे देखते हैं?
त्रिपुरा में संगठित अपराध और भ्रष्टाचार, इसका नाम कम्युनिस्ट पार्टी है। ये लोग गरीब-गुरबों के मनरेगा, बीपीएल, प्रधानमंत्री आवास योजना में संगठित रूप से मिलकर भ्रष्टाचार करते थे। कुल मिलाकर यूं कहें कि गरीबों का हक मारते हैं कम्युनिस्ट। दुनिया में एक ही पार्टी है जो गरीबों का पैसा खाती है, वह है-कम्युनिस्ट पार्टी। आप देखिए, सीआईटी उनकी असामाजिक तत्वों की यूनियन है। यही लोग मार-पीट, दंगा-फसाद करते हैं। जैसे कोई व्यक्ति किराये का आॅटो चलाता है। दिन में उसकी आमदनी कुछ हो या न हो पर आॅटो स्टैंड पर खड़ा है तो यूनियन के लोगों को पच्चीस रुपए चाहिए। ऐसे ही किसी दिन आॅटो घर में रहा, तब भी जबरदस्ती उसे पैसा चाहिए। रिक्शा वालों का भी यही हाल है। ऐसा दुनिया में कहीं भी नहीं है। इन लोगों को नहीं पता कि लोग कितने कष्ट से कुछ पैसा कमा पाते हैं। इसलिए ये जो लूटने वाला तंत्र है वह एकमात्र कम्युनिस्टों के पास है। त्रिपुरा में इसी तंत्र और काडर के माध्यम से संगठित होकर ये लोगों को डरा-धमकाकर राज करते थे। इसलिए त्रिपुरा में कम्युनिस्टों का सत्ता से खात्मा हुआ है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि माणिक नहीं हीरा (एच-हाइवे, आई-आईवे,आर-रोडवेज, ए-एअरवेज) चाहिए। प्रधानमंत्री की इस सोच को जमीन पर उतारने के लिए आपने कुछ ठोस योजना बनाई है?
हमने कामकाज संभालना अब शुरू किया है। देखिए, त्रिपुरा 90 फीसदी केंद्र के पैसे पर निर्भर है। इसलिए हमारी प्राथमिकता यही है कि केंद्र सरकार की सभी योजनाएं यहां अच्छे से लागू हों और उनसे हर व्यक्ति लाभान्वित हो। जबकि माणिक सरकार ने इनको जमीनी स्तर पर लागू ही नहीं होने दिया था। आप देखिए, केंद्र की 12 रुपये की प्रत्येक गरीब के लिए बीमा की योजना है। यह बड़ी छोटी बात है। लेकिन इस बीमा के फायदे हैं। अगर किसी व्यक्ति की इसके अंतर्गत मृत्यु हो जाती है तो उसे दो लाख रुपए मिलेंगे। राज्य में माणिक सरकार भी थी, उनका काडर भी था और तंत्र भी और बैंकिंग यूनियन भी। लेकिन यह त्रिपुरा में लागू नहीं हुई। मेरी सरकार आने के बाद अभी कुछ दिन पहले सभी बैंकों के अधिकारियों की बैठक हुई। उनका अध्यक्ष होने के नाते मैं भी था। मैंने सभी बैंकों के अधिकारियों से बारी-बारी से बीमा योजना न लागू होने का कारण पूछा तो बैंक मैनेजर मेरी शक्ल देख रहे थे। अब हमारी सरकार राज्य में प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, उज्जवला योजना, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, सुकन्या समृद्धि योजना, जनजातियों के लिए विशेष योजना आदि सभी लागू कर रही है। आशा है कि त्रिपुरा के लोगों को इससे लाभ के साथ ही रोजगार मिलेगा और उनका जो दुख-दर्द है, वह दूर होगा। इसी को ध्यान में रखते हुए मैंने सभी बैंकों को 90 दिन का समय दिया है। एक-एक महीने में समीक्षा करेंगे। बैंकों को बोला है एक महीने के अंदर त्रिपुरा के हर ब्लॉक में मुद्रा बैंक का मेला लगेगा जो माणिक सरकार ने नहीं किया। मुद्रा लोन के लिए जब कोई युवा बैंक जाता था तो कम्युनिस्टों का काडर बैंक के अंदर ही बैठा रहता था और मुद्रा बैंक का लोन किसी नौजवान को नहीं देता था। अगर कोई ज्यादा कुछ कहता तो कहा जाता था कि गारंटी ले आओ। जबकि इसके लिए कुछ जानकारी एवं एक प्रोजेक्ट लगाना पड़ता है। लेकिन जब उनसे पलट करके पूछा कि योजना के तहत क्या काम हुआ तो कोई हिसाब नहीं दे पाए। दरअसल असल कामों पर माणिक सरकार ने कभी काम नहीं किया। उनको सरकार नहीं चलानी थी बल्कि उनको तो पार्टी चलानी थी। मैंने मंत्रालय संभालने के बाद ऐसा महसूस किया है। राज्य का विकास करना न तो उनकी प्राथमिकता में था और न ही इसमें उनकी कोई रुचि थी।
राज्य में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा का हाल ठीक नहीं है। सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं तो लाखों की आबादी पर कुछ ही विद्यालय हैं। इस हालत को कैसे ठीक करेंगे?
