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गत दिनों सिंहस्थ कुंभ में वनवासी सम्मेलन आयोजित किया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के धर्म जागरण विभाग की ओर से आयोजित इस सम्मेलन में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़, राजस्थान, त्रिपुरा आदि प्रांतों के 35 हजार से अधिक वनवासी बंधु शामिल हुए। इस अवसर पर स्वामी गोविन्द गिरि जी महाराज ने कहा कि घर वापसी करने वाले हर व्यक्ति का अभिनंदन है। उन्होंने कहा कि आपसी भेदभावों को मिटाकर हम सबको समाज के लिए कार्य करना चाहिए। महामंडलेश्वर जनार्दन स्वामी महाराज ने कहा कि धर्म जागरण विभाग के इस सम्मेलन के माध्यम से कुंभ सफल हो रहा है। जैन साध्वी अमितज्योति जी महाराज और अंतज्यार्ेति जी महाराज ने भी विचार रखे। सम्मेलन के समन्वयक आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद ने समापन भाषण देते हुए कहा कि अपने बंधुओं का घर वापसी कराना समय की मांग है। -प्रतिनिधि
'राष्ट्रधर्म ही सबसे बड़ा धर्म'
नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में 17 सितम्बर को धर्म संस्कृति संगम के तत्वावधान में 'प्रथम श्वास भारत, अन्तिम श्वास भारत' विषय पर एक गोष्ठी आयोजित की गई। गोष्ठी के मुख्य वक्ता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल के सदस्य श्री इन्द्रेश कुमार ने कहा कि देश की एकता, अखण्डता और सुरक्षा के लिए सभी देशवासियों को मिल-जुलकर चिन्तन करना होगा। उन्होंने कहा कि धर्म और संस्कृति का मूलमंत्र है देश के लिए ही जीना और मरना। देशहित में काम करते रहना और जब भी जरूरत पड़े देश के लिए त्याग करना। यानी सबसे बड़ा धर्म है राष्ट्रधर्म। उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया में किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके देश के नाम पर होती है। उन्होंने सभी मत-पंथों के लोगों से आह्वान किया कि वे एकत्रित होकर बाहरी ताकतों का मुकाबला करें। इस अवसर पर धर्र्म संस्कृति संगम के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सर्वानन्द आर्य, महासचिव श्री महिपाल सिंह, सचिव श्री सुखवीर बौद्ध सहित अनेक लोग उपस्थित थे। -प्रतिनिधि
न्यायपालिका की दुहाई देने वाले अब कहां हैं?
विश्व हिन्दू परिषद् के कार्याध्यक्ष डॉ. प्रवीणभाई तोगडि़या एवं संयुक्त महामंंत्री डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन ने 23 अगस्त को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर मुम्बई उच्च न्यायालय के उस निर्णय का स्वागत किया था, जिसमें कहा गया था, 'बकरीद पर भी गोहत्या पर से पाबंदी नहीं हटेगी।' विज्ञप्ति में कहा गया कि न्यायपालिका के निर्णय के बाद कोई विवाद नहीं रहना चाहिए, परन्तु अब न्यायपालिका की दुहाई देने वाले तथाकथित सेकुलरों और मुस्लिम समाज के एक वर्ग ने इस निर्णय का विरोध करते हुए सब प्रकार की सीमाएं लांघ दी हैं, जो अत्यन्त दु:खदायी है।
इसी प्रकार श्रीनगर उच्च न्यायालय ने भी जम्मू-कश्मीर में लागू कानून का हवाला देते हुए कहा है कि जम्मू-कश्मीर में गोहत्या नहीं होनी चाहिए और वहां का प्रशासन कड़ाई से इस आदेश का पालन करे। लेकिन इस निर्णय के तुरंत बाद कश्मीर घाटी के अलगाववादियों, नेशनल कांफ्रेंस व पी़ डी़ पी. के एक वर्ग ने जिस तरीके से इस निर्णय का विरोध किया है, विहिप उसकी कठोर शब्दों में निन्दा करती है। घाटी बंद कराना, हिंसक प्रदर्शन करना, पाकिस्तान के झण्डे लहराना तो ऐसा लगता है कि अलगाववादियों का पेशा बन गया है जिसके लिए वे मौका ढूंढते हैं। परन्तु जम्मू-कश्मीर के कुछ राजनीतिक नेताओं का यह कहना कि 'यह निर्णय इस्लाम की तौहीन है, हम न्यायालय की नहीं, इस्लाम की मानेंगे तथा इस्लाम के अनुसार गोहत्या अनिवार्य है', घोर निन्दनीय है।
वक्तव्य में कहा गया कि, विपक्ष में आने पर ये नेता न केवल अलगाववादियों के प्रवक्ता बन जाते हैं, अपितु अपना आधार खो चुके अलगाववादियों को नया जीवन प्रदान करते हैं। इनके द्वारा जम्मू-कश्मीर विधानसभा में न्यायालय के निर्णय को परास्त करने के लिए विधेयक लाना न्यायपालिका का ही नहीं, हिन्दू समाज की आस्थाओं का भी अपमान है जिसकी हर देशभक्त नागरिक को भर्त्सना करनी चाहिए। यदि यह विधेयक लाया गया तो विहिप इसके विरोध में देशव्यापी आन्दोलन करेगी। बकरीद मुस्लिम समाज का महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। उनके मजहबी ग्रंथों के अनुसार इस दिन उनको अपनी सबसे प्रिय वस्तु की कुर्बानी देनी होती है, परन्तु अब उनमें बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा स्थापित हो चुकी है। इसीलिए इसको बकरीद भी कहा जाने लगा है, परन्तु पर्यावरण सुरक्षा के लिए कुछ मुस्लिम देशों में इस परंपरा में कुछ सीमाएं लगाई गई हैं जिससे मानव-पशु का संतुलन बचाया जा सके। गाय की कुर्बानी करना किसी भी मुस्लिम देश का मुसलमान अपना अधिकार नहीं मानता, परन्तु दुर्भाग्य से भारत के मुस्लिम समाज का एक वर्ग इस्लामी निर्देशों की अवहेलना कर गोहत्या को अपना अधिकार मानता है और बकरीद के दिन गो माता की कुर्बानी कर हिन्दू समाज की भावनाओं को आहत करता है।
इसके लिए वह भारत की न्यायपालिका, संविधान, परंपराओं से टकराने के लिए किसी भी सीमा तक जाता है। औरंगजेब, बाबर, गजनी को अपना आदर्श मानने वाले ये लोग इसी मानसिकता के शिकार होंगे। विश्व हिन्दू परिषद् इस मानसिकता की घोर भर्त्सना करती है। जब तक वे इन आक्रमणकारियों की जगह डॉ़ ए़ पी. जे़ अब्दुल कलाम जैसे महान देशभक्तों को अपना आदर्श नहीं मानेंगे वे इसी तरह नफरत की राह पर चलने के लिए मजबूर होंगे। -प्रतिनिधि
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