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खुद को चुनावी राजनीति से बेशक दूर रखें, पर चुनावों से दूर न रहें। अगर आप राजनीति के प्रति असावधान रहे तो वह आपके बारे में निर्णय लेते समय आपकी भावनाओं की अनदेखी कर सकती है
राजनीति की तिकड़मों से दुखी लोग अक्सर यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि ‘मेरी राजनीति में कोई रुचि नहीं है।’ गत दिवस एक परिचर्चा में जब कई लोगों ने इस ‘बहुचर्चित जुमले’ का प्रयोग किया तो मुझे कहना पड़ा, ‘‘आपकी राजनीति में रुचि नहीं है, पर राजनीति की आप में रुचि है। इसलिए आपको उस पर नजर रखनी चाहिए। सावधान रहना चाहिए। ठीक उसी तरह, जैसे चोरों में मेरी कोई रुचि नहीं है। लेकिन चोरों की मुझ में रुचि है। पॉकेटमारों में मेरी कोई रुचि नहीं है, पर उनकी मुझ में रुचि ही नहीं, मुझ पर नजर भी है। मेरे जरा सा असावधान होते ही वे मुझे नुकसान पहुंचाने में सफल हो जाते हैं।’’
राजनीति में प्रत्यक्ष सहभागिता और राजनीति में रुचि दो अलग-अलग विषय हैं। स्वयं को चुनावी राजनीति से बेशक दूर रखें, पर चुनावों से दूर न रहें। अगर आप राजनीति के प्रति असावधान रहेंगे तो वह आपके बारे में कोई निर्णय लेते हुए आपकी भावनाओं की अनदेखी कर सकती है। आपके खिलाफ निर्णय कर सकती है। आप पर गलत आदमी थोप सकती है। इसलिए ‘मेरी राजनीति में रुचि नहीं है’ पर फिर से विचार करें। सजग नागरिकों से ही सफल लोकतंत्र संभव है। ‘कोई नृप होय हमें का हानि’ सजग लोकतंत्र नहीं, बल्कि उदासीन तंत्र है।
बेशक सामान्य व्यवहार में राजनीति को सत्ता प्राप्ति का साधन कहा जाता है। लेकिन सच यह है कि जीवन के हर क्षेत्र में चाहे वह नागरिक स्तर पर हो या व्यक्तिगत स्तर पर, राजनीति किसी न किसी प्रकार के सिद्धांत या व्यवहार के रूप में विद्यमान होती है। जरूरी नहीं कि वह केवल चुनावी लाभ अर्थात् सत्ता के लिए कार्यरत हो। बहुत संभव है अपने प्रभुत्व या अपने अहं की संतुष्टि के लिए भी चले जा रहे दांव-पेच राजनीति के विविध प्रयोग हों। अत: हम कितने ही दरवाजे, खिड़की बंद कर लें, राजनीति हमारे घर, कार्यालय, व्यावसायिक स्थल, परिसर, शिक्षा संस्थान में प्रवेश के लिए कोई न कोई छेद ढूंढ ही लेगी। भले ही आप कहें कि हमने अपने आसपास कोई छेद छोड़ा ही नहीं। इतना तय है कि गांव, नगर या महानगर वैश्विक स्तर पर राजनीति से अप्रभावित रहने की कामना तो हम जरूर कर सकते हैं, परंतु रह नहीं सकते।
अपने विचार, प्रभाव, शासन, वंश, दल, पंथ, संप्रदाय आदि को बढ़ावा देने के लिए राजनीति लगातार सक्रिय रहती है। मजहब, जाति, संप्रदाय, क्षेत्र और भाषा की राजनीति भी बांट रही है। दुनियाभर में सेवाकार्य करने वाली अनेक संस्थाएं और व्यक्ति हैं जो निस्वार्थ सेवा का दावा करते हैं। उदाहरण के लिए दुनियाभर में कार्यरत मिशनरियों को ही देखें जो सेवा की आड़ में कन्वर्जन कर रहे हैं। इसके लिए उनकी अपनी अलग ढंग की राजनीति हैं। वे अपने राजनीतिक विचारों को आगे बढ़ाने के लिए आंदोलन करने से लेकर विरोधियों के विरुद्ध आक्रामकता तक, हर दांव खेलते हैं। लव जिहाद से लेकर आतंकवाद तक सब राजनीति का ही एक स्वरूप है। वोट बैंक की राजनीति और तुष्टीकरण राजनीति के कारगर हथियार हैं जो स्वतंत्रता के बाद लगातार इसलिए सफल हैं, क्योंकि एक संप्रदाय विशेष राजनीति में रुचि लेते हुए यह तय करता है कि उसके वोट थोक में किसे मिलेंगे। उसकी इस ‘राजनैतिक रुचि’ के कारण देश का लगभग हर दल उसका चारण बनने के लिए हर क्षण तैयार रहता है। बेशक हमारा संविधान सभी को समान स्वतंत्रता और समान अधिकार देने की बात कहता है, लेकिन कुछ लोगों को ‘विशिष्ट अधिकार’ भी प्राप्त हैं। उच्चतम न्यायालय द्वारा बार-बार ‘समान नागरिक संहिता’ बनाने के आदेश को हर सरकार अनसुना करती रही है। ऐसे वातावरण से कोई सामान्य नागरिक तो क्या, सरकारें भी अप्रभावित नहीं रह सकतीं। अत: कोई चाहकर भी खुद को राजनीति से दूर नहीं रख सकता, क्योंकि राजनीति जबरदस्ती घर में घुसने का दुस्साहस भी रखती है।
जिन्हें राजनीति में रुचि है, उन्हें भी सोचना चाहिए कि गरीबी क्यों दूर नहीं हुई? भ्रष्टाचार के खिलाफ राजनीति कर पार्टी बनाने और सत्ता हथियाने वाले गाली-गलौज के अलावा कोई सकारात्मक बदलाव क्यों नहीं ला सके? तमाम नारों के बावजूद राजनीति में अपराधियों की संख्या क्यों बढ़ रही है?
अगर कोई कहता है कि ‘हमारे परिवेश में मौजूद बुराइयां, गंदगी, विसंगतियां आदि राजनीतिक कारणों से हैं और राजनीति में मेरी कोई रुचि नहीं है’ तो वह खुद को धोखा दे रहा है। सच यह है कि बुराइयां इसलिए सफल हैं, क्योंकि खुद को ईमानदार और कानूनसम्मत बताने वाले लोग राजनीति के प्रति उदासीन हैं। हमारी निष्क्रियता, उदासीनता ही प्रत्यक्ष तौर पर राजनीतिक गंदगी के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है।
सनद रहे, अगर हम राजनीति को समझना नहीं चाहेंगे तो हम राजनीति के शिकार होंगे और तब कोई अयोग्य व्यक्ति हम पर शासन करने लगेगा। इसलिए हर जागरूक नागरिक की राजनीति में रुचि होनी ही चाहिए।
ल्ल डॉ़ विनोद बब्बर
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