|
दोपीढि़यों के बीच खड़े मुझ जैसे व्यक्ति के लिए दुनिया बड़ी अनूठी है। यह समय का वह बिन्दु है जहां से आप विरासत और आधुनिक विज्ञान के दो झरोखों से नजारा ले सकते हैं। एक तरफ संस्कार और जीवन-सार है, दूसरी तरफ तकनीक के तार। एक ओर रामायण के उद्धरण हैं, दूसरी ओर 'एन्ड्राएड' के 'अपडेट्स'। एक ओर शुद्धि, शांति और अग्निहोत्र की परंपराएं हैं, दूसरी तरफ 'सी-क्लीनर' और 'फायर वॉल' के 'रिमाइन्डर।' परंतु पीढ़ीगत परिवर्तनों के बीच क्या समयचक्र पर लिखा कोई निर्देश, कोई ऐसा साम्यबिन्दु है जो सदा, सबके लिए अपरिवर्तित रहता है? तकनीकी विकास और सांस्कृतिक मान्यताओं के बीच समानता के सूत्र तलाशना दिलचस्प हो सकता है।
इस्लामी मान्यता है कि हजरत आदम बहिश्त में एक सेब पर बहक गए थे। बहरहाल, मोबाइल क्रांति के दौर में इंसानों का 'एप्पल' के लिए फिसलना जारी है। वैसे, 'एप्पल' की एक खासियत यह भी है कि तमाम आकर्षण के बावजूद इसकी कुछ सीमाएं हैं। अपने 'उत्पादों' के अतिरिक्त इसका 'ऑपरेटिंग सिस्टम' किसी का समर्थन नहीं करता। 'एप्पल' के लिए आस्था है तो आपका उस सीमित दुनिया में स्वागत है, जहां अन्य की साझेदारी प्रतिबंधित है, पाप है, 'शिर्क' है।…और यह कुछ ऐसा है जो हो ही नहीं सकता। इस्लामी लीक पर चलने वालों के लिए भी आस्था में किसी को शरीक करना शिर्क है, अपराध है, अक्षम्य है। सेब की परम्परा और 'एप्पल' की कहानी में कैसा अजब साम्य है। लेकिन 'एप्पल' की इस सोच के साथ चलने को आज दुनिया तैयार नहीं दिखती। उसे नवोन्मेष चाहिए, हर कोने से बहने वाली रचनात्मक धाराओं का 'संगम' कराने वाला विस्तृत हृदय चाहिए।
'एन्ड्राएड' आज सूचना तकनीक का युग धर्म है। हजारों-लाखों की नजर से गुजरते हुए सबकी आवश्यकता के अनुसार नि:शुल्क 'अपडेट्स' इसकी पहचान है। दुनियाभर से अच्छी बातें, काम की चीजें 'एप्स' के तौर पर 'एन्ड्राएड' परिवार से जुड़ने के लिए स्वतंत्र हैं। लाखों 'एप्स' के अनंत विस्तार में से 'एन्ड्राएड' के आस्थावानों को जो 'एप्लीकेशन' रुचे, माफिक आए वे उसे 'डाउनलोड' करने के लिए स्वतंत्र हैं। यह पड़ोस के किसी ऐसे हिन्दू परिवार की तरह ही है जहां कसरत करने, जिम जाने का शौकीन युवक हनुमान जी का परमभक्त है और उसकी संगीत में रुचि रखने वाली पढ़ाकू बहन की आस्था मां सरस्वती में है। ध्यान केन्द्रित करने में सहायक पूज्य प्रतीकों की अनंत श्रृंखला में से अपने मन का चुनने (इसे आप 'डाउनलोड करने' भी पढ़ सकते हैं।) और फिर उसी एक राह पर बने रहने का सुख और स्वतंत्रता, ये हिन्दू रीति की विशेषता है।
आज यदि 'एन्ड्राएड' को दुनिया हाथोंहाथ ले रही है तो सिर्फ इसलिए कि उसमें उसे व्यक्तिगत उपयोग हेतु वांछित परिवर्तन करने और सुधार के लिए मुखर होने की असीमित स्वतंत्रता मिली है। वैसे किसी एक मंजिल के लिए अपने-अपने तरीके से रास्ते तलाशना और आगे बढ़ना ये मानव का स्वभाव है। ऐसे में 'एप्पल' और 'एन्ड्राएड' जो भी मनुष्य के इस मूल स्वभाव को समझ युगानुकूल ढलेगा और उसे आगे बढ़ने की स्वतंत्रता देगा, बना रहेगा। 'एन्ड्राएड' हो या हिन्दुत्व, एक साम्य यह भी है कि लोगों को यहां उनके मन की बात मिलती है और यही इसकी शक्ति है।
29 अगस्त, 1964 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन जब मुम्बई स्थित सांदीपनी साधनालय में विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना हुई थी तो उस कार्यक्रम में भी मानवमात्र के मन की यही बात सभागार में गूंजी थी। दादासाहब आपटे ने तब कहा था कि हमने एक विशेष तत्वज्ञान संसार को देते हुए सम्पूर्ण मानव जाति को परिवार माना है। इसी अवसर पर श्रीगुरुजी के सम्बोधन के एक अंश में इस दृष्टि का और विस्तार झलकता है। '…यह प्रयास संकीर्ण प्रयास नहीं, किसी पंथ विशेष तक यह सीमित नहीं, किसी नूतन धर्म की स्थापना करने का यह प्रयास भी नहीं है।' हिन्दुत्व के इस सर्वहितकारी, सर्वस्पर्शी चिंतन को आधार बनाकर शुरू हुई विश्व हिन्दू परिषद् का काम आज अपने स्वर्णजयंती वर्ष में है। श्रीकृष्ण के जन्मदिवस पर प्रारंभ हुए इस कार्य का व्याप इस दृष्टि से भी अथाह होना चाहिए कि किसी अन्य पंथ, मजहब की स्थापना से सहस्रों वर्ष पहले महाभारत के समर में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो गीता ज्ञान दिया था वह मनुष्य मात्र के लिए था, किसी पंथ के लिए नहीं। बहरहाल, विश्व हिन्दू परिषद् के कार्य विस्तार के विविध आयामों (जो आप आवरण कथा में पढ़ेंगे) के अतिरिक्त एक खबर यह भी है कि 'ब्लैकबेरी' का नया 'ऑपरेटिंग सिस्टम' 'एन्ड्राएड एप्स' का समर्थन करने के लिहाज से तैयार किया गया है।
'ब्लैकबेरी' हो या एप्पल, यदि उत्पाद में इंसान को एकात्म करने वाला रस नहीं तो नीरस, निष्ठुर, असहिष्णु उत्पादों को दुनिया नकार देगी। दुनिया को 'एन्ड्राएड' चाहिए। दुनिया को हिन्दुत्व चाहिए।
टिप्पणियाँ