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पश्चिम बंगाल सरकार को सीपीआईएम विधायक के आरोपों में सच्चाई नजर आती है कि रा.स्व.संघ के स्कूलों में सांप्रदायिक शिक्षा दी जा रही है। सांस्कारिक शिक्षा दे रहे विद्या भारती स्कूलों को सरकार नोटिस भेज रही है, जबकि जिहाद और आतंकवाद फैला रहे सिमुलिया जैसे मदरसों को मान्यता दे रही है
विधानसभा के वर्तमान सत्र में सीपीआईएम के विधायक मानस मुखोपाध्याय ने एक अजीबोगरीब विषय को उठाया। उनका कहना था, ‘‘इस राज्य में रा.स्व.संघ के 350 स्कूल चल रहे हैं और इन स्कूलों में सांप्रदायिक शिक्षा दी जा रही है। इस विषय में राज्य सरकार अपना रुख स्पष्ट करे।’’ इसके जवाब में शिक्षा मंत्री पार्थो चट्टोपाध्याय ने कहा, ‘‘सरकार को इन गतिविधियों के बारे में पता है। 125 स्कूलों को नोटिस भेजा गया है।’’ उन्होंने स्पष्ट रूप से बताया कि उनकी सरकार शिक्षा के नाम पर किसी तरह की सांप्र्रदायिकता को बर्दाश्त नहीं करेगी। राज्य के लोग शुरू में इस बात को लेकर अचंभित भी हुए कि नोटबंदी जैसे मुद्दे पर भी सीपीआईएम और तृणमूल कांगे्रस एक साथ नहीं दिखी, लेकिन अचानक विद्या भारती स्कूलों को बंद करने के लिए दोनों ने हाथ मिला लिए। इस तरह का आचरण इन दोनों दलों का आतंकी भय दर्शाता है।
यह जगजाहिर है कि पिछले 34 साल से शिक्षा के क्षेत्र में जो पाप सीपीआईएम ने किया, पश्चिम बंगाल की मौजूदा सरकार उसी को बढ़ावा दे रही है। इसके विपरीत, विवेकानंद विद्या विकास परिषद परिचालित स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। 2015 में गुवाहाटी के पास बेतकुची स्थित शंकरदेव शिशु मंदिर के विद्यार्थी सरफराज हुसैन ने असम मध्य शिक्षा बोर्ड की परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया। पश्चिम बंगाल में भी विद्या भारती स्कूलों से सरफराज जैसे विद्यार्थी उभर कर आ सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो वामदलों की प्रगतिवादिता और तृणमूल के मां, माटी और मानुष जैसे तथाकथित नारों का क्या होगा?
2011 में सत्ता में आने के तुरंत बाद तृणमूल सरकार ने घोषणा की थी कि वह 10,500 खारिजी मदरसों को अनुमोदन देगी और बिना किसी जांच और रिपोर्ट के सरकार की मदद से राज्य के कई गांवों में तावड़तोड़ मदरसे शुरू हुए। 2014 में बर्दवान विस्फोट के बाद एनआईए जांच में इसका खुलासा हुआ। सिमुलिया में भी ऐसे ही मदरसे का जन्म हुआ था। वहां बंगलादेश के जमात-उल-मुजाहिदीन के आतंकियों को आईईडी बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। इसके साथ वे नवसर जैसे गांव की भोली-भाली लड़कियों को जिहाद का शिकार बनाते थे। बर्दवान के खागरागढ़ में हुआ विस्फोट इसी का परिणाम था। ऐसे मदरसों में ‘मृत्यु का आसान तरीका’ जैसी पुस्तकें पढ़ाई जाती थीं।
इसके अलावा, राज्य सरकार ने स्कूली पाठ्यपुस्तकों में भी बदलाव का काम शुरू कर दिया है। पड़ोसी इस्लामिक राष्टÑ बंगलादेश की नकल करते हुए तृणमूल सरकार ने पाठ्यपुस्तकों का इस्लामीकरण करते हुए ‘परिवेश परिचिती’ (पर्यावरण परिचय) किताब में इंद्रधनुष के लिए प्रयुक्त शब्द ‘रामधनु’ की जगह ’रंगधनु’ का प्रयोग किया है। हालांकि बंगला शब्दकोश में ‘रंगधनु’ जैसा कोई शब्द ही नहीं है। इसी तरह बर्दवान विस्फोट के बाद जिस जमात नेता ने आतंकियों के लिए धन एकत्र करने का नारा दिया, वह राज्य के शिक्षा मंत्री हैं।
विवेकानंद विद्या विकास परिषद, विद्या भारती की पश्चिम बंगाल इकाई है। कई दशकों से राज्य के हर जिले में इसके स्कूल चल रहे हैं, जिनमें गुणवत्तापूर्ण और सांस्कारिक शिक्षा दी जाती है। कुछ समर्पित ‘दीदी भाई’, ‘दादा भाई’ (आचार्या एवं आचार्य) के परिश्रम से सभी स्कूलों ने अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभाव स्थापित किया है। प्राथमिक शिक्षा से शुरुआत, उपयुक्त व्यवस्था, शिक्षा प्रबंधन, स्कूल भवनों का निर्माण इत्यादि करते हुए ये स्कूल सीबीएससी, आईसीएससी और पश्चिम बंगाल के मध्य शिक्षा के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहे हैं। सीपीआईएम के जमाने में प्रबंधन समिति के सदस्यों पर अत्याचार कर इन स्कूलों को बंद करने की पूरी कोशिश की गई। शिक्षा का अधिकार कानून आने के बाद अब प्राथमिक शिक्षा में भी एनओसी लेना पड़ता है। एनओसी के लिए सरकार ने 17 शर्तें रखी हैं। विद्या भारती स्कूल इन शर्तों पर खरे उतरते हैं।
इतना ही नहीं, तृणमूल सरकार अवैध तरीके से हिंदुओं का भी उत्पीड़न कर रही है। उनके मन में यह बात बैठ गई है कि ज्यादा उत्पीड़न करने से उनका वोट बैंक बढ़ेगा। इसलिए राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़ी समस्याओं पर वह सीपीएम से कम अत्याचार कर रही है। यह कदम सरकार के लिए उलटा पड़ सकता है। हालांकि जिला विद्यालय निरीक्षक के पास विद्या भारती स्कूलों से जुड़ी सभी जानकारियां हैं। कुछ स्थानों में इन स्कूलों में 40 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम छात्र हैं। उन्हें यह भी मालूम है कि मुसलमान अभिभावक हम स्कूलों की शिक्षा से खुश हैं। इस स्थिति में शिक्षा विभाग द्वारा राजनीतिक कारणों से नोटिस भेजना बिल्कुल गैरकानूनी है। शायद इस बात को ध्यान में रखते हुए शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने अब तक किसी स्कूल में नोटिस नहीं भेजा। ल्ल
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