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कोई रूठा, कोई बैठा, कोई उठा

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Sep 28, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 28 Sep 2015 12:56:31

आवरण कथा/बिहार विधानसभा चुनाव
पटना स्थित कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय सदाकत आश्रम के बाहर टिकट बंटवारे के मामले में अपना गुस्सा और क्षोभ व्यक्त करते हुए वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विनोद शर्मा बिफर पड़ते हैं। वे कहते हैं कि एक तो प्रदेश में कांग्रेस को कमतर आंका गया, दूसरा टिकट बंटवारे में कोई पारदर्शिता नहीं बरती गई। 14 जिलों में पार्टी का कोई प्रत्याशी नहीं खड़ा किया गया। 100 से अधिक सीटों पर लड़ने वाली जदयू और राजद में तो और भी विद्रोही हैं। जदयू ने लगभग डेढ़ दर्जन विधायकों का पत्ता काटा तो राजद के 4 विधायक बेटिकट हुए।
दरअसल, भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता ने बिहार के सारे समीकरण गड़बड़ा दिए हैं। महागठबंधन में पहले से ही भूचाल आया है। समाजवादी पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने अपने को पहले ही महागठबंधन से किनारा कर लिया है। उधर भाजपा का खौफ जदयू पर इस कदर हावी हुआ कि पिछले विधानसभा चुनाव में 115 सीटें जीतने वाली जदयू 100 सीटों पर लड़ने को राजी हो गई। बाद में जब अन्य दलों ने किनारा कर लिया तो जदयू के कोटे में 101 सीटें आईं। जदयू कार्यालय में तो पहले से ही हड़कंप मचा हुआ है। कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दूर करने के लिए एवं पार्टी कार्यालय में हंगामा न हो इसलिए चुपके से चुनाव चिह्न दिए जा रहे हैं। जदयू की पूर्व मंत्री रेणु कुशवाहा ने तो कहा कि पार्टी में लोकतंत्र ही नहीं है। यहां सिर्फ एक आदमी की चलती है। यही दर्द विधायक गुड्डी देवी का भी है। रून्नी सैदपुर की विधायक का दर्द है कि पार्टी ने सिर्फ पैसे के आधार पर टिकट बांटा। उन्हें किस कारण से टिकट नहीं मिला यह आज तक पता नहीं चला।
राष्ट्रीय जनता दल में तो और भी बवाल है। अब इस पार्टी की पहचान लालू प्रसाद के परिवार के लोगों को आगे बढ़ाने वाली हो गई है। पहले लालू प्रसाद ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया। उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर बिहार में सत्ता की बागडोर स्वयं अपने हाथ रखा। फिर अपने दुलारे सालों –  अनिरुद्ध प्रसाद उर्फ साधु यादव तथा सुभाष यादव को राजनीति में स्थापित किया। यह और बात है कि इनके दोनों साले इनके लिए भस्मासुर बन गए। इस चुनाव में साधु यादव ने एक अलग पार्टी बना ली है। इस बार के विधानसभा चुनाव में साधु यादव 'गरीब जनता दल' (गजद) के नाम से अपने प्रत्याशी चुनाव क्षेत्र में उतारेंगे। पिछले लोकसभा चुनाव में लालू ने अपने पुराने साथी और सबसे विश्वस्त रामकृपाल यादव का टिकट काटकर अपनी सुपुत्री मीसा भारती को चुनाव मैदान में उतारा था। इसका विरोध करते हुए रामकृपाल ने भाजपा का दामन थाम लिया था और अब वे केन्द्र में मंत्री हैं। मीसा भारती का विवादों से पुराना नाता रहा है। राजद के प्रदेश कार्यालय में लोग दबी जुबान से राजद अध्यक्ष  लालू प्रसाद को 'परिवार से पीडि़त आत्मा' बताते हैं। इस बार उनके दोनों सुपुत्र चुनाव मैदान में हैं। राघोपुर से तेजस्वी यादव चुनाव लड़ रहे हैं, तो महुआ से तेजप्रताप। इन दोनों को जिताने के लिए महागठबंधन की पांच सीटें दांव पर लगाई गई हैं। राजापाकर, पातेपुर और हाजीपुर का आकलन वोट बैंक के हिसाब से किया जा रहा है, ताकि किसी प्रकार तेजस्वी और तेजप्रकाश को जिताया जा सके।
