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बलूचिस्तान के लोगों पर पाकिस्तानी सेना के बेइंतिहा जुल्म का दर्द, सरजमीं छूट जाने की टीस और चाहकर भी अपने बूते चीन को बेदखल न करने की कसक। बलोच रिपब्लिकन पार्टी के नेता और पाकिस्तानी सेना के हाथों बेरहमी से मारे गए अकबर खान बुगती के पोते बरहमदाग बुगती से बात करते समय उनकी आवाज इन सारे मनोभावों को बया कर गई। उन्हें भारत से काफी उम्मीदें हैं और कहते हैं कि पूरी दुनिया ने उनके दर्द को समझा है, अगर हिन्दुस्थान इस दर्द को नहीं समझेगा तो कौन समझेगा। उन्हें भरोसा है कि उनके शरण मांगने की अपील पर कोई अच्छी खबर मिलेगी। वहीं, वे हिन्दुस्थान से बलूचिस्तान के ऐतिहासिक रिश्तों की बात करते हुए अफसोस भी जताते हैं कि काश, 1947 में बलूचिस्तान भी भारत का हिस्सा बन गया होता क्योंकि तब बलूचिस्तान की किस्मत कुछ और ही होती। पेश हंै जिनेवा में निर्वासित जीवन बिता रहे बलोच नेता बरहमदाग बुगती से अरविंद शरण की खास बातचीत के अंश:
आप बागी हैं, आंदोलनकारी हैं या फिर राजनीतिक कार्यकर्ता? आपकी लड़ाई या विरोध का मुद्दा और तरीका क्या है?
मेरी लड़ाई बलूचिस्तान की आजादी के लिए है। क्यों है, इसकी वाजिब वजहें हैं। हमारी जमीन पर गैर-कानूनी तरीके से कब्जा किया गया, बलूचों पर बेइंतिहा जुल्म ढाए गए और आज भी यही सब हो रहा है। बलूचिस्तान में पाकिस्तान इंसानों के साथ जैसा बर्ताव कर रहा है, वैसा तो कोई जानवरों के साथ भी नहीं करता। कोई सेना अपने लोगों पर हवाई हमले करती है क्या? टैंक चढ़ाती है क्या? कितने लोग मारे गए, मालूम नहीं। कितने गायब हैं, अंदाजा नहीं। हमें इन सबसे आजादी चाहिए और इसी वजह से हमने आजाद मुल्क का ख्वाब देखा और उसी के लिए काम कर रहे हैं।
बलूचिस्तान में सक्रिय बीएनपी (बलूचिस्तान नेशनलिस्ट पार्टी) जैसे गुटों के बारे में आपकी सोच क्या है? क्या आपकी लड़ाई और नीति एक हैं?
देखिए, हमें बलूचिस्तान की आजादी से कम कुछ भी मंजूर नहीं। आप ने जिस पार्टी का अभी जिक्र किया… हां, बीएनपी.., तो उस जैसी पार्टियों से हमारा कोई वास्ता नहीं। …हो भी नहीं सकता। उनका नजरिया अलग है। वे आजादी की बात नहीं करते। हमने बलोच रिपब्लिकन पार्टी के तहत उन तमाम गुटों और राजनीतिक लोगों को जोड़ रखा है जो आजाद बलूचिस्तान के हिमायती हैं और जिन्हें महसूस होता है कि बलूचिस्तान के साथ जो कुछ भी हुआ, उसे आजादी हासिल करके ही दुरुस्त किया जा सकता है। इसके लिए हम एकजुट होकर काम कर रहे हैं। हमने दुनिया को बताया है कि हमारे लोगों पर पाकिस्तान किस तरह जुल्म कर रहा है और हमारे लिए आजादी क्यों जरूरी है। लंदन, जर्मनी, फ्रांस, नार्वे, स्विट्जरलैंड जैसी कई जगहों पर हमारी कौम अपने मकसद के लिए काम कर रही है।
क्या आप बलूचिस्तान के हालात को लेकर वैधानिक तौर पर किसी अंतरराष्ट्रीय फोरम में जाने के बारे में सोचते हैं?
