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मां प्राणों से प्यारी
इस धरती को जिसने माना मां प्राणों से प्यारी,
हिन्दू वही है, हिन्दू-राष्ट्र का सच्चा वही पुजारी।
भारत मां जयकारी।।
हिम-मंडित-सागर से सिंचित, स्मित-वदना-मनहारी,
स्नेह-पीयूष बहे कल-कल-कल, हरियाली शुभकारी,
ऐसी पावन मां का खंडन,
शोषण और विभाजन, क्रंदन,
सह लेना और चुप रह जाना, यह कैसी लाचारी?
भारत मां जयकारी।।
जितने मत उतने ही पथ हैं, पूजा की विधि न्यारी,
खान-पान-भाषा अनेकता, यह पहचान हमारी।
इस विराट वारिधि का बंधन,
जन-जन को देता सुख-रंजन,
इसे बचाने करें संगठित, शस्त्र-शास्त्र-करधारी
भारत मां जयकारी।।
गिरि-वन-ग्राम-नगर घर-घर से, जाग उठे नर-नारी,
जाग उठे हिन्दू उदात्तता, भस्मसात व्यभिचारी,
तन-मन-धन-जीवन कर अर्पण,
जीवन के क्षण-क्षण का तर्पण,
भोग नहीं, अर्पण में सुख है, सीखे दुनिया सारी
भारत मां जयकारी।।
-लक्ष्मीनारायण भाला 'अनिमेष'
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