राजग में भी सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। 21 सितंबर को दिल्ली में जब रालोसपा के 17 प्रत्याशियों की सूची जारी की जा रही थी उसी समय नरकटियागंज से टिकट की चाह रखने वाले अशोक गुप्ता पत्रकार वार्ता में ही दहाड़ मारकर रोने लगे। उन्होंने आरोप लगाया कि रालोसपा के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने अपने समधी को बुलाकर टिकट दे दिया, जबकि पिछले 25 वर्ष से वहां वैश्य उम्मीदवार ही जीतता रहा है। उन्होंने सुबकते हुए कहा कि वे बर्बाद हो गए। घर और खेत बेचकर 50 लाख रुपए पत्नी के मना करने के बावजूद खर्च किए। लेकिन लालू की शैली में काम करने वाले उपेन्द्र कुशवाहा ने उनका साथ नहीं दिया। हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख जीतनराम मांझी दो क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके बेटे संतोष कुमार सुमन कुटुंबा से प्रत्याशी बनाए गए हैं। लोजपा का हाल भी कुछ इसी तरह का है। उसमें भी कुछ नेता ऐसे हैं, जो टिकट न मिलने पर पार्टी नेतृत्व से नाराज चल रहे हैं। हालांकि चिराग पासवान ने बहुत हद तक असन्तुष्टों को शान्त किया है। वहीं भाजपा में भी टिकट बंटवारे को लेकर नाराजगी है। वर्तमान में बक्सर के सांसद और भागलपुर के पूर्व विधायक अश्वनी चौबे के पुत्र अर्जित शाश्वत को भाजपा ने भागलपुर से उतारा है। इसको लेकर कार्यकर्ताओं में नाराजगी है।
हालांकि अर्जित काफी समय से संगठन के लिए कार्य करते रहे हैं। इसी तरह कुछ अन्य जगहों पर भी कार्यकर्ता नाराज हैं। लेकिन जितना उबाल अन्य दलों के कार्यकर्ताओं में है उतना भाजपा कार्यकर्ताओं में नहीं है। इसका कारण है इस बार भाजपा ने कार्यकर्ताओं का ख्याल रखा है। नालंदा के हरनौत विधानसभा क्षेत्र के जदयू समर्थक विजय कुमार इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि भाजपा की विचारधारा चाहे जो हो लेकिन वहां कार्यकर्ताओं की निष्ठा को प्राथमिकता दी जाती है। जदयू ने बेवजह ऐसे निष्ठावान कार्यकर्ताओं की फौज वाली पार्टी से झगड़ा मोल लिया। विजय कुमार का मानना अकारण नहीं है। इस बार टिकट बंटवारे में भाजपा ने कार्यकर्ताओं की राय को प्राथमिकता दी है। दीघा से भाजपा प्रत्याशी डॉ़ संजीव कुमार चौरसिया, वैसे तो वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व विधान पार्षद गंगा प्रसाद के सुपुत्र हैं। लेकिन पिछले तीस वर्ष से वे संगठन में सक्रिय हैं। उनकी पहचान 24 घंटे कार्यकर्ताओं के हित में लगे रहने वाले निष्ठावान कार्यकर्ता की है। भाजपा के महामंत्री के रूप में उन्होंने अपने संगठन कौशल का परिचय बखूबी दिया। यही हाल पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तथा सांसद डॉ़ सी़ पी़ ठाकुर के सुपुत्र विवेक ठाकुर का भी है। उन्हें पार्टी ने ब्रह्मपुर से प्रत्याशी बनाया है। इन्होंने भी पार्टी के कई पदों को सुशोभित किया है।
कई जगह से ऐसे प्रत्याशी दिए गए हैं जिन्हें विश्वास ही नहीं था कि पार्टी उन्हें कभी तवज्जो देगी। बक्सर के प्रत्याशी भारतीय जनता युवा मोर्चा (बिहार) के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप दूबे एक प्रकार से अपने को चुनावी दौड़ से बाहर समझ रहे थे, लेकिन उन्हें जब टिकट मिलने की जानकारी हुई तो पहले उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ। कई ऐसी  सीटें हैं, जहां भाजपा ने चुनावी रणनीति में 'सोशल इंजीनियरिंग' एवं दूसरे दलों  से आए लोगों का भी ख्याल रखा। इस बार पार्टी चुनावी रणांगन में सिर्फ अपनी जीत के प्रति ही सजग नहीं, बल्कि कार्यकर्ताओं की चिंता करने वाली भी दिख रही है।                     -पटना से संजीव कुमार

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