बिल्कुल। हम इस बारे में फैसला कर चुके हैं। पिछले माह हमारी सेंट्रल कमेटी की बैठक हुई थी और उसमें हमने इस मसले पर गौर किया था। बैठक में इस बात पर रजामंदी हुई कि हम इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट और इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में जाएंगे। हमने सबसे पहले इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट जाने का फैसला किया है। इस सिलसिले में हमारी टीम पेशेेवर लोगों को काम के लिए जुटाने गई हुई है और उनकी सलाह के मुताबिक हम इस मसले पर आगे बढ़ेंगे। इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में हम सेना के जनरलों के खिलाफ केस दर्ज करेंगे और उस समय के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ और आईएसआई प्रमुख परवेज कियानी के खिलाफ भी केस करेंगे जिन्होंने मेरे दादाजान अकबर खान बुगती की बेरहमी से हत्या की थी।
आप बलूचिस्तान की आजादी की बात करते हैं। बलूचिस्तान का दर्द आपकी बातों में उभरता है… हिन्दुस्थान के बारे में क्या सोचते हैं?
देखिए, हिन्दुस्तान से हमारा रिश्ता तो शुरू से रहा है। बंटवारे से पहले हम इंडियन सब-कंटिनेंट का ही हिस्सा थे और हिन्दुस्तान के साथ हमारे बड़े दोस्ताना रिश्ते रहे। हमारी खुशकिस्मती होती अगर हम भारत का हिस्सा होते। एक जम्हूरी मुल्क का हिस्सा होते जहां महिलाओं को उनके हुकूक और हर किसी को आजादी हासिल है। लेकिन बदकिस्मती से ऐसा नहीं हो सका और आज के हालात में तो यह मुमकिन भी नहीं दिखता। खैर, अभी अपने मुल्क को पाकिस्तान की गुलामी से आजाद कराना मेरा तरजीही मकसद है। उसके बाद क्या होगा, यह अवाम के ऊपर है कि उसकी रजा क्या है।
बीच-बीच में ग्रेटर बलूचिस्तान की बात उठती है, इस पर क्या कहेंगे?
यह बात मैं बिल्कुल साफ कर देना चाहता हूं कि हम सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान के गैर-कानूनी कब्जे वाले बलूचिस्तान की बात करते हैं। वैसे तो बलूच आबादी अफगानिस्तान में भी है और ईरान में भी। लेकिन हम उनकी बात नहीं करते। आजाद बलूचिस्तान की हमारी मुहिम से उनका कोई लेना-देना नहीं। उनके हालात अलग हैं, हमारे अलग। उनके छोटे-मोटे मसले जरूर हैं, लेकिन वे अपने-अपने मुल्क में खुश हैं। दरअसल, यह पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई की साजिश है। उन्हीं के इशारे पर कभी-कभार ग्रेटर बलूचिस्तान की बात फैलाई जाती है। दरअसल वे चाहते हैं कि किसी तरह अफगानिस्तान और ईरान को बलूचों के खिलाफ कर दिया जाए।
चीन, पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर आपका क्या रुख है?
