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कीटनाशकों के संपर्क में आने से लम्बे समयोपरांत कैंसर होने की संभावना होती है। बचपन में संपर्क में आने से कैंसर की संभावना अधिक हो जाती है।
जर्नल ऑफ नेशनल कैंसर इन्स्टीट्यूट में प्रकाशित अध्ययन रपट के अनुसार घर और घर के बगीचे में उपयोग में लिए गये कीटनाशकों से बच्चों में रक्त कैंसर की संभावना सात गुना बढ़ जाती है। साथ ही यह भी उजागर हुआ है कि जिन घरों में कीटनाशकों का प्रयोग होता है, उनके बच्चों में रक्त कैंसर, ब्रेन कैंसर और सॉफ्ट टिश्यू सरकोमा नामक कैंसर की आघटन दर अधिक होती है।
प्रतिरोधात्मक शक्ति के क्षीण होने से भी कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। कीटनाशक प्रतिरोधात्मक शक्ति को क्षीण करते हैं। बच्चों, बुजुगार्ेंे और लम्बे समय से बीमार लोगों में यह संभावना अधिक होती है, वे अधिक संवेदनशील होते हैं। अमरीकन कैंसर सोसाइटी द्वारा प्रकाशित अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि आम उपयोग में लिये हर्बीसाइड (खरपातवार नाशक) और फंगीसाइड , विशेषकर मेकोप्रोप (एमसीपीपी) में नॉन हॉजकिन्स लिम्फोना नामक लिम्फ कैंसर अधिक होता है। ग्लायोफासेट (राउण्ड अप) नामक ऐसे कीटनाशक से ऐसे कैंसर के होने की संभावना 2़7 गुणा अधिक पाई गई।
99 अध्ययनों में से 75 में कीटनाशक से संपर्क और लिम्फोमा के बीच संबंध पाया गया। चार पीयर रिव्यूड विस्तृत मानक अध्ययनों से उजागर हुआ है कि ग्लायोफोसेट युक्त कीटनाशकों के संपर्क में आने वालों में, अल्प मात्रा में भी डीएनए विकृति और जेनेटिक म्यूटेशन होता है। 2007 में एन्वायरनमेंटल हैल्थ पर्सपेक्टिव जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार उन माताओं में, जिनके गर्भावस्था के दौरान घर में कीटनाशकों का प्रयोग हुआ था, उनके बच्चों में अक्यूट ल्यूकीमिया (तीव्र रक्त कैंसर) और नॉनहाजकिन्स लिम्फोमा दो गुणा अधिक होते हैं। 2007 के एक केनेडियन अध्ययन के अनुसार पर्यावरण प्रदूषित होने से लड़कोें में कैंसर,आस्थमा, जन्मजात विकृतियां और टेस्टीक्यूलर डिसजेनेसिस सिन्ड्रोम (अविकसित या अपविकसित वृषण) की संभवानायें अधिक होती हंै।
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