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खाड़ी देशों से आ रहे अंधाधुंध पैसे ने न केवल केरल के मुसलमानों के रहन-सहन को बदला बल्कि मुस्लिम देशों की वहाबी-सलाफी उन्मादी हवा भी यहां बह रही है। इसी कट्टरवादी इस्लामिक सोच के चलते दर्जनों युवा आईएस से जुड़ चुके हैं तो कई जुड़ने की फिराक में
सतीश पेडणेकर
केरल के अधिकतर मुस्लिम मां-बाप इन दिनों अपने बच्चों से परेशान हैं। राज्य में शुद्ध इस्लाम की जो हवा चल रही है, उससे उनके बच्चे बौरा गए हैं। वे बात-बात में मजहब ले आते हैं। कुछ बच्चे तो अपने मां-बाप को यह बताने लगे हैं कि मजहब क्या होता है! एक काउंसलर को एक मुस्लिम मां-बाप का फोन आया कि उसके कोचीन में रह रहे बेटे की काउंसलिंग की जाए जो वहां इंजीनियरिंग में पढ़ता है। लेकिन उस पर मजहब का भूत इस कदर सवार हो गया है कि वह कॉलेज छोड़ना चाहता है, क्योंकि इस्लाम की नजर में सहशिक्षा हराम है। उस कॉलेज में वहां छात्राएं हंै और महिला प्रोफेसर भी हैं। इस्लाम में तो लड़कियों और महिलाओं के साथ घुलना-मिलना मना है। लेकिन यह छात्र अकेला नहीं है। आजकल केरल के कई हाईस्कूलों में मुस्लिम लड़के-लड़कियां 'कोएजुकेशन' वाले कॉलेज में पढ़ना नहीं चाहते। उनका कहना है कि वे ऐसा करेंगे तो अल्लाह उन्हें दंड देगा। एक अभिभावक ने बताया कि सारा परिवार पिकनिक पर जा रहा था मगर ऐन मौके पर उनके बेटे ने कार में चढ़ने से मना कर दिया क्योंकि उसका कहना था उन्होंने कार लोन पर ली है और इस्लाम के हिसाब से ब्याज लेना और देना दोनों हराम हंै। इसलिए कई छात्र उच्च शिक्षा के लिए एजुकेशन लोन लेने को तैयार नहीं होते। एक बच्चे ने मेहमान बनकर आई चचेरी बहन को घर में नहीं रहने दिया क्योंकि वह लड़की है। यह सब इस राज्य में शुद्ध इस्लाम की हिमायत करने वाले सलाफीवाद के बढ़ते प्रभाव का असर है,जो मुसलमानों को मजहब के मामले में लकीर का फकीर बनाना चाहता है।
ये घटनाएं इस बात की प्रतीक हैं कि केरल में इस्लामी कट्टरतावादियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। केरल देश के शिक्षित राज्यों में से एक है। वहां शिक्षा तो बढ़ी मगर रोजगार नहीं। वहां हमेशा कांग्रेस और कम्युनिस्ट गठबंधनों का राज रहा है मगर वहां की अर्थव्यवस्था मनीआर्डर एकोनमी कहलाती है। राज्य की बहुत बड़ी तादाद खाड़ी देशों में नौकरी करती है। राज्य की अर्थव्यवस्था वहां से आनेवाले मनीआर्डरों पर निर्भर करती है। मगर खाड़ी देशों से केवल मनीआर्डर ही नहीं आते, उसके साथ वहां का रहन-सहन, जीवन पद्धति और सोच भी आती है। यही अब अपना रंग दिखा रही है। एक जमाने में केरल के मुसलमान आम मलयाली की तरह हुआ करते थे लेकिन खाड़ी में काम करनेवालों की दूसरी पीढ़ी के उभरने के साथ केरल के मुसलमानों का अरबीकरण बढ़ता जा रहा है। वे जो-जो खाड़ी देशों में देखते हैं, उसे यहां भी अपनाते हैं। उनके इस्लाम पर भी अरब देशों के शुद्धतावादी सलाफी इस्लाम का रंग चढ़ गया है। इनके सारे रीति-रिवाज और रस्में अब सऊदी