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बहुत पुरानी बात है। उन दिनों आज की तरह स्कूल नहीं होते थे। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली थी और छात्र गुरुकुल में ही रह कर पढ़ते थे। उन्हीं दिनों की बात है। एक विद्वान पंडित थे। उनका नाम था- राधे गुप्त। उनका गुरुकुल बड़ा ही प्रसिद्ध था, जहां दूर-दूर से बालक शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे। राधे गुप्त की पत्नी का देहांत हो चुका था। उनकी उम्र भी ढलने लगी थी। घर में विवाह योग्य एक कन्या थी, जिसकी चिंता उन्हें हर समय सताती थी। पंडित राधे गुप्त उसका विवाह ऐसे योग्य व्यक्ति से करना चाहते थे, जिसके पास संपत्ति भले न हो, पर बुद्धिमान हो।
एक दिन उनके मन में विचार आया। उन्होंने सोचा कि क्यों न वे अपने शिष्यों में ही योग्य वर की तलाश करें। ऐसा विचार कर उन्होंने बुद्धिमान शिष्य की परीक्षा लेने का निर्णय लिया। उन्होंने सभी शिष्यों को एकत्र किया और उनसे कहा- ''मैं एक परीक्षा आयोजित करना चाहता हूं। इसका उद्देश्य यह जानना है कि कौन सबसे बुद्धिमान है। मेरी पुत्री विवाह योग्य हो गई है और मुझे उसके विवाह की चिंता है। लेकिन मेरे पास पर्याप्त धन नहीं है। इसलिए मैं चाहता हूं कि सभी शिष्य विवाह में लगने वाली सामग्री एकत्रित करें, भले ही इसके लिए चोरी का रास्ता ही क्यों न चुनना पड़े। लेकिन सभी को एक शर्त का पालन करना होगा। शर्त यह है कि किसी भी शिष्य को चोरी करते हुए कोई देख न सके।''
अगले दिन से सभी शिष्य अपने-अपने काम में जुट गए। हर दिन कोई न कोई शिष्य अलग-अलग तरह की वस्तुएं चुराकर ला रहा था और गुरुजी को दे रहा था। राधे गुप्त उन वस्तुओं को सुरक्षित स्थान पर रखते जा रहे थे, क्योंकि परीक्षा के बाद उन्हें सभी वस्तुएं उनके मालिक को वापस करनी थी। परीक्षा से वे यही जानने चाहते थे कि कौन सा शिष्य उनकी बेटी से विवाह योग्य है। सभी शिष्य अपने-अपने दिमाग से कार्य कर रहे थे। लेकिन उनमें से एक छात्र रामास्वामी, जो गुरुकुल का सबसे होनहार छात्र था, चुपचाप एक वृक्ष के नीचे बैठा कुछ सोच रहा था। उसे सोच में बैठा देख राधे गुप्त ने कारण पूछा।
रामास्वामी ने बताया, ''आपने परीक्षा की शर्त के रूप में कहा था कि चोरी करते समय कोई देख न सके। लेकिन जब हम चोरी करते हैं, तब हमारी अंतरात्मा तो सब देखती है। हम खुद से उसे नहीं छिपा सकते। इसका अर्थ यही हुआ न कि चोरी करना व्यर्थ है।'' उसकी बात सुनकर राधे गुप्त का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा। उन्होंने उसी समय सभी शिष्यों को एकत्र किया और उनसे पूछा- ''आप सबने चोरी की… क्या किसी ने देखा?'' सभी ने इनकार में सिर हिलाया।
तब राधे गुप्त बोले, ''बच्चो! क्या आप अपने अंतर्मन से भी इस चोरी को छिपा सके?'' इतना सुनते ही रामास्वामी को छोड़कर सभी बच्चों ने सिर झुका लिया। इस तरह गुरुजी को अपनी पुत्री के लिए योग्य और बुद्धिमान वर मिल गया। उन्होंने रामास्वामी के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। साथ ही, शिष्यों द्वारा चुराई गई वस्तुएं उनके मालिकों को वापस करके बड़ी विनम्रता से क्षमा मांग ली।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि कोई भी कार्य अंतर्मन से छिपा नहीं रहता और अंतर्मन ही व्यक्ति को सही रास्ता दिखाता है। इसलिए मनुष्य को कोई भी कार्य करते समय अपने मन को जरूर टटोलना चाहिए, क्योंकि मन सत्य का ही साथ देता है।
बूझो तो जानें
1. एक पहेली मैं बुझाऊं,
सिर को काट नमक छिड़काऊं।
2. ऐसी कौन सी चीज है जो पानी पीते ही मर जाती है?
3. वह क्या है जो लिखता है, लेकिन कलम नहीं है।
चलता है, लेकिन पैर नहीं है। टिक-टिक करता है, लेकिन घड़ी नहीं है।
4. खाते नहीं चबाते लोग,
काठ में कड़वा रस संयोग।
दांत जीभ की करे सफाई
बोलो बात समझ में आई।
5. ऐसा कौन सा जीव है जिसका दिमाग उसके शरीर से बड़ा होता है?
पिछले अंक के जवाब-
1. अंधेरा
2. चोटी
3. खटमल
4. अतिथि
5. बंदूक
क्या आप जानते हैं?
1. लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए श्रीराम को संजीवनी बूटी का रहस्य किस वैद्य ने बताया?
2. शांति निकेतन की स्थापना किसने की?
3. दुर्योधन के पुत्र का नाम क्या था?
4. सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करके किसने अपने प्राणों का त्याग किया?
5. अभिमन्यु के पुत्र का क्या नाम था?
पिछले अंक के जवाब-
1. कालड़ी (केरल)
2. अरब सागर और पश्चिमी घाट पर्वतमाला
3. बांदा (उ.प्र.)
4. अज
5. कामाख्या
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