मैं दो दिन से सभी मंत्रालयों में जा रहा हूं और राज्य के विकास के लिए खाका प्रस्तुत कर रहा हूं। इन दो दिनों के दौरान मैंने तेरह-चौदह सौ करोड़ रुपए केन्द्र सरकार से जारी करवा लिये हैं। दरअसल हमारा 32 फीसद क्षेत्र जनजाति बहुल है। जनजातीय मामलों का मंत्रालय 16 करोड़ रुपए एकलव्य विद्यालय को देता है। यह बहुत अच्छा स्कूल है। त्रिपुरा के लिए माणिक सरकार ने केंद्र से कभी ऐसे विद्यालय मांगे ही नहीं। केंद्र की ओर से जो 6 विद्यालय दिए गए उनमें 4 निर्माणाधीन हैं और 2 का प्रस्ताव पड़ा है। लेकिन हमने सरकार में आते ही केंद्र से राज्य के लिए 24 विद्यालय और मांगे हैं। पिछली सरकार ने कभी मांगा ही नहीं। अभी तक ऐसा नियम था कि जिस जगह स्कूल हो वहां 20 हजार वनवासी हों या फिर उस ब्लाक में 50 प्रतिशत वनवासी होने चाहिए। विद्यालय जहां खुलेगा वहां पांच-छह एकड़ जमीन उसके लिए हो। हमने मंत्रालय से निवेदन किया कि हमारा राज्य छोटा है। इतनी जमीन देना हमारा लिए मुश्किल है। इसलिए इस नियम में हमें छूट दी जाए। तो मंत्रालय तैयार हुआ। अब एक-दो एकड़ में भी विद्यालय खुलेगा। हमारे यहां कुल 56 ब्लॉक हैं, लेकिन इनमें से 30 ऐसे ब्लॉक हैं, जहां 50 प्रतिशत आबादी वनवासी है। इसलिए त्रिपुरा को इस आंकड़े के अनुसार 30 विद्यालय मिल सकते हैं। जिसके तहत हमें 384 करोड़ रुपये मिल जाएंगे। साथ ही साथ प्रत्येक छात्र को 4,500 रुपये भी मिलेंगे। यानी 50 करोड़ रुपए वार्षिक सभी विद्यालयों के हिसाब से केंद्र आपको देता रहेगा। तो जिस राज्य में जहां की आबादी का 30 प्रतिशत वनवासी हों, वहां केवल 4 एकलव्य विद्यालय। इस कारण से इन क्षेत्रों में मिशनरी स्कूल बढ़ रहे। वे वनवासी समुदाय को न केवल अपने झांसे में ले रहे बल्कि कन्वर्ट भी कर रहे थे। यह सब कम्युनिस्टों की मदद से हो रहा था। इसलिए जान-बूझकर इन स्कूलों का विकास नहीं होने दिया जा रहा था। हमारी सरकार बनते ही शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोग आए। सभी की यही शिकायत थी। मैंने उनको आश्वस्त किया कि विद्यालय कन्वर्जन की जगह नहीं होनी चाहिए, बल्कि अध्ययन की जगह होनी चाहिए। और न ही वे राजनीति के केन्द्र होने चाहिए। अगर ईसाई मिशनरियों का उद्देश्य लोगों की सेवा और शिक्षा है तो फिर कन्वर्जन करने की क्या जरूरत है? जैसे एकलव्य विद्यालय में हम पढ़ाएंगे, इसमें सभी मत-पंथ के बालक पढ़ेंगे। यहां तो ऐसा कुछ नहीं होगा और न ही हम उनको उनके मत-पंथ बदलने के लिए कहेंगे। फिर ईसाई मिशनरियां ऐसा क्यों करती हैं। राज्य