अरब से आयातित से लगते हैं। यही वजह है कि अब केरल में कई लड़कियां पर्दा करने लगी हैं जो कभी केरल के मुस्लिम जीवन का हिस्सा नहीं था। जब आप लड़कियों से पूछेंगे कि पर्दा क्यों तो वे जवाब देती हैं कि हमारा मजहब हमसे पर्दे की अपेक्षा करता है और घर से बाहर जाते समय काफिरों की तरह लिबास पहनने से रोकता है। दूसरी तरफ मुस्लिम युवा दाढ़ी रखने लगे है और तुर्की टोपी और झब्बा पहनते हैं। हर अरबी चीज केरल के मुसलमानों के लिए फैशन बनती जा रही है। अरबी खाना सामान्य बात हो गई है। कुछ मुस्लिम तो ऊंट भी रखने लगे हैं। दरअसल कंम्प्यूटर और इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाली युवा पीढ़ी आईएस और शुद्ध इस्लाम की बात करनेवाली सोच से ज्यादा प्रभावित हुई है।
देवताओं की भूमि केरल में इन दिनों शुद्धतावादी सलाफी दैत्य कोहराम मचाए हुए हैं, यहां हैवानियत का पर्याय बन चुके आतंकी संगठन आईएसआईएस की विचारधारा का असर बढ़ता जा रहा है। और कट्टरतावाद आतंकवाद को भी जन्म देता है। इस महीने की शुरुआत में केरल में आईएसआईएस से जुड़े छह मुस्लिम युवाओं को गिरफ्तार किया गया। वे भारत में हमला करने की योजना बना रहे थे। ये युवा आईएसआआईएस के विशाल संजाल का हिस्सा थे। सुरक्षा अधिकारी केरल के कन्नूर, कोझिकोड और मल्लपुरम सहित तमिलनाडु के चेन्नई और कोयंबटूर में कुछ और संदिग्ध आतंकवादियों की गिरफ्तारी के लिए जांच पड़ताल कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि गिरफ्तार किए गए युवा इस्लामिक स्टेट से जुड़ने के लिए जून में ही भारत छोड़ अफगानिस्तान और सीरिया जा चुके केरल के 21 मुसलमानों के संपर्क में थे।
इन 21 मुसलमानों का राज्य से गायब होना किसी किस्से-कहानी से कम नहीं है। यह इस बात का प्रतीक है कि कट्टरतावादी सलाफी संगठन और संस्थाएं किस तरह राज्य के गांवों में सफलतापूर्वक अपनी पैठ बना रही हैं। इन घटनाओं ने सारे राज्य को चौंका दिया है, सुरक्षा एजंेसियों के कान खड़े कर दिए हैं। केरल के कासरगोड जिले का पदन्ना गांव खाड़ी से आने वाली रकमों से गुलजार है। बहुमंजिले पक्के बंगले और चमचमाती ऑडी और पजेरो गाडिय़ां इसकी शान बयान करती हैं। डॉ. के.पी. इजास को यहां के बाशिंदे दोस्ताना और ख्याल रखने वाले व्यक्ति के तौर पर याद करते हैं। 28 वर्ष के डॉ. इजास इस गांव के स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर काम करते थे। उनकी बीवी रिफिला दंत चिकित्सक थीं। उनका 18 महीने का एक बेटा अयान था और दूसरा बच्चा गर्भ में था। तभी 28 मई को इजास परिवार अचानक गायब हो गया। अगले कुछ दिनों के दौरान पता चला कि उनके कुछ नजदीकी रिश्तेदार भी गायब थे। इनमें इजास का छोटा भाई और उसकी गर्भवती बीवी भी थी। मुंबई में होटल का कारोबार चला रहा उनका रिश्तेदार अशफाक मजीद, उसकी बीवी शख्सिया और उनकी 18 महीने की बेटी आयशा भी गायब थी। जल्दी ही सामने आ गया कि ये तीनों परिवार उन 21 लोगों में से थे जो पिछले दिनों केरल् में अपने-अपने घरों से अचानक