|
पहचान : सुधारवादी संत, निम्बार्क संप्रदाय
मुख्यालय : महुआ, जिला भावनगर, गुजरात
मूलमंत्र : कथा में भले सो जाओ, जीवन में जाग्रत रहो
विशेषता : हिंदू-मुस्लिम में समान रूप से लोकप्रिय
मोरारी बापू जन-जन के मन में बसे भगवान् राम की कथा कहते हैं। वे श्री रामचरितमानस को सरल, सुंदर और सहज तरीके से सुनाते हैं। रामायण के प्रसंगों को आम लोगों के जीवन प्रसंगों से जोड़ते हैं । त्रेता युग की कथा को जब 21वीं सदी के उदाहरण देकर समझाया जाए तो श्रोताओं की रुचि बढ़ना स्वाभाविक हो जाता है। संत मोरारी बापू वाचक के साथ साथ अच्छे गायक भी हैं। मानस की चौपाइयों को जब वे मधुर संगीत के साथ गाते हैं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो कर सुनते हैं। भारत के महान संतों में आज उनकी गिनती है। देश-विदेश में वे अब तक 750 से ज्यादा कथाएं कह चुके हैं।
उनकी विशेषता है कि रामभक्त और रामकथा वाचक होने के बाद भी मुस्लिम समाज में उनकी स्वीकार्यता है। धर्म-कर्म से दूर भागने वाला युवा वर्ग भी उनकी कथाओं में भारी संख्या में उपस्थित रहता है। उनका प्रयास है कि समाज में लोग धर्म, जाति, अमीर, गरीब के भेदों से ऊपर उठ कर मानवता, भाईचारे, सद्भाव और शांति के साथ जीना सीखें। वे अपनी कथाओं के माध्यम से ना जाने कितने हृदयों का परिवर्तन कर चुके हैं।
मोरारी बापू का जन्म गुजरात के भावनगर के तलगाजरड़ा गांव में 25 सितंबर,1947 को महाशिवरात्रि के शुभ दिन हुआ। पिता प्रभुदास हरियाणी और मां सावित्री देवी हरियाणी ने उनका नाम रखा मोरारीदास हरियाणी। परिवार में भक्ति भाव भरपूर था। दादा और पिता दोनों रामभक्त थे। नन्हा मोरारीदास जब स्कूल जाता था तो दादा त्रिभुवन दास मनस की चौपाई लिख कर देते और कहते, रास्ते भर याद करते जाना। स्कूल जाने के लिए लगभग 5 किलोमीटर पैदल जाना पड़ता था। मोरारीदास पूरे रास्ते मानस की चौपाइयां दोहराते जाते। जब स्कूली शिक्षा पूरी हुई, मोरारीदास को पूरा मानस कंठस्थ हो गया। केवल 14 वर्ष की आयु में 1960 में उन्होने पहली रामकथा कही। गुजरात में घर-घर में कथा वाचक हैं, अत: उनको भी रामकथा में आनंद आने लगा। पढ़ाई पूरी करके प्राइमरी शिक्षक की नौकरी शुरू की, लेकिन मन तो रामायण और राम में रचा-बसा था। और फिर एक दिन निर्णय लिया, केवल राम और कोई नहीं। नौकरी छोड़ दी और पूरे श्रद्धाभाव से रामकथाएं कहना आरंभ कर दिया। मोरारीदास से वे संत मोरारी बापू बन गए। आज मोरारी बापू देश विदेश में सम्मान और श्रद्धा से पूजे जाते हैं।
मोरारी बापू की कथाएं जितनी रसभरी प्रेरणादायक और रोचक है, उतना ही रोचक उनका व्यक्तित्व भी है। सफेद धोती-कुर्ते पर काली कंबली, माथे पर काला टीका और हर मिलने वाले से उसने क्या खाया, क्या पिया, कहां ठहरा है, जरूर पूछते हैं। राम के भक्त और काली कंबली कुछ अटपटा लगता है। लेकिन वे कहते हैं, काली कंबली भगवान् श्याम की है। बचपन से इस रंग से उनका गहरा नाता रहा। दादी और दादा काले रंग का बहुत प्रयोग करते थे। मोरारी बापू ने भी इसी रंग को जीवन में अपना लिया। महुआ में उनके आश्रम में जब उनसे मिलने का सुअवसर प्राप्त हुआ तो लगा ही नहीं कि एक महान् संत से मिल रही हूं। कोई आडंबर नहीं, प्रवचनों में जटिलता नहीं, हर जिंघासा को सरलता से शांत कर देते हैं। किसी को भी बहुत कर्मकांड का उपदेश नहीं देते।
जिस शहर में उनका आश्रम है, वहां मुस्लिमों की बहुतायत है। लेकिन मुस्लिम समाज में भी उन्हें उतना ही आदर और सम्मान मिलता है जितना हिंदू समाज में। महुआ गुजरात का ऐसा शहर है जहां आज तक हिंदू-मुस्लिम दंगे तो दूर, तनाव या मनमुटाव तक नहीं हुआ। बापू की कथा में मुस्लिम श्रोता भी रहते हैं। मुहर्रम के ताजियों में मोरारी बापू भी शामिल होते हैं। पांथिक सद्भाव रहे, इसके लिए उनके प्रयास जारी रहते हैं। महुआ में जब वे धर्म संसद करवाते हैं तो सभी पंथों के प्रमुख संत देश के कोने-कोने से हिस्सा लेने आते हैं। उनके गुरुकुल के बालकों की सर्वधर्म प्रार्थना प्रेरणादायी है ।
मोरारी बापू राम कथा को अपना जीवन मानते हैं। वे कहते हैं, यही मेरी श्वास है। वे हर जन्म में रामकथा वाचक ही बनना चाहते हैं। संन्यास या दुनिया छोड़ने का उपदेश बापू अपने भक्तों को नहीं देते। वे कहते हैं-जीवन में भाग जाना आसान है, पर जाग जाना बहुत कठिन है। भागो मत, जागो। हर परिस्थिति का संयम और धैर्य के साथ मुकाबला करो। सत्मार्ग पर अडिग हो कर चलो। मोरारी बापू जीवन में गुरु की महिमा को मानते हैं। ल्ल
टिप्पणियाँ