में कम्युनिस्टों ने विद्यालयों को कन्वर्जन का केन्द्र और राजनीति का अड्डा बनाकर रख दिया है। इसी तरह थानों को भी राजनीतिक केन्द्र बनाकर रख दिया था, लेकिन त्रिपुरा अब इससे मुक्त हो चुका है। अब स्कूलों में पढ़ाई होगी अन्य कोई गतिविधियां नहीं। मेरा मानना है कि देशहित और विकास के लिए कम्युनिस्टों ने कभी सोचा ही नहीं। क्योंकि विकास नाम की चिड़िया उनके शब्द कोश में ही नहीं है। लेकिन मैं यह वायदे के साथ कह सकता हूं कि भारत सरकार की जितनी भी योजनाएं हैं, वे अगर सही ढंग से त्रिपुरा में लागू हो गर्इं तो दो साल के अंदर राज्य का चेहरा कुछ और ही होगा। और जो त्रिपुरा को मॉडल राज्य बनाने का सपना है, वह अपने आप साकार हो जाएगा।
त्रिपुरा के सरकारी कर्मचारियों को चौथे वेतन आयोग के अनुसार ही वेतन मिलता है। जबकि देश में 7वां वेतन आयोग लागू है। इस पर क्या कुछ करने वाले हैं आप?
हमने कमेटी बना दी है। कमेटी की रिपोर्ट आते ही 7वें वेतन आयोग का जो हमने वायदा किया, वह हम जरूर करेंगे।
राज्य में चार संघ प्रचारकों की हत्या के बाद समाज में एक बड़ा आक्रोश था। लेकिन सारे मामलों को ठंडा करके बैठना, कम्युनिस्टों की राजनीति का एक हिस्सा हो गया था। राजनीतिक हत्याओं के 16-16 साल पुराने मामले हैं। लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ। प्रचारकों की हत्या मामले में आप क्या करने वाले हैं?
उन संघ प्रचारकों के मामले में हमारी सरकार एक कड़ा कदम उठाने जा रही है। मैंने फाइल मंगवाई है क्योंकि गृहमंत्रालय मेरे पास ही है। इसमें 12 व्यक्ति अभियुक्त हैं। मैं अभी ज्यादा गहराई में नहीं जाऊंगा लेकिन इतना तय है कि इस मामले में जल्दी कार्रवाई होगी और जो भी इसमें दोषी होंगे उनको सजा मिलेगी। कानून अपना काम सही दिशा में करेगा। दूसरी बात, मंत्री रहे विमल सिन्हा के मामले में भी माणिक सरकार ने आयोग बनाया था। उस आयोग की जो रिपोर्ट आई उसमें उनकी पत्नी के ऊपर प्रश्नचिन्ह उठाया था और उन पर दबाव डालकर बयान दिलवाया था। दो-दो पत्रकारों की भी हत्या हुई। पत्रकारों ने सीबीआई जांच की मांग की थी। लेकिन माणिक सरकार ने सीबीआई जांच से साफ इनकार कर दिया। और एसआईटी का गठन करके इतिश्री कर दी। यह हकीकत है जितने भी मामलों में एसआईटी का गठन हुआ, उसमें कुछ नहीं मिला, क्योंकि एसआईटी का गठन दिखावे के लिए होता है। हमने आते ही इस मामले को सीबीआई को भेज दिया है ताकि सच सामने आ सके।
महिलाओं के प्रति हिंसा के मामले में भी त्रिपुरा शीर्ष पर है। उसको कैसे ठीक करेंगे?
यह गंभीर बात है। इसलिए हमने आते ही प्रशासन को सख्त निर्देश दिया है कि कानून-व्यवस्था से खिलवाड़ करने वाला कोई भी हो, उस पर कड़ी कार्रवाई करिए। जो थाने पहले राजनीति का केंद्र हुआ करते थे वे अब कानून का केन्द्र बन चुके हैं। त्रिपुरा छोटा राज्य है इसलिए अधिकतर मामलों की सूचना मेरे पास आ जाती है। हम किसी भी हालत में राजनीतिकरण नहीं होने देंगे। क्योंकि मैं खुद कानून के मामले में न हस्तक्षेप करता हूं और न किसी को करने की अनुमति दूंगा।
सांस्कृतिक विविधता, पर्यटन, लोक-शिल्पकला की दृष्टि से छोटा होने के बावजूद त्रिपुरा बहुत सी चीजों से समृद्ध और प्राकृतिक संसाधनों से भरापूरा है। लेकिन राज्य की जो नकारात्मक छवि बनाई गई, उससे कितनी जल्दी बाहर निकलने में कामयाब होंगे?
देखिए, त्रिपुरा उस छवि से निकल चुका है। नहीं तो भाजपा को ऐसी ऐतिहासिक विजय कहां मिलती। मैं पिछले तीन साल से इसे देख और महसूस कर रहा था। त्रिपुरा के लोग बहुत भोले-भाले हैं। लेकिन हैं बड़े मेहनती। वे काम करना चाहते हैं लेकिन पिछले समय में कम्युनिस्टों ने उन्हें काम करने नहीं दिया। आज हम कौशल विकास से जुड़ी योजना ला रहे हैं। हमारी सरकार डेढ वर्ष के अंदर 5-7 हजार लोगों के लिए रोजगार की व्यवस्था करने जा रही है। इसके अलावा हर स्तर पर सुधार करेंगे और राज्य की छवि जो पहले से बनी हुई है, उसे बदलेंगे।
माणिक सरकार की छवि बहुत साफ थी मगर 70 किमी. का भी सफर वे हेलिकॉप्टर से तय करते थे। त्रिपुरा में सड़कें नहीं बनीं। राज्य में सड़कों का संजाल हो, इसके लिए केन्द्र सरकार से क्या बात हुई है?
माणिक सरकार के बारे मैं क्या कहूं! वह तो न अच्छे प्रशासक रहे और न ही दूरद्रष्टा। जबकि ये दोनों चीजें किसी भी राज्य के प्रधान के अंदर निहित होनी ही चाहिए, तभी राज्य का विकास हो सकता है। जनता ने उन्हें 20 साल तक राज्य की सत्ता सौंपी लेकिन वह न तो राज्य का भला कर पाए और न ही लोगों का। त्रिपुरा के साथ केन्द्र में आसीन भाजपा सरकार ने कभी भेदभाव नहीं किया। हम लोग उन्हें स्वस्थ विपक्ष दे रहे थे। जनता ने इसी बात को देखा और अपना मत दिया। स्वस्थ विपक्ष देने से लोगों का विश्वास भाजपा पर बढ़ा, क्योंकि राज्य के लोग विकास चाहते थे। यहां के लोगों ने देखा कि केन्द्र की सरकार राज्य के विकास में पूरा सहयोग कर रही है तो लोग हमारी ओर आकर्षित हुए। माणिक सरकार त्रिपुरा में 20 साल मुख्यमंत्री रहे हैं, लेकिन एक राजमार्ग था। लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने आते ही राज्य में 6 राष्ट्रीय राजमार्ग जारी किए, जिसमें एक का काम चल रहा है। इन राजमार्गों पर बारह हजार करोड़ रुपए की लागत आएगी। 1,000 किमी. से ज्यादा लंबी सड़कें बनने वाली हैं। हमारी केन्द्रीय परिवहन एवं जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी जी से बात हुई है। टेंडर वगैरह जारी होते ही काम शुरू होगा। इससे भी राज्य के लोगों को रोजगार मिलेगा। मैं आपको बताना चाहता हूं कि अगले दो-तीन वर्षों के अंदर त्रिपुरा में एक भी व्यक्ति बेरोजगार नहीं रहेगा। हमने जो वायदा किया है कि हर घर में रोजगार और हर घर में मोदी सरकार, वह जरूर पूरा होने वाला है।
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