गायब हो गए थे। मगर केरल से इस तरह लोगों का जाना एक नए और खतरनाक मोड़ की बानगी है। ऐसा पहली बार हुआ है कि शौहर, बीवियों और बच्चों समेत पूरे के पूरे परिवार आईएस की तथाकथित खिलाफत में चले गए हैं। जांच के दौरान यह उजागर हुआ कि इन तीनों परिवारों की गतिविधियां पीस इंटरनेशनल फाउंडेशन के ईदगिर्द घूमती थीं। इस गुट की अगुआई कासरगोड के त्रिक्किरिपुर के एक 31 वर्षीय इंजीनियर अब्दुल राशिद अब्दुल्लाह के हाथ में थी। राशिद, उसकी बीवी आयशा और शिहास फाउंडेशन में काम करते थे। राशिद मजहब बदलकर इस्लाम अपनाने वाली औरतों की मदद करता था। यह गुट पेशेवर कॉलेजों में छात्र-छात्राओं के बीच काम करता था। एक पुलिस अफसर कहते हैं,'' राशिद एक कट्टरपंथी था जो आईएस के लिए गुपचुप भर्तियां कर रहा था।''
ये दोंनों घटनाएं बताती हैं कि केरल के मुसलमानों में भी इस्लामी कट्टरतावाद की हवा कितनी तेज है। यूं तो केरल में इस्लामी कट्टरतावाद हमेशा ही रहा है जो मोपला बगावत या अलग मल्लापुरम जिले से उभरकर आया मगर अब की इस्लामी कट्टरतावादिता एकदम अलग है। अब आईएस जैसी कथित के शुद्ध इस्लामी विचाधारा के हिमायती लोगों से कह रहे हैं कि अन्य धार्मिक समाजों के बीच वे सच्चे मुसलमान के तौर पर नहीं जी सकते। इसलिए उन्हे उस भूमि में रहना चाहिए जहां केवल मुस्लिम रहते हों, काफिरों का साया तक न हो। इससे पहले भी केरल में जमाते इस्लामी,पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया जैसे इस्लामी उग्रवादी संगठन रहे हैं। लेकिन उन्होंने कभी विदेश जाकर इस्लाम के लिए लड़ाई लड़ने की बात नहीं की। मगर पहले भी फुटकर संगठन कार्यरत थे जिनकी सोच थी कि मुसलमान काफिरों के साथ रहने के बजाय मुस्लिम देशों में मुस्लिमों के साथ रहें।
अब जो कट्टरतावादी सलाफी संगठन उभर रहे हैं वे बहुलतावादी समाज में रहना ही पसंद नहीं करते। पिछले दिनों नवभारत टाईम्स में केरल के एक संगठन एक्सट्रीम सलाफी के बारे में छपा था। उसके प्रवक्ता शम्सुद्दीन हैं। केरल के मुस्लिमों को कट्टरपंथ की ओर मोडने में इस संगठन की भूमिका होने का संदेह है। शम्सुीन कभी अपनी तस्वीर नहीं खींचने देते। फिल्म देखना हराम मानते हैं। उन्होंने कभी दाढ़ी नही छटवाई। वे मुस्लिमों को गैर मुस्लिम त्योहारों में शरीक न होने की सलाह देते हैं। वे कहते हैं कि केरल के कई मुस्लिम संगठन इस्लाम को उसके मूल रूप में प्रस्तुत करने से डरते हैं। उन्हें लगता है कि यह मुख्यधारा के मुनासिब नहीं होगा।
दरअसल राज्य में ऐसा जहरीला प्रचार करनेवाले कई सलाफी संगठन काम कर रहे हैं। वे लगातार 'धन बल' का इस्तेमाल कर केरल में काफी तादाद में आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित कर उसे बांट रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं कि कट्टरता और आतंकी सोच की इस विषबेल को तुरत प्रभाव से उखाड़ फेंकना होगा। अन्यथा राज्य की सुख-शांति पर बुरी नजर का लगना तय है। ल्ल
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