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आपराधिक घटना को सांप्रदायिक रंग देकर हिंदुत्वनिष्ठ विचारधारा को दोषी ठहराने का षड््यंत्र रचा जा रहा
सरस्कार वापसी भाग-2 की पटकथा तैयार है। इस नाटक में सबकी भूमिका तय है। कांग्रेस काल के चारण-भाट अपने पारितोषिक लौटाएंगे। मीडिया उन्हें दिखाकर ऐसा दृश्य पैदा करेगा मानो अनर्थ हो चुका है और अब दूसरा कोई रास्ता नहीं। बीते तीन साल में देश ने यह तमाशा कई बार देखा। आम लोग भी इस ड्रामे के आदी हो चुके हैं व इसकी अनदेखा करना बेहतर समझते हैं। पर मीडिया में इसके पीछे चल रहा खेल देश के लिए कितना खतरनाक है, यह जानना-समझना जरूरी है।
हरियाणा के बल्लभगढ़ में चलती ट्रेन में तीन युवकों में मारपीट हुई और एक की मौत हो गई। खुद पीड़ित भी कह रहे हैं कि झगड़ा सीट को लेकर हुआ था। स्थानीय संवाददाताओं ने इस ‘रूटीन’ खबर को अपने चैनलों और अखबारों में भेज दिया। लेकिन दिल्ली के एक क्रांतिकारी चैनल में बैठे एक कट्टरपंथी पत्रकार की आंखें यह रिपोर्ट देखकर चमक उठीं। पीड़ित लड़के मुसलमान थे। लिहाजा खबर को मसालेदार बनाने के लिए उसने इसमें ‘बीफ’ शब्द भी घुसा दिया। हरियाणा के तमाम अखबारों व उनकी वेबसाइट पर घटना की खबर थी, पर ‘बीफ’ का जिक्र नहीं था। हर जगह यही बात थी कि झगड़ा सीट को लेकर हुआ। लेकिन दिल्ली के क्रांतिकारी चैनल में सुबह-सुबह ब्रेकिंग न्यूज चली कि ‘बल्लभगढ़ में ‘बीफ’ के शक में तीन मुस्लिम युवकों की पिटाई।’ फिर क्या? चैनलों की भेड़चाल ऐसी है कि सबने खबर में ‘बीफ’ डाल दिया, जबकि पुलिस, पीड़ित और संवाददाताओं ने ‘बीफ’ का नाम ही नहीं लिया।
फिलहाल ‘जिहादी संवाददाता’ अपने मकसद में कामयाब हो चुका है। उसकी गढ़ी झूठी खबर मौके की तलाश में बैठे विपक्ष से लेकर तनखैया बुद्धिजीवियों तक पहुंच चुकी है। आपराधिक घटना को सांप्रदायिक रंग देकर साबित किया जा रहा है कि इसके पीछे हिंदुत्वनिष्ठ विचारधारा दोषी है। प्रश्न है कि क्या मीडिया की तमाम आत्मनियंत्रणवादी संस्थाएं यह जानने की कोशिश करेंगी कि चैनलों और अखबारों के दफ्तरों में बैठे कुछ लोग कैसे खबरों के नाम पर अपना एजेंडा चला रहे हैं। इन्हें इससे मतलब नहीं कि इस खेल से देश का कितना नुकसान हो रहा है।
श्रीनगर में डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित को नमाज पढ़कर निकल रही भीड़ ने हिन्दू होने के शक में पीट-पीटकर मार डाला, पर घटना के धार्मिक पहलू को मीडिया ने लगभग नजरअंदाज कर दिया। त्रिपुरा में 25 मुस्लिम परिवारों को ईद के मौके पर मस्जिद में नहीं घुसने दिया गया, क्योंकि उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली थी। किसी चैनल ने इस पर बहस आयोजित नहीं की। कर्नाटक में एक गर्भवती मुस्लिम महिला को जिंदा जला दिया गया, क्योंकि वह हिन्दू लड़के से प्रेम करती थी और शादी करना चाहती थी। ऐसी न जाने कितनी खबरें योजनाबद्ध तरीके से दबा दी जाती हैं। सामने आती भी हैं तो धार्मिक पहलू को उजागर नहीं किया जाता। सारी घटनाएं बीते हफ्ते की हैं। इनमें पीड़ित मुसलमान हैं, लेकिन इनके लिए मीडिया की सेकुलर ब्रिगेड़ में कोई संवेदना नहीं है। यही कारण है कि चैनलों, अखबारों और पत्रकारों का यह तथाकथित गिरोह जनता की नजरों में अपनी विश्वसनीयता खो चुका है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश दौरे पर थे। उनके अमेरिका दौरे पर मीडिया में खूब कवरेज हुई। लेकिन ज्यादातर बातें स्टूडियो में परिचर्चा और तस्वीरों के विश्लेषण तक ही सीमित रहीं। भारतीय मीडिया के मुकाबले पाकिस्तानी चैनलों में इस यात्रा को लेकर ज्यादा साफ तस्वीर देखने को मिली। उनके कई वीडियो सोशल मीडिया में आए, जिनसे पता चलता है कि ताजा विश्व परिदृश्य में भारत किस तरह चीन की दादागीरी के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभर चुका है। यह महज संयोग है या पूर्वाग्रह, कहना मुश्किल है। लेकिन भारतीय चैनल व अखबार इस पहलू को उभारने में लगभग नाकाम दिखे। सिक्किम बॉर्डर पर भारतीय व चीन के जवानों के बीच तनातनी की खबर भी बिना पुष्ट किए चलाई गई कि चीन ने भारत के दो बंकर तबाह कर दिए। बाद में खबर झूठी निकली।
जीएसटी पर भी लोगों में भ्रम पैदा करने की कोशिश चल रही है। इसे लेकर सोशल मीडिया के जरिए उड़ाई गई झूठी खबरें चैनलों-अखबारों में जगह पा रही हैं। कुछ चैनल व अखबार इस मामले में सकारात्मक हैं, लेकिन ज्यादातर की रुचि इससे जुड़ी राजनीति और अफवाहबाजी में है।
पाञ्चजन्य में सबसे पहले लव जिहाद पर जब रिपोर्ट प्रकाशित हुई तो सेकुलर जमात ने इसे मनगढ़ंत बता कर खारिज कर दिया था। मुख्यधारा मीडिया इन आरोपों की खिल्ली उड़ाता था, पर उसे भी सच को स्वीकार करना पड़ रहा है। टाइम्स नाउ ने जिहादियों का अड्डा बन चुके केरल के कासरगोड से रिपोर्ट दिखाई जिसमें बताया गया कि कैसे मुसलमान लड़के हिंदू और अन्य पंथों की लड़कियों के पीछे हाथ धोकर पड़ जाते हैं। लव जिहाद के इस खेल का रेट कार्ड भी चैनल ने दिखाया। अब तक इस विषय पर मीडिया शुतुरमुर्ग की तरह मुंह रेत में दबाता रहा है। यही क्या कम है कि पहली बार अंतरराष्ट्रीय शक्ल लेती जा रही इस समस्या पर हमारे देश के मीडिया का ध्यान गया है।ल्ल
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