यह प्रोजेक्ट निहायत गैर-कानूनी है। हमारी सरजमीं को इस्तेमाल किया जा रहा है। हमारी जमीन पर दो-दो मर्तबा कब्जा किया गया। पहले, 1948 में पाकिस्तान की फौज ने बलूचिस्तान पर हमला किया और कत्लेआम मचाते हुए इस पर कब्जा कर लिया। फिर उसने इकॉनोमिक कॉरिडोर बनाने के लिए चीन से करार किया और हमारी जमीन उसे सौंप दी। यह सीधा सा गैर-कानूनी कब्जे का मामला है, इसके अलावा कुछ नहीं। इन लोगों ने हमारी सरजमीं, हमारे रिसोर्सेज, हमारे समुद्री इलाके, हमारे बंदरगाह सब पर गैर-कानूनी तरीके से कब्जा कर रखा है। उनका मकसद एक ही था, इनसे अपना फायदा उठाना। और आज भी वे यही कर रहे हैं। उनका हमारी बलूच आबादी से तो कोई ताल्लुक ही नहीं। हम इस प्रोजेक्ट के खिलाफ मामले को आगे ले जाना चाहते हैं, लेकिन हमारी जो जानकारी है उसके मुताबिक कोई राजनीतिक पार्टी ऐसा नहीं कर सकती। इसके लिए जो सरोकार वाले मुल्क हैं, वही कुछ कर सकते हैं। इसके लिए हम हिन्दुस्थान और अफगानिस्तान से गुजारिश करेंगे कि वे इस मामले में हमारी मदद करें।
आपने क्या पहले भी भारत से शरण मांगी थी? इस मामले में भारत की नरेंद्र मोदी सरकार से क्या उम्मीदें हैं?
नहीं, मैंने पहले कभी भारत से 'असाइलम' (शरण) नहीं मांगा। मौजूदा सरकार से हमें बहुत उम्मीदें हैं। हिन्दुस्थान के लोगों के साथ ऐतिहासिक तौर पर हमारे अच्छे ताल्लुकात रहे हैं। हिन्दुस्थान और बलूचिस्तान के लोग एक-दूसरे के लिए अच्छे ख्यालात रखते हैं। इसी वजह से हिन्दुस्थान की सरकार से मैंने 'असाइलम' की गुजारिश की है। मैं यही समझता हूं कि इस मसले पर जो भी होगा अच्छा ही होगा, दोनों के लिए अच्छा होगा। मैं हरगिज नहीं चाहता कि सिर्फ मेरे फायदे की बात हो। हम तो भाई-भाई हैं। जो हो, दोनों की रजामंदी से हो।
हिन्दुस्थान को आपको शरण क्यों देनी चाहिए?
देखिए, मेरी कोई परेशानी खड़ी करने वाली गुजारिश तो है ही नहीं। हमारी सोच साफ है, हमारा नजरिया साफ है। अगर आप देखें तो हम वे लोग हैं जो दुनिया में जहां भी जाते हैं, कोई परेशानी खड़ी नहीं करते। लंदन, जर्मनी, नार्वे में बलूच हैं और उनमें से ज्यादा ने 'असाइलम' ले रखा है। किसी पश्चिमी मुल्क से कभी कोई निगेटिव रेस्पांस नहीं मिला। अमेरिका में भी हमारे पांच-छह लोग गए, उन्हें भी एक महीने के भीतर 'असाइलम' मिल गया। और ये इसलिए कि वे महसूस करते हैं कि हमारी बात वाजिब है, हम बड़े मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं और हमें इसकी वाकई जरूरत है। पूरी दुनिया ने हमारे दर्द को महसूस किया है। हमारे 'असाइलम' को वाजिब माना है। पहले भी 'असाइलम' की हमारी गुजारिश कबूल की गई, और अब भी कर रहे हैं। अगर हिन्दुस्थान हमारे दर्द को नहीं समझेगा तो कौन समझेगा? वह तो हमारे करीब में है और सबसे बड़ी जिम्मेदारी भी उसी की बनती है। हिन्दुस्थान को चाहिए कि हमारे लिए अपने दरवाजे खोले। ये तो नहीं है कि हम कोई खतरनाक किस्म के लोग हैं या फिर दहशतगर्द हैं। मैंने हिन्दुस्थानी दूतावास के लोगों से बात की। उन्हें अपनी मजबूरियां, अपने हालात बताए और मदद मांगी। मुझे उम्मीद है कि उनका फैसला मेरे हक में होगा। (साभार: हिन्दुस्थान